अक्सर
	मानस में पुरानी यादें
	ऐसे बजबजाती हैं
	जैसे निर्माल्य सड़ता हुआ किसी बंद सीवर में
	- बदबू मारता हुआ !
	जिसे साफ़ करने भी कोई बाहर से नहीं आ सकता !
	और खुद
	जब मैं इनसे भागना चाहता हूँ तो
	हर एक दस-दस-सिरा हो कर
	खड़ी हो जाती हैं लाल आँखें किए सामने
	चीत्कारती हुई
	जिनमें दब कर रह जाता हूँ
	चुपचाप
	बदबू के साथ जीने के लिए
	अभिशप्त !