इंतज़ार करते हुए वक्त नहीं, हम बीतते हैं और इंतज़ार करानेवाला सोचता रह जाता है कि जितना छोड़ गया था उससे कम कैसे?
हिंदी समय में अंकिता आनंद की रचनाएँ