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कुछ काम था क्या आपको
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गेहूँ घर आया है
चिड़िया का ब्याह
तू तो है न मेरे पास
देखिए मुझे कोई मुगालता नहीं है
दैत्य ने कहा
दांत
नहीं जानते कैसे
नहीं हैं अभी अनशन पर खुशियां
पंख
पूजना चाहता हूं किसी अवतार की तरह
पत्नी तो नहीं हैं न हम आपकी
पुन्न के काम आए हैं
बहुत कुछ है अभी
मैं कोई फ़रिश्ता तो नहीं था
मैंने कहा हाँ
मां
माँ के पंख नहीं होते
माँ गाँव में है
याद आई पृथ्वी
यादव जी!
वह औरत : मेरी मां
वह किस्सा ही क्या जो चलता नहीं रहे
शक्ति भी है अकेला आदमी
शमशेर की कविता
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