"अरे इग्नेसियो, तुम जगे हुए हो न? बताओ क्या तुम्हें कहीं से कोई आवाज सुनाई
	दे रही है... या कोई रोशनी दिखाई दे रही है?"
	"नहीं, कहीं कुछ नहीं दिखाई दे रहा..."
	"पर लगता है जैसे हम शहर के कहीं आसपास ही हैं..."
	"लग तो मुझे भी ऐसा ही रहा है... पर सुनाई तो कुछ नहीं दे रहा।"
	"अपने आसपास ढंग से आँखें खोल कर देखो।"
	"मुझे कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा है।"
	बेचारा इग्नेसियो।
	इनसानों की लंबी काली परछाईं ऊपर नीचे हरकत करती हुई दिखाई दे रही थी... नदी
	के किनारे चट्टानों पर फिसलती हुई - कभी विशाल आकार धारण कर लेती तो कभी सिमट
	जाती।
	यह अकेली परछाईं थी - हवा में लहराती हुई।
	चंद्रमा धरती के सिर के ऊपर मचलता हुआ प्रकट हुआ और रोशनी का छिड़काव करने लगा।
	"हमें जल्द से जल्द उस शहर तक पहुँचना है इग्नेसियो। तुम्हारे कान खुले हुए
	हैं... आसपास निगाह दौड़ाओ और सुनो कि कुत्तों का भौंकना सुनाई पड़ रहा है? उसी
	से हमें पता चलेगा कि तोनाया शहर पास आ गया है। हमें अपने गाँव से चले हुए तो
	कई घंटे हो चुके हैं।"
	"आपकी बात दुरुस्त है... पर मुझे तो कहीं कुछ दिखाई नहीं दे रहा।"
	"मैं तो अब बुरी तरह थक चुका हूँ ।"
	"आप ऐसा करो... मुझे सिर से नीचे उतार दो।"
	बूढ़ा आदमी पीछे चलते हुए एक दीवार तक पहुँचा और उस से टिक कर सिर की टोकरी को
	ऊपर ऊपर ही इस ढंग से संतुलित करने लगा जिस से उसको धरती पर नीचे न उतारना
	पड़े। उसकी टाँगें थकान से काँप रही थीं पर नीचे बैठने का उसका कोई इरादा नहीं
	था क्योंकि एक बार बैठ जाने पर बेटे का उतना बोझ लेकर दुबारा उठा पाना उसके
	अकेले के बस का नहीं था। घंटों पहले जब वह बेटे को गाँव से लेकर चला था तब भी
	कई लोगों ने बेटे को टोकरी में लाद कर उसके सिर तक उठाने में मदद की थी। इतनी
	देर से वह उसको अपने सिर पर लादे वैसे ही चलता आ रहा है।
	"अब तुम्हारी तबीयत कैसी लग रही है बेटे?"
	"बहुत खराब ।"
	वे आपस में बहुत कम बातचीत कर रहे थे... बोलते भी तो एक दो शब्द। चलते हुए
	ज्यादातर समय वह सोता ही रहा - बीच बीच में उसका बदन बिल्कुल बरफ जैसा ठंडा पड़
	जाता - तब वह बुरी तरह काँपने लगता। इस तरह की कँपकँपी को वह तुरंत भाँप जाता
	क्योंकि उसके सिर पर लदा हुआ टोकरा हिलने डगमगाने लगता - उसको गिरने से बचाने
	के लिए बूढ़े को अपने पंजे धरती पर गहराई से अंदर घुसाने पड़ते। दौरा पड़ते ही
	उसका बेटा अपनी बाँहें उसकी गर्दन के चारों ओर कस कर लपेट लेता - कई कई बार तो
	वह झटके के कारण गिरते गिरते बचा।
	उसने अपने दाँत किटकिटाए पर इस हिफाजत के साथ कि जीभ कटने से बची रहे... बेटे
	से उसने पूछा :
	"क्या तकलीफ बहुत हो रही है?"
	"हो तो रही है" ...बेटे ने संक्षिप्त सा जवाब दिया।
	पहले उसने कहा था कि "मुझे आप सिर से नीचे उतार दीजिए ...आप पैदल शहर की ओर
	बढ़िए, मैं धीरे धीरे आपके पीछे पीछे चल कर कल तक अपने आप आपके पास पहुँच
	जाऊँगा... हो सकता है और ज्यादा समय लगे, पर आ ही जाऊँगा धीरे धीरे" ...उसने
	यह बात रास्ते में कम से कम पचास बार दुहराई होगी ...पर अब उसकी हिम्मत टूट
	रही थी।
	सिर के ऊपर चाँद चमक रहा था... और इस अँधेरे समय में वो चाँद उनकी आँखें
	ज्यादा आलोकित कर रहा था... उनकी लंबी होती जाती छाया धरती पर पड़ती उसकी रोशनी
	को बीच बीच से खंडित कर रही थी।
	"मुझे पता नहीं चल रहा है हम जा कहाँ रहे हैं..." उसने कहा।
	इसके बाद चुप्पी छाई रही, बूढ़े ने कोई जवाब नहीं दिया।
	वह चाँदनी में नहाया हुआ उकड़ूँ होकर बैठा था पर चेहरा रक्तविहीन और हल्दी जैसा
	पीला - उसके शरीर से प्रतिबिंबित होकर आ रहा प्रकाश भी मरियल ।
	"मैंने जो बोला तुमने सुना इग्नेसियो? मुझे लग रहा है कि तुम्हारी तबियत
	ज्यादा ही खराब है..."
	दूसरी तरफ से कोई आवाज नहीं आई।
	बूढ़ा जैसे तैसे भी हिम्मत बाँधे आगे बढ़ता रहा - उसने कंधों को थोड़ा झुकाने और
	फिर शरीर को सीधा करने का यत्न किया।
	यहाँ तो कोई सड़क भी नहीं दिखाई दे रही है... लोगों ने कहा था कि इस पहाड़ी को
	पार करते ही तोनाया शहर आ जाएगा ...हमने पहाड़ी पार कर ली पर दूर दूर तक शहर का
	कहीं कोई नामोनिशान नहीं ...कहीं से कोई शोर शराबा भी नहीं उठ रहा जिससे पता
	लगे कि हम आबादी के आसपास हैं ...तुम्हें तो ऊपर से सब दिखाई दे रहा होगा
	...बताओ कहीं कुछ हलचल दिखाई दे रही है?"
	"मुझे सिर से नीचे उतार दो ...पापा।"
	"तुम्हारी तबियत ज्यादा खराब लग रही है?"
	"हाँ सो तो है..."
	"देखो, चाहे जो हो जाए मैं तुम्हें तोनाया पहुँचा कर ही दम लूँगा... वहाँ
	तुम्हारी देखभाल करने वाला कोई तो मिलेगा ...लोगों ने बताया था कि डाक्टर है
	वहाँ, उसके पास तुम्हें दिखाने ले चलूँगा ...जब इतनी दूर से तुम्हें अपने सिर
	पर ढो कर लाया हूँ तो यहाँ ऐसे खुले आसमान के नीचे छोड़ कर चला कैसे जाऊँ...
	मैं तुम्हें मरने कैसे दे सकता हूँ?"
	बूढ़े की लड़खड़ाहट बढ़ गई थी ...उसके कदम डगमगाए पर जल्दी ही वह सँभल गया।
	"मैं जब तक तुम्हें तोनाया पहुँचा नहीं देता दम नहीं लूँगा।"
	"मुझे नीचे उतार दो..."
	बेटे की आवाज मुलायम होती गई, लगा जैसे फुसफुसा रहा हो...
	"मुझे थोड़ा आराम करने दो पापा..."
	"वहीं बैठे बैठे सो जाओ बेटे ...मैंने तुम्हें कस के पकड़ा हुआ है।"
	आकाश बिलकुल साफ था और चंद्रमा पूरे निखार पर था ...उसका रंग धीरे धीरे नीला
	पड़ता जा रहा था। बूढ़े का चेहरा पसीने से लथपथ हो चुका था और चाँदनी उस गीलेपन
	पर जैसे चिपक सी गई हो। सिर पर बोझ होने और बेटे की बाँहें गर्दन से लिपटी
	होने की वजह से वह सिर्फ नाक की सीध में सामने देख सकता था सो सिर के ऊपर दमक
	रहा चंद्रमा उसकी निगाहों से बाहर था।
	"मैं तुम्हारे लिए जो कुछ भी कर रहा हूँ तुम्हारे वास्ते नहीं कर रहा हूँ
	...तुम्हारी गुजर चुकी माँ की खातिर कर रहा हूँ ...तुम आखिर उसी के बेटे हो
	...यदि मैंने तुम्हें ऐसे ही छोड़ दिया तो वह मुझे कभी माफ नहीं करेगी ...उसकी
	खुशी के लिए मुझे ये सब कुछ करना है ...जब मैंने उस बुरी और दयनीय हालत में
	बीच सड़क पर तुम्हें पड़े हुए देखा तो मुझे एकदम से एहसास हुआ कि तुम्हारा इलाज
	करवा कर चंगा कर देना मेरा दायित्व बनता है ...इतनी दूर से तुम्हारा वजन उठाकर
	मैं ले आया इसके लिए शक्ति भी उसी ने मुझे दी, तुमने नहीं ...वजह सीधी सी है
	कि जीवन भर तुमने मुझे कष्ट और जलालत के सिवा क्या दिया ...भरपूर संताप... और
	जितना हो सकता था उतना अपमान..." इतना बोलते बोलते वह पसीने से तर-बतर हो गया
	पर धीरे धीरे बहती हुई हवा ने पसीना सुखा दिया - पर हवा के मद्धम पड़ते ही
	पसीना फिर से आने लगा।
	"मेरी कमर चाहे टूट जाए पर मैं तुम्हें तोनाया तक पहुँचा कर ही दम लूँगा -
	तुम्हारे बदन पर जो जख्म हैं उनको ठीक करा कर ही मुझे चैन मिलेगा ...हालाँकि
	मुझे पक्के तौर पर मालूम है कि ठीक होते ही तुम अपनी पुरानी शैतानी राह पर लौट
	जाओगे ...पर मेरे लिए तुम्हारे इस बर्ताव के ज्यादा मायने नहीं क्योंकि तुम
	मेरी निगाहों से दूर रहोगे, बस मुझे तुम्हारी खुराफातों और कारस्तानियों का
	पता न चले... ईश्वर करे ऐसा ही हो ...मैं मानता हूँ कि तुम्हारा मेरा बाप बेटे
	का कोई रिश्ता है ही नहीं ...मुझे अपने लहू के उस कतरे पर शर्म आती है जो
	तुम्हारे बदन की बनावट में शामिल है... यदि मेरा वश चले तो मैं तुम्हारे
	गुर्दे के अंदर बह रहे अपने लहू को शाप दे दूँ कि उसमें कीड़े पड़ जाएँ। जिस दिन
	मुझे पता चला कि तुम राह चलते लोगों को लूटते हो, डाका डालते हो और कत्ल करते
	हो ...वो भी निर्दोष राहगीरों का कत्ल ...उस दिन से मेरे मन में तुम्हारे लिए
	ऐसी नफरत पैदा हो गई ...मेरी बात पर यकीन न आ रहा हो तो मेरे दोस्त
	ट्रैन्किलिनो से दरियाफ्त कर सकते हो ...उसी ने तुम्हारा बपतिस्मा किया था
	...तुम्हारा नाम भी उसी का रखा हुआ है ...अफसोस की बात कि तुम्हारे ही कारण
	उसको बहुत सारी जलालत भी भुगतनी पड़ी। जब तुम्हारी कारस्तानियों के बारे में यह
	सब मुझे पता चला तो मैंने फौरन निश्चय किया कि अब से तुम्हें मैं अपना बेटा
	नहीं मानूँगा... अब देखो, कहीं कुछ दिखाई पड़ रहा है? ...या फिर कोई आवाज सुनाई
	पड़ रही है? ...जो भी देख सुन पाओगे तुम्हीं कर पाओगे, मैं तो ऐसे ही बहरा बना
	हुआ मानुष हूँ।"
	"मुझे कहीं कुछ नहीं दिखाई दे रहा है।"
	"तुम्हारी किस्मत ही फूटी हुई है ...मैं क्या कर सकता हूँ।"
	"मुझे बहुत तेज प्यास लगी है।"
	"जरा ठहरो ...लगता है हम शहर के करीब तक पहुँच गए हैं ...हमारी बदकिस्मती है
	कि हमें यहाँ तक आते आते रात हो गई ...लोगों ने अपने अपने घरों की रोशनी बुझा
	दी है ...पर रोशनी न भी दिखाई दे तो कुत्तों का भौंकना तो सुनाई पड़ ही जाएगा
	...कान लगा कर सुनो, कहीं से कुछ आहट आ रही है?"
	"प्यास से मैं मरा जा रहा हूँ ...कहीं से भी मुझे पानी लाकर दो।"
	"मेरे पास पानी है कहाँ... आसपास दिखाई भी नहीं पड़ रहा है ...चारों और पत्थर
	ही पत्थर ...पर एक बात कान खोल कर सुन लो ...यदि मुझे पानी दिखाई दे भी जाता
	है तो मैं पानी पीने के लिए तुम्हें नीचे उतारने वाला नहीं ...दूर दूर तक जहाँ
	कोई परिंदा न दिखाई दे वहाँ तुम्हें दुबारा मेरे सिर के ऊपर चढाने में कौन मदद
	कौन करने आएगा भला... मेरे बस का अकेले तुम्हें जमीन से उठा कर सिर पर रख लेना
	नहीं है।"
	"लगता है तुरंत पानी नहीं मिला तो मेरी जान ही निकल जाएगी ...चलते चलते मैं थक
	भी बहुत गया हूँ।"
	"तुम्हारी बातें सुन के मुझे तुम्हारे जन्म का समय याद आ रहा है ...जन्म लेते
	ही तुम्हें जोर की प्यास लगी थी और भूख भी ...खा पी कर तुम गहरी नींद सो गए थे
	...तुम्हारी माँ की छाती में जितना दूध था तुम इसकी एक एक बूँद चूस गए फिर भी
	तुम्हारी राक्षसी भूख प्यास खतम नहीं हुई ...फिर माँ ने तुम्हें पानी पिलाया
	पर तुम इस से भी संतुष्ट नहीं हुए ...बचपन में तुम बेहद शरारती और उद्दंड थे,
	पर बचपन की शरारत देख के मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि बाद में तुम्हारे कारण
	हमें ऐसे दुर्दिन देखने पड़ेंगे ...मैंने जो सोचा भी नहीं था आखिर हुआ वही।
	तुम्हारी माँ हमेशा यही दुआ करती रही कि तुम खूब बलवान हट्टे कट्टे बाँके जवान
	बनो ...जीवन भर उसकी यही आस लगी रही कि बड़े होकर तुम उसकी परवरिश करोगे...
	दरअसल तुम्हारे सिवा उसके पास और था भी कौन? दूसरा बेटा तो सिर्फ उसकी जान
	लेने आया था - इधर उसने जन्म लिया उधर तुम्हारी माँ चल बसी... धरती पर पाँव
	रखते ही उसने माँ की जान ले ली ...गनीमत है तुम्हारी यह दुर्गति देखने को वो
	जीवित नहीं रही वर्ना उसको तो दुबारा शर्म से मरना पड़ता... बेचारी दुखियारी।"
	अचानक बूढ़े को एहसास हुआ कि उसके सिर के ऊपर रखी टोकरी में बैठा हुआ इनसान
	हिल-डुल नहीं रहा है, अपने गठरी जैसे शरीर को कभी इधर तो कभी उधर खिसका कर
	संतुलन बनाने की कोशिश भी नहीं कर रहा है ...और उसके सिर से पसीना ऐसे चू रहा
	है जैसे कातर रुलाई से मोटे मोटे आँसू गिर रहे हों।
	"इग्नेसियो ...इग्नेसियो ...तुम रो रहे हो? ...माँ की इतनी याद आ रही है?
	...पर अपने दिल पर हाथ रख के पूछो तुमने अपनी पूरी जिंदगी में कभी उसके लिए
	कुछ किया? ...हमें तो तुमने सिर्फ दुख, शर्म और अपमान ही दिए ...अब देखो जिनके
	साथ मिलकर तुमने यह सब किया उन्होंने बदले में तुम्हें क्या दिया - सिर्फ घाव
	न? दिन रात तुम्हारे लिए कसमें खाने वाले दोस्तों का भी क्या हस्र हुआ ...वे
	सब के सब भी आपसी लड़ाई झगड़ों में मारे गए ...पर उनके लिए रोने वाला कोई नहीं
	था ...वे कहा भी करते थे कि हमारे पीछे स्यापा करने वाला कोई नहीं है ...पर
	तुम्हारे अपने लोग तो थे इग्नेसियो - तुमने अपने लोगों को अपने कुकर्मों से
	संताप के सिवा क्या दिया?"
	शहर आ गया था ...घरों की छत पर चाँदनी बिखरी हुई थी ...पर जब आखिरी बार उसने
	अपनी कमर सीधी करने की कोशिश की तो बूढ़े को ऐसा लगा कि वो अपने बेटे के बोझ
	तले दबकर वहीं मर जाएगा। शहर में घुसते ही जो पहला मकान मिला बूढ़ा उसके पास
	थोड़ा ठहर कर सुस्ताने को हुआ - उसने सिर की टोकरी नीचे उतारने की कोशिश की तो
	उसको एकदम से महसूस हुआ जैसे शरीर का कोई अंग अचानक कट कर दूर जा गिरा हो ।
	अपनी गर्दन पर कस कर लिपटी हुई हथेलियाँ उसने बड़ी मुश्किल से ढीली कीं ...कान
	के ऊपर से बेटे की हथेली हटते ही उसको अपने चारों ओर कुत्तों का भौंकना सुनाई
	पड़ना शुरू हो गया।
	"ताज्जुब है, इतने सारे कुत्ते चारों ओर भौंक रहे हैं पर तुम्हें इनका भौंकना
	सुनाई नहीं पड़ा इग्नेसियो? ...समय रहते शहर तक पहुँच जाने और डाक्टर को दिखा
	देने के भरोसे को जिंदा रखने में भी तुमने मेरी मदद नहीं की... मरते हुए भी
	तुम अपनी हरकतों से बाज नहीं ही आए... जीते जी तो तुमने मेरे साथ दगा किया ही,
	मरते हुए भी मुझे नहीं बख्शा...।"