दरवाज़ों के पीछे एक जंगल है दरवाज़ों के आगे और भी बड़ा जंगल है
जब दरवाज़े इस भीषण जंगल में-से गुज़रते हैं तब उन्हें कोई नहीं देखता
हिंदी समय में पंकज चतुर्वेदी की रचनाएँ