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कविता

काला जादू हो तुम

निशांत


एक बच्ची सी हिरणी की तरह है
तुम्हारा चेहरा और
एक परिपक्व शेरनी की तरह है
तुम्हारा व्यवहार

बारिश होती है
झम झम झम भीतर
एक बाँध टूटता है
तुम्हारा लिलार
आँखे गाल होंठ कान गला बुबू कंधों को
चूमता हूँ
तनती है तुम्हारी देह
चम चम चमकने लगती है तुम्हारी त्वचा

अद्भुत !
अद्भुत है यह संयोजन
प्यार आता है तुम पर
डर लगता है तुम से

समुद्र की तरह हरहराती हो तुम
सुराही की तरह है तुम्हारा मीठा जल
कितने आकाश है तुम्हारे पास

क्या हो तुम ?

जादू हो तुम !
काला जादू !

मैं विस्मृत होता हूँ तुम्हें देखकर
मंत्रमुग्ध होता हूँ
प्यार कर।


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