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कविता

एक ऐसे समय में

पंकज चतुर्वेदी


एक ऐसे समय में
जब लोगों का विचार है
कि आत्मा रह ही नहीं गई है
ज़िम्मेदार लोगों के पास

यह कहते-कहते मैं थका नहीं हूँ
कि किसी के साथ अन्याय करोगे
तो उसकी खरोंच
तुम्हारी आत्मा पर भी आएगी

एक ऐसे समय में
जब आकाश में चीलें मँडरा रही हैं
और हर खोह के लिए एक अदृश्य मुनादी है
कि उसमें हाथ डालने वाले इनसान की
खाल खींच ली जाएगी

मैं एक आसान शिकार की तरह
सड़कों पर घूमता हूँ
अपनी वाणी के सच को खोजता हुआ
कि जब सूखा पड़ा हो चारों ओर
तब भी वर्षा इस पर निर्भर है
कि बादल को हमारी पुकार
किस तरह बेधती है

एक ऐसे समय में
जब सब कुछ बिक रहा है
और इस बहुमुखी बिक्री में लोग
एक-दूसरे की नज़रें बचाकर भी
अपने को बिकने से बचा नहीं पा रहे

होड़ जब किसी उत्थान के लिए नहीं
महज़ एक गिरेपन के लिए है

हमें ख़ुशी यही कमानी है
कि अपवित्र इच्छाओं के संकट से
हम निकाल लाए हैं अपनी आत्मा को


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