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कविता

अगस्त के बादल

सुरेन्द्र स्निग्ध


ऊँची
विशाल
हरी-भरी पहाड़ियों के
चौड़े कंधे पर
शरारती बच्चों की तरह
लदे हुए हैं
अगस्त के बादल

दूध से भरे
भारी थन से
या चाँदनी से लबालब कटोरे से
छलक-छलक रहे हैं
अगस्त के बादल

मेरे मन मस्तिष्क में
तुम्हारी याद की तरह सघन
और बरस जाने को आकुल
आतुर
घिर रहे हैं
मन मिजाज पर
अगस्त के बादल।


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