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कविता

व्यतीत

अंकिता आनंद


इंतज़ार करते हुए वक्त नहीं, हम बीतते हैं
और इंतज़ार करानेवाला सोचता रह जाता है
कि जितना छोड़ गया था
उससे कम कैसे?


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