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कविता

एक ही चेहरा

पंकज चतुर्वेदी


कुशीनगर में एक प्रसिद्ध
प्रतिमा है बुद्ध की

एक कोण से देखें तो लगता है
मुस्करा रहे हैं बुद्ध
दूसरे कोण से वे दिखते हैं
कुछ विषादित विचार-मग्न
तीसरे कोण में है
जीवन्मुक्ति की सुभगता -
एक अविचल शांति

कृपया इसे समुच्चय न समझें
तीन भाव-मुद्राओं का
केवल मुस्करा नहीं सकते थे बुद्ध

उनकी मुस्कराहट में था विषाद
और इनके बीच थी
निस्पृहता की आभा
अथवा मध्यमा प्रतिपदा

श्रेष्ठ है
पत्थर तराशने की यह कला
पर उससे श्रेष्ठ है
इस कला का अंतःकरण
जो यह जान सका
कि वह तीन छवियों में समाहित
एक ही चेहरा था बुद्ध का


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