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बाल साहित्य

आओ, मिलकर दीप जलाएँ

त्रिलोक सिंह ठकुरेला


आओ, मिलकर दीप जलाएँ।
अंधकार को दूर भगाएँ।।

नन्हे नन्हे दीप हमारे
क्या सूरज से कुछ कम होंगे,
सारी अड़चन मिट जाएँगी
एक साथ जब हम सब होंगे,
आओ, साहस से भर जाएँ।
आओ, मिलकर दीप जलाएँ।

हमसे कभी नहीं जीतेगी
अंधकार की काली सत्ता,
यदि हम सभी ठान लें मन में
हम ही जीतेंगे अलबत्ता,
चलो, जीत के पर्व मनाएँ।
आओ, मिलकर दीप जलाएँ।।

कुछ भी कठिन नहीं होता है
यदि प्रयास हो सच्चे अपने,
जिसने किया, उसी ने पाया,
सच हो जाते सारे सपने,
फिर फिर सुंदर स्वप्न सजाएँ।
आओ, मिलकर दीप जलाएँ।।


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