कविता, मुझे जिंदा रखती है
अपनी भाषा में
लोकतंत्र में
और विरोध में भी।
मैं इसमें सुन पाता हूँ
पत्ते की सरसराहट से लेकर
मजलूम जनता की आवाज तक को
इसकी लयबद्धता
रोटी का,
रोटी द्वारा शासन में है।
स्थितियों में बेचैन करती
और ताकत देती कविता
मुझे बुलंद करती है
अपनी पंक्तियों से
जिसको अनवरत चलते रहना चाहिए।