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कविता

दरवाज़ों के पीछे एक जंगल है

पंकज चतुर्वेदी


दरवाज़ों के पीछे
एक जंगल है
दरवाज़ों के आगे
और भी बड़ा जंगल है

जब दरवाज़े
इस भीषण जंगल में-से
गुज़रते हैं
तब उन्हें
कोई नहीं देखता


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