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कविता

फूल

संध्या रियाज़


फूल किस पेड़ से उपजा है कौन पूछता है
पूछो बस इतना कि कौन सा
फूल कितने दिन किस रंग में
कितनी खुशबू देता है
पेड़ किस काम आएगा काट के किसी दिन
किसी लाश के साथ जला दिया जाएगा
फूल जब तक खिला है रंगीन है खुशबू देता है
हमेशा पूछा और पूजा जाता है
फूल को याद है पेड़
और पेड़ भी चाहता है फूलों को
पर ये भी सच है कि दोनों का साथ रहना
नियति नहीं है
कोई तोड़ लेता है
कोई टूट जाता है और कोई
मुरझा के नीचे गिर किसी के पैरों तले
कुचला जाता है

फूलों के अलग रंग होते हैं
अलग खुशबू होती है और
और अलग आकार होता है
पर इनसान हर फूल की खासियत
एक फूल में सँजोकर
अपने घर में सजाना चाहता है
फूलों ने भी किसी हद तक
समझौता कर लिया है
एक फूल कई रंगों में पैदा होने लगता है
खुशबू भी बदलने की कोशिश करता है
आकार भी थोड़ा बहुत बदल लेता है
पर पूर्ण होना तो संभव नहीं
तो दो-चार दिन साख पाकर मुस्कराता है
मुरझाते ही किसी डिब्बे या तालाब में
फेंका जाता है
तब फूल को पेड़ बहुत याद आता है
काश! फूल फिर पेड़ जा लगता
ये पेड़ भी सोचता है और फूल भी।


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