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बाल साहित्य

सूरज

त्रिलोक सिंह ठकुरेला


बड़े सवेरे सूरज आता।
किरणों से जग को चमकाता।

जैसे हो सोने की थाली,
नभ में बिखरा देता लाली,
देख देख जन जन सुख पाता।
बड़े सवेरे सूरज आता।।

खुश हो होकर चिड़िया गातीं,
फूलों की क्यारी खिल जातीं,
उन फूलों पर भौंरा गाता।
बड़े सवेरे सूरज आता।।

बरसातों में छुप छुप जाता,
जाड़ों में कुछ ज्यादा भाता,
पर गर्मी में खूब सताता।
बड़े सवेरे सूरज आता।।

सब में भर देता है सपने,
सब लगते कामों में अपने,
सूरज है जीवन का दाता।
बड़े सवेरे सूरज आता।।


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