ओ व्यापारी देखो...
	मेरा मन तुम ले तो गए हो
	उसे हाट में बेच न आना
	महँगा होगा, माँग भी होगी
	पैसे की बरसात भी होगी
	लेकिन थोड़ा नेह निभाना...
	पास तुम्हारे समय नही है
	पास हमारे धैर्य नही है
	मन का सौदा, खोट न करना
	इसे हमेशा जतन से रखना
	लौट के आना, हमें बुलाना...
	हाट कोई घर-बार नही है
	वहाँ कीमती प्यार नही है
	वहाँ के नियमों को हम न जानें
	वो बेहिस उसूल भला क्यों मानें
	तुमको दिया जो, तुम से लेंगे
	देखो अपनी बात निभाना...