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कविता

एक घटना

संध्या रियाज़


अचानक एक दिन
घट गई एक घटना
पल रहा था जो अंदर मेरे
धीरे धीरे हौले हौले
देता था खुशी लेता था गम
गुजरते गए इसी तरह कुछ महीने कुछ दिन
चहकता था मन पाकर एहसास उसका

अचानक उस शाम जाने क्या हो गया
अस्तित्व उसका पिघलने लगा
शरीर उसका मरने लगा
दिल मेरा भी डूबता गया मरता गया साथ उसके
जैसे धीमी-धीमी धूप को खाने लगी हो घटा कोई
ऐसे ही खाने लगा उसका खोना
मेरी खुशी के हर कोने को
और फिर धीरे-धीरे हो गया सब खत्म

जो पल रहा था ले रहा था साँस
धीरे धीरे हौले हौले
एक ही झटके में छोड़ गया संबंध
बस छोड़ गया एक एहसास
कि कभी कुछ महीने
बिना जान पहचान के
था बहुत अटूट संबंध उसका और मेरा
हाँ मुझसे मुझ तक ही
पर अब बिखर गया, खो गया, टूट गया
बिना पुकारे, बिना मिले मुझसे
हाय!
मेरा प्यारा नन्हा सा हिस्सा
खो गया हमेशा हमेशा के लिए


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