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कविता

जो तटस्थ हैं

अंकिता आनंद


क्या गज़ब की बात है
कि जिंदा हूँ।

गाड़ी के नीचे नहीं आई,
दंगों ने खात्मा नहीं किया,
बलात्कार नहीं हुआ,
मामूली चोट-खरोंच, नोच-खसोट ले निकल ली पतली गली से।

अपने-अपने भाग्य की बात है।
जाने बेचारों के कौन से जन्म का पाप था,
जो शिकार हो गए।

मेरे पिछले जन्म के पुण्य ही होंगे
कि शिकारियों की नज़र में नहीं आई,
उनसे नज़र नहीं मिलाई
जाने कौन से जन्म का पाप है
हाय, क्या सज़ा इसी पारी में मिल जाएगी?


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