दूर तक फैला आसमान
यूँ लगा जैसे बाँहें खोले हुए
माँ का आँचल देता है यकीन
कि मत डरो आगे बढ़ो
कुछ होगा तो हम हैं
कि हम हैं तुम्हें सँभालने को
तुम न गिरोगे न ठोकरें खाओगे
दूर-दूर तक दिखती जमीं भी
यही देती है यकीं
कि दौड़ जाओ, आगे बढ़ो, मुड़ो न कभी
माँ की बाँहों सी फैली ये जमीं
जो देती है एहसास
कि कोई है जो हम पर ममता भरी आँखों से
दिन रात जागकर रखता है नजर
कि ना हो जाएँ हम ओझल
क्योंकि हम हैं अंश उसका ही
जे अलग होकर भी
होता नहीं कभी भी अलग
जिंदगी के हर मोड़ पर
अलग-अलग रूप में
बाँहें फैलाए माँ मिलती है
हमसे दूर जाने के बाद भी
दूर कहीं जाती नहीं
क्योंकि हम असल में हम नहीं हैं
हम उसी माँ का हिस्सा हैं
जो अलग होके भी उसी से जुड़ा है
इस बंधन को बाँधने के लिए
कोई डोर नहीं होती
ये जुड़ा है ठीक है वैसे
जैसे जुड़ा है आसमान धरती से
यहाँ से वहाँ तक, वहाँ से यहाँ तक
जन्म से मृत्यु तक, मृत्यु से जन्म तक
माँ मुझे पता है तुम अब भी हो यहीं कहीं
धरती और आसमान के बीच हर जगह
लेकिन मेरे बहुत ही पास
इतना कि मैं गिरूँ तो तुम थाम लो
मैं भटकूँ तो तुम सही राह दो
मैं सोऊँ तो तेरी लोरी कानों में गुनगुना उठे
मैं जागूँ तो अपने सपने याद रहें
तुम मुझमें ही कहीं हो माँ
ऐ माँ तुम मेरी हो...