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कविता

वे तीन

कृष्णमोहन झा


ढेर सारे शब्द हैं उसके पास
एवं घटना
अथवा दुर्घटना को
जीवंत तथा प्रामाणिक बनाने के लिए
उसके पास उतनी ही चित्रात्मक और मुहावरेदार भाषा है
जितनी यह दुर्लभ समझ
कि सिर्फ वह जानता है कि हकीकत क्या है
दूसरे के पास
खून में लिथड़ा हुआ चेहरा
और एक अटूट थरथराहट के सिवा
कहने के लिए कुछ भी शेष नहीं है
या तो जान बचाने में कट गई है उसकी जीभ
या वह बताने के काबिल ही न रहे
इसलिए काट ली गई है।

जिसने सबसे निकट से जाना इस बर्बरता को
उसे ज्यों का त्यों बताने के लिए
अब हमारे बीच नहीं है।


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हिंदी समय में कृष्णमोहन झा की रचनाएँ