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विमर्श

बदलाव रचती स्त्रियाँ

अवंतिका शुक्ल


हिंदी में महिला मुद्दों पर लेखन का वितान धीरे-धीरे काफी बढ़ता जा रहा है। इसकी वृद्धि में लेखिकाओं की बहुत ही सराहनीय भूमिका है। हिंदी में लेखन कार्य करने वाली तमाम लेखिकाओं पर आरोप लगता रहा है कि उन्होंने स्त्री जीवन की जटिलताओं को सिर्फ मध्यवर्गीय महिलाओं या यौनिकता के मुद्दों तक ही सीमित रखा है और उसे अपने लेखन का मुद्दा बनाया है। लेकिन धीरे-धीरे इस विमर्श को विस्तार देते हुए इससे इतर मुद्दों को भी कहानी, उपन्यास, कविताओं और आलेखों के माध्यम से सामने लाया गया है, जिससे स्त्री जीवन के विभिन्न आयाम समाज के सामने प्रकट हो सके। इससे हिंदी में स्त्री जीवन पर होने वाले शोध पर भी बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। लेखन की इसी शृंखला में सामयिक प्रकाशन द्वारा 2016 में प्रसिद्ध लेखिका शरद सिंह की पुस्तक "औरत तीन तस्वीरें" आई है।

इस पुस्तक की सबसे खास बात यह है कि लगभग 54 आलेखों के माध्यम से यह स्त्री जीवन के ढेरों ऐसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को सामने लाती है, जिस पर बहुत विस्तृत शोध कार्य की संभावनाएँ हैं और शोध की दृष्टि से यह क्षेत्र बहुत उपयोगी और एक नवीन ज्ञान को हमारे समक्ष प्रस्तुत करने वाले होंगे। इस पुस्तक के आलेखों को तीन हिस्सों में बाँटा गया है। यह हिस्से बकौल शरद सिंह औरत की तीन तसवीरों या कहें कि तीन स्वरूपों, स्त्री जीवन की तीन वास्तविकताओं को हमारे सामने लाने का काम करती है। पहले हिस्से में उन महिलाओं पर बात की गई है, जो कि किसी भी स्त्री के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन सकती हैं। इन्होंने अपनी शिक्षा, राजनीति, आंदोलनों आदि में सक्रिय सहभागिता करके अपना मुकाम हासिल किया। ये स्त्रियों ने कई परंपराओं को तोड़ा भी। ये स्त्रीवाद की सक्रिय कार्यकर्ता कही जा सकती हैं। इन स्त्रियों के लिए शरद सिंह कहती हैं कि -

पहली तसवीर उन औरतों की है, जो अपने साहस, अपनी क्षमता और अपनी योग्यता को साबित करके पुरुषों की बराबरी करती हुई प्रथम पंक्ति में आ गईं हैं या प्रथम पंक्ति के करीब हैं... चाहें भारत हो या इस्लामिक देश, औरतें अपने अधिकार के लिए डटी हुई हैं। वे चुनाव लड़ रही हैं कानून सीख रही हैं, आत्मरक्षा के गुर सीख रही हैं और आम लोगों के लिए आइकॉन बन रही हैं।

दूसरे हिस्से में उन स्त्रियों को प्रस्तुत किया गया है, जिन्हें स्त्रियोचितता के खाँचे में रखा गया। एक सीमित संरचना के भीतर उन्होंने अपना जीवनयापन किया। परंपरावादी ढाँचे के भीतर वे रहीं, लेकिन उस ढाँचे के भीतर भी उन्होंने अपनी एक सत्ता विकसित की, अपना सम्मान स्थापित किया। कोमलता के साथ सशक्तता भी उनका आभूषण बनी। उनकी शक्ति को उभारने में जहाँ उनकी अंतःप्रेरणा ने भूमिका निभाई, वहीं तमाम पुरुषों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही, जिन्होंने अपने लेखन और जागरूकता अभियान के माध्यम से स्त्रियों के मुद्दों को केंद्र में लाने का प्रयास किया।

शरद सिंह कहती हैं ये औरतें संपूर्ण स्त्री के साँचे में ढली हुई हैं। इनमें स्त्रियोचित लावण्य है, ये अपने जीवन को ढंग से जी सकती है, इनका अपने शरीर और मानस पर अधिकार है और ये पुरुष की सहचरी और पूरक के रूप में सामने आती हैं। 'अबला जीवन' की कहानी सिक्के का एक पहलू है, दूसरा पहलू समाज में औरतों की उस सम्मानजनक स्थिति का है, जिसकी रूपरेखा साहित्यकारों, चिंतकों एवं विचारकों ने तैयार की स्त्री के इस स्वरूप का विश्लेषण करना आवश्यक होगा कि इस सम्मानजनक स्थिति और मानस पर अपने अधिकार से वह किस हद तक पितृसत्ता का प्रतिरोध कर पाईं। क्या ऐसी स्थिति भी उत्पन्न हुई जिसमें उसके प्रतिरोध को पितृसत्ता द्वारा आत्मसात कर लिया गया।

तीसरे हिस्से में उन महिलाओं के जीवन को प्रस्तुत किया गया है, जिसमें औरतें लगातार घुटन भरे वातावरण में विभिन्न प्रकार की प्रताड़नाओं को सहने के लिए विवश हैं। उनके पास अधिकार हैं, लेकिन उस चेतना का अभाव है, जो उस अधिकार का उपयोग करने की ताकत देती है। भीतर अहसास-ए-कमतरी बैठी हुई है, जो किसी भी सूरत में अपने प्रति होने वाले अन्याय के खिलाफ खड़े नहीं होने दे रही है। स्त्री के तीसरे स्वरूप को व्याख्यायित करते हुए शरद सिंह कहती हैं -

'वे निर्भया होना चाहती हैं, लेकिन हैं नहीं, उन्हें सभी प्रकार के वैधानिक अधिकारों से लैस कर दिया गया है, लेकिन वे स्वयं अज्ञानी हैं, अपने अधिकारों से बेखबर। वस्तुतः यदि स्त्रियाँ सामाजिक प्रताड़ना की शिकार हैं तो उसका सबसे बड़ा कारण उनकी अपनी हिचक भी है। एक ऐसी हिचक जिसमें वे यह सोच कर रह जाती हैं कि 'भला मैं क्या कर सकती हूँ?'

इस प्रकार तीन प्रकार की स्त्रियों या कहें कि तीन हालातों में रह रही स्त्रियों के जीवन, जीवन की जटिलताओं, उनके संघर्षों, उनके अनुभवों को इस पुस्तक का आधार बनाया गया है। इन तीन हालातों के भीतर अलग-अलग दिशाओं की स्त्रियों, उनकी अलग-अलग जीवन परिस्थितियों को चर्चा के केंद्र में लाया गया है। इस पुस्तक में सिर्फ छत्तीसगढ़, मणिपुर, नागालैंड, भारतीय ही नहीं हैं, बल्कि विश्व के भिन्न-भिन्न भौगोलिक क्षेत्रों जैसे फ्रांस, कनाडा, अरब, सूडान, लीबिया, नेपाल, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, भूटान, आदि की स्त्रियों के मुद्दों को शामिल करके स्त्री मुद्दों के प्रति एक विस्तृत सोच बनाने की कोशिश की गई है। इस पुस्तक के माध्यम से, खास तौर पर दक्षिण एशिया की महिलाओं के मुद्दे एक साथ जोड़ कर देखने में काफी सुविधा मिलती है। पाठक इस बात को महसूस कर सकता है कि विश्व की तमाम महिलाओं के जीवन अलग-अलग हैं, उन पर क्षेत्रीय, वर्गीय, नस्लीय, जातीय तमाम तरह की विभिन्नताओं के प्रभाव रहते हैं, जिससे उनके उत्पीड़न में भी बहुत भिन्नताएँ दिखाई देती हैं, फिर भी इन सभी भिन्नताओं के बावजूद उनके शोषण में बहुत समानता है, तो उन्हें अपने मुक्ति संघर्ष के लिए भी एक साथ आना होगा।

औरत की पहली तसवीर, जिसमें संघर्षरत स्त्रियों को शामिल किया गया है, उसमें भारत के मणिपुर की इरोम शर्मिला, पाकिस्तान की फातिमा भुट्टो, तुर्की की गुलसिरीन, यमन की तवक्कुल कारमान, स्वातघाटी की साईमा अनवर, दक्षिणी सूडान की अगिएर नूनू कुंबा, नेपाल की अनुराधा कोईराला आदि ढेरों महिलाओं की कहानियों के माध्यम से महिलाओं के दोयम दर्जे की स्थिति के बदलाव की रणनीतियों को बताया है, इरोम शर्मिला मणिपुर की एक ऐसी महिला थीं, जिन्होंने 16 वर्ष भूख हड़ताल करके मणिपुर में आफ्स्पा और सैन्यीकरण का विरोध किया। उन्हें आत्महत्या के प्रयास का आरोप में लगातार कैद में रखा गया। शर्मिला का लगातार कहना था कि "मुझे अपने जीवन से प्यार है। मैं अपनी जान नहीं देना चाहती ...अगर आत्महत्या करना चाहती तो शायद अब तक मर गई होती। मेरा प्रदर्शन अहिंसक रहा है और मुझे सिर्फ इनसानों की तरह जीना है।" इरोम ने स्पष्ट किया कि वह मणिपुर की जनता की आफ्स्पा से मुक्ति और अपनी जनता के नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए वे संघर्ष कर रही हैं।

'गुलसिरीन का सपना' में तुर्की का इतिहास और उसके एक धर्मनिरपेक्ष देश बनने की यात्रा को दर्शाया गया है। इसमें महिलाओं के अधिकारों को लेकर आगे आने वाली सी.एच.पी. पार्टी की गुलसिरीन और कीमाल किलिक्डारीग्लू के प्रयासों को भी स्थान दिया गया है। कीमाल किलिक्डारीग्लू कहती हैं कि "हम विश्वास करते हैं कि औरतों को दिए गए अधिकार औरतों की समस्या को तो हल करेंगे ही, साथ ही पुरुषों की समस्याओं को भी हल करेंगे।"

टर्किश वूमेंस एसोसिएशन की सदस्य के रूप में भी ये महिलाएँ, हिंसा, राजनैतिक सहभागिता, व्यावसायिक मजबूती आदि के लिए प्रयासरत हैं। शांति के लिए नोबल पुरस्कार विजेता तवक्कुल करमान पर भी 'क्रांति की माँ तवक्कुल करमान' नाम से आलेख है। इस आलेख में यमन के सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक हालातों पर बात की गई है। यह देश कुपोषण, बेरोजगारी, बिजली जैसी आधारभूत समस्या से जूझ रहा है। जहाँ तक स्त्रियों की बात है, इस देश में स्त्री शिक्षा, स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता न्यूनतम है, साथ ही देश में व्याप्त कट्टरपंथी वातावरण में महिलाओं को अपने जीवन के फैसले लेने का भी अधिकार नहीं है। उदार विचारों वाली तवक्कुल यमन के तानाशाह के खिलाफ क्रांति और परिवर्तन की राह चुनकर आगे बढ़ती रहीं। वे यमन में महिला, पुरुष दोनों के लिए लोकतांत्रिक व उदार वातावरण के लिए प्रतिबद्ध हैं।

इसी प्रकार अन्य लेखों जैसे कि 'स्वात घाटी की साईमा अनवर', 'अनुराधा कोईराला से कमला रोका तक', 'एक थी चंपा' आदि आलेखों में महिलाओं के अपनी और समाज की मुक्ति के प्रयासों को उस देश की सांस्कृतिक, आर्थिक, सामाजिक, ऐतिहासिक सांस्कृतिक स्थितियों के निर्माण के साथ जोड़कर प्रस्तुत किया गया है। विभिन्न देशों में महिलाओं के सामूहिक प्रयासों, जिन्होंने आंदोलन का रूप भी लिया, पर भी कई आलेख लिखे गए हैं। 'अपनी नियति बदलने की दिशा में नेपाली औरतें' में राजनैतिक अस्थिरता से जूझ रहे देश में महिलाओं के व्यापार पर बात करते हुए साफा ऑटो रिक्शा परिवहन बात की गई। यह नेपाल का सबसे लोकप्रिय परिवहन साधन है, जिसे 400 से अधिक महिला चालक चलाती हैं। जहाँ वे इस रोजगार के माध्यम से अपने घर चलाती हैं, वहीं वे खुद को इस पुरुष प्रधान रोजगार के साधन में स्थापित भी कर रहीं हैं। 'भूटानी स्त्री और करवट लेता समाज', 'दक्षिणी सूडान की स्वतंत्रता और स्त्री शक्ति', 'गद्दाफी के देश में औरतें', 'नशीली दवाओं के विरुद्ध अरब की औरतें' जैसे तमाम आलेख शामिल किए गए हैं, जिनमें महिलाएँ अपने देश के अस्थिर हालातों का सामना करते हुए देश में महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए प्रयासरत हैं।

औरत की दूसरी तसवीर में साहित्य को केंद्र बनाया गया है। इसमें टैगोर, नागार्जुन, ईसुरी कवि, जैसे साहित्य प्रेमियों को शामिल किया गया है, वहीं पं. मदन मोहन मालवीय के स्त्री विषयक विचारों पर भी विस्तार से चर्चा की गई है। इन सभी के माध्यम से स्त्री विषयक मुद्दों पर बेहतर साहित्य रचने और लोगों की बेहतर समझ बनाने के लिए पुरुषों के योगदान को भी प्रस्तुत किया गया है। इस खंड में बुंदेली लोक साहित्य को भी स्थान दिया गया है, जिसमें लोक में प्रचिलित कथाओं एवं काव्य दोनों को शामिल किया गया है। बुंदेलखंड की प्रसिद्ध लोककथा दसामाता की कहानी के माध्यम से लोक कथाओं की पुनर्व्याख्या से मिलने वाले नए अर्थों को प्रस्तुत किया गया है। शोध के क्षेत्र में लोक कथाओं की पुनर्व्याख्या ज्ञान के नए रास्ते हमारे सामने खोलती है। इस लोककथा के संदर्भ में शरद सिंह कहती हैं कि -

'इस कथा की नायिका राजपूत काल में कटार से विवाह करा दिए जाने पर कटार के साथ जीवन बिताने तथा कतार के साथ सती हो जाने वाली तथाकथित 'वीरांगना स्त्री' नहीं है वरन विवाहेत्तर पुरुष से संतान उत्पन्न करके उसे पति के रूप में तथा संतान को वैध संतान के रूप में समाज में स्थान दिलाने वाली दृढ़ स्त्री है।'

पुस्तक : औरत तीन तस्वीरें

लेखिका : शरद सिंह

प्रकाशक : सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली

वर्ष : 2016


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