(सईद अख़्तर मिर्ज़ा की फ़िल्म 'नसीम' देखकर)
1947 में जो मुसलमान थे
उन्हें क्यों चला जाना चाहिए था
पाकिस्तान ?
जिन्होंने भारत में ही रहना चाहा
उन्हें ग़रीब बनाए रखना
क्यों ज़रूरी था ?
जिस जगह राम के जनमने का
कोई सुबूत नहीं था
वहाँ जब बाबरी मस्जिद का
दूसरा गुंबद भी ढहा दिया गया
तो पहले और दूसरे गुंबद के बीच
सरकार कहाँ थी
कहाँ था देश
और संविधान ?
फिर भी तुम पूछो
क्यों नीला है आसमान
तो उसकी यही वजह है
कि दर्द के बावजूद
मुस्करा सकता है इनसान
मगर इससे भी अहम है
हिंदी के लेखकों से पूछो :
जब आर्य भी बाहर से आए
तो मुसलमानों को ही तुम
बाहर से आया हुआ
क्यों बताते हो
उनकी क़ौमीयत पर सवाल उठाते हुए
उन्हें देशभक्त साबित करने की
उदारता क्यों दिखाते हो ?
दरअसल बाहर से आया हुआ
किसी को बताना
उसे भीतर का न होने देना है
जबकि उनमें-से कोई
महज़ एक दरख़्त की ख़ातिर
1947 में
यहीं रह गया
पाकिस्तान नहीं गया