एक मीठे स्वीकार से अनुप्राणित उस मिलने के बाद यह छूँछा बिछोह यह सूनी-सूनी-सी निष्फल होती-सी लगती असंगत-सी बेचैनी अनधिकृत-सी प्रतीक्षा
लगता है कि जैसे मैं तुम्हारे घर आया हूँ और तुम दरवाज़ों को खुला छोड़कर न जाने कहाँ चली गई हो
हिंदी समय में पंकज चतुर्वेदी की रचनाएँ