कविता
कमीज में शरीर निशांत
एक दिन में मैली हो जाती है कमीज
शरीर को कपड़े से लत्ता बना पहनती रहती है कमीज कटता रहता है जीवन।
हिंदी समय में निशांत की रचनाएँ