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कविता

ऊब के नीले पहाड़

लीना मल्होत्रा राव


कितना कुछ है मेरे और तुम्हारे बीच इस ऊब के अलावा

यह ठीक है तुम्हारे छूने से अब मुझे कोई सिहरन नहीं होती
और एक पलंग पर साथ लेटे हुए भी हम अक्सर एक दूसरे के साथ नहीं होते

मै चाहती हूँ कि तुम चले जाया करो अपने लंबे लंबे टूरों पर
तुम्हारा जाना मुझे मेरे और करीब ले आता है
तुम्हारे लौटने पर मैंने सँवरना भी छोड़ दिया है
तुम्हारी निगाहों से नहीं देखती अब मै खुद को

यह कितनी अजीब बात है कि ये धीरे धीरे मरता हुआ रिश्ता
कब पूरी तरह मर जाएगा इसका अहसास भी नहीं होगा हमें !!

लेकिन फिर भी
तुम्हारी अनुपस्थिति में जब किसी की बीमारी की खबर आती है
तो मुझे तुम्हारे सुन्न पड़ते पैरों कि चिंता होने लगती है

कोई नया पल जब मेरी जिंदगी में प्रस्फुटित होता है
तो बहुत दूर से ही पुकार के मैं तुम्हें बताना चाहती हूँ
कि आज कुछ ऐसा हुआ है कि मुझे तुम्हारा यहाँ न होना खल रहा है

कि तुम ही हो जिससे बात करते वक्त मैं नहीं सोचती की यह बात मुझे कहनी चाहिए या नहीं...

और जब मुझे ज्वर हो आता है
तुम्हारा हर मिनट फोन की घंटी बजाना और मेरा हाल पूछना
शायद वह ज्वर तुम्हारा ध्यान खींचने का बहाना ही होता था शुरू में
लेकिन अब
इसकी मुझे आदत हो गई है
और मैं ढूँढ़ ही नहीं पाती
वो दवा
जो तुम रात के दो बजे भी घर के किसी कोने से ढूँढ़ के ले आते हो मेरे लिए

और सिर्फ तुम ही जानते हो इस पूरी दुनिया में
कि सर्दियों में मेरे पैर सुबह तक ठंडे ही रहते हैं
कि मुझे बहुत गर्म चाय ही बहुत पसंद है
कि आइसक्रीम खाने के बाद मैं खुद को इतनी कैलरीज खाने के लिए कोसूँगी जरूर
कि तुम्हारे ड्राइविंग करते हुए फोन करने से मैं कितना चिढ़ जाती हूँ

कि जब तुम कहते हो बस अब मै मर रहा हूँ
तो मैं रुआँसी नहीं होती
उल्टा कहती हूँ तुमसे
५० लाख की इंश्योरेंस करवा लो ताकि मैं बाकी जिंदगी आराम से गुजार सकूँ
और फिर कितना हँसते हैं हम दोनों
इस तरह मौत से भी नहीं डरता ये हमारा रिश्ता
तो फिर ऊब से क्या डरेगा ??

ये हमारे बीच का कंफर्ट लेवल है न
यह उस ऊब के बाद ही पैदा होता है
क्योंकि

किसी को बहुत समझ लेना भी जानलेवा होता है प्रिय
कितनी ही बातें हम इसलिए नहीं कर पाते कि हम जानते होते हैं
कि क्या कहोगे तुम इस बात पर
और कैसे पटकूँगी मैं बर्तन जो तुम्हारा बी पी बढ़ा देगा
और इस तरह
खामोशी के पहाड़ों को नीला रँगते हुए ही दिन बीत जाता है
और उस पहाड़ का नुकीला शिखर हमारी नजरों की छुरियों से डरकर भुरभुराता रहता है

और जब तुम नहीं होते शहर में
मैं कभी सुबह की चाय नहीं पीती
अखबार भी यूँ ही तह लगाया पड़ा रहता है
खाना भी एक टाईम ही बनाती हूँ
और
और वह नीला रँगा पहाड़ धूसरित रंग में बदल जाता है

फोन पर चित्र नहीं दिखते इसलिए जब शब्द आवश्यक हो जाते हैं
और तुम
पूछते हो क्या कर रही हो
मैं कहती हूँ
बॉय फ्रेंड की हंटिंग के लिए जा रही हूँ

तुम शुभकामनाएँ देते हो
और कहते हो कि इस बार कोई अमीर आदमी ही ढूँढ़ना

ये डार्क ह्यूमर हमारे रिश्ते को कितनी शिद्दत से बचाए रखता है
और इस ऊब में उबल उबल कर कितना गाढ़ा हो गया है ये हमारा रिश्ता


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