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कविता

पहाड़ लोग
दिनेश कुशवाह


अपना सबकुछ देते हुए
पूरी सदाशयता के साथ
शताब्दियों के उच्छेदन के बाद भी
बचे हैं कुछ छायादार और फलदार वृक्ष
नीच कहे जाने वाले परिश्रमी लोगों की तरह।

जिन लोगों ने झूले डाले इनकी शाखों पर
इनके टिकोरों से लेकर मोजरों तक का
इस्तेमाल करते रहे रूप-रस-गंध के लिए
जिनके साथ ये गर्मी-जाड़ा-बरसात खपे
यहाँ तक कि जिनकी चिताओं के साथ
जलते रहे ये
उन लोगों ने इन पर
कुल्हाड़ी चलाने में कभी कोताही नहीं की।

देश भर में फैले पहाड़
ये ही लोग हैं
जिन्हें हर तरह से
नोंचकर नंगा कर दिया गया है।


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हिंदी समय में दिनेश कुशवाह की रचनाएँ