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कविता

झंडा ऊँचा रहे हमारा

निशांत


देश का सबसे बड़ा हत्यारा
राजधानी में झंडा फहरा रहा है।

गली का सबसे बड़ा गुंडा
गली में झंडा फहरा रहा है।

लोग ताली बजा रहे हैं
लड्डू खा रहे हैं।

राजधानी में बैठा एक बुड्ढा कवि
गली का युवा कवि और
झंडे के पीछे छिपा पुरस्कृत कवि
कुछ शब्द उच्चारते हैं
कोई धमाका नहीं होता

आजादी के इतने सालों में
शब्दों से निकल गया है उनका रसायन
सिर्फ जबानी प्रतिकृया होती है
कोई धमाका नहीं होता

हत्यारे झंडा फहरा रहे हैं
गीत गा रहे हैं
- झंडा ऊँचा रहे हमारा...


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