शोध सारांश
सरकार द्वारा समय-समय पर जनता के कल्याण के लिए नीतियों, योजनाओं और कार्यक्रम का निर्माण किया जाता है इन योजनाओं को जनता तक पहुँचाने के लिए विभिन्न जनसंचार माध्यमों जैसे - टेलीविजन, रेडियो, अखबार और वेबसाइट पर योजनाओं के विज्ञापन प्रसारित किए जाते हैं। जिससे जनता को सरकार द्वारा किए कार्यों के विषय में जानकारी मिलती है। सरकारी योजनाएँ लगभग सभी क्षेत्रों जैसे - शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक आदि अन्य क्षेत्रों में बनती रहती है। ये सभी योजनाएँ समाज के विकास के लिए जरूरी है। सभी विकासात्मक योजनाओं पर कार्य करना संभव नहीं है। अतः प्रस्तुत शोध पत्र में चार योजनाओं मनरेगा, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर, खाद्य सुरक्षा और स्वच्छ भारत अभियान पर कार्य किया है। यह शोध कार्य दो गाँवों पर किया गया है। प्रस्तुत शोध पत्र में सरकारी योजनाओं के विज्ञापन के प्रति ग्रामीणों में फैली जागरूकता और जानकारी का अध्ययन किया है। इसके लिए एलेबोरेसन लाइकली हुड मॉडल को आधार बनाया है और शोध प्रविधि के रूप में अनुसूची प्रश्नावली और अवलोकन को अपनाया है। प्रश्नावली का विश्लेषण चार्ट और ग्राफ के माध्यम से प्रतिशत विधि द्वारा किया है।
प्रस्तावना
विज्ञापन संचार का सबसे प्रभावशाली और महत्वपूर्ण साधन है। सिनेमा के बाद विज्ञापन समाज को शिक्षित, प्रोत्साहित और जागरूक करने का अतुलनीय साधन है। विज्ञापन कम समयावधि में ही लोगों के मन मस्तिष्क पर अमिट छापा छोड़ता है। विज्ञापन की परिभाषा एच. फ्रेजर मूर के अनुसार - "विज्ञापन लोकहित के प्रोत्साहन के लिए किया जाता है। अतः वह लोकसेवा है।" तथा नाइस्ट्रोम के अनुसार - "विज्ञापन वह वाहक अथवा माध्यम है जिसके द्वारा विज्ञापित संदेश एक व्यक्ति या समुदाय को प्रभावित करने की दृष्टि से पहुँचाया जाता है।"
इस प्रकार विज्ञापन का प्रभाव मनोवैज्ञानिक होता है। यह लोगों को दिशा निर्देशित कर कुछ करने के लिए प्रेरित करते हैं। आज के दौर में विज्ञापन हर जगह उपलब्ध है। आज के अखबार खबरों से ज्यादा विज्ञापन से भरे होते हैं। सरकारी इमारतों, होर्डिंग्स और टेलीविजन कार्यक्रम सभी जगहों में विज्ञापन की पहुँच मुख्य विषय-वस्तु से ज्यादा है। हो भी क्यों ना। कोई भी मीडिया संस्थान बिना विज्ञापन के लंबे समय तक सुचारु रूप से नहीं चल सकता है। यह मीडिया संस्थान की आय का प्रमुख स्रोत है इसलिए इन संस्थानों में विज्ञापन प्राप्त करने की होड़ लगी रहती है।
सरकारी विज्ञापनों के संदर्भ में डिपार्टमेंट ऑफ एडवरटाइजिंग एंड विजुअल पब्लिसिटी के निर्देशक आर. श्रीनिवासन ने एक लेख 'गवर्नमेंट एडवरटाइजिंग इन इंडिया' में कहा था - "आजादी के बाद से हमारा देश कई लोक-कल्याणकारी उद्देश्यों के लिए विज्ञापन का सहारा लेता आ रहा है और इससे उत्साहजनक परिणाम निकले हैं। इसने लोगों में जोश जगाया है, लोगों को एकता के सूत्र में बांधा है और इसने उन्हें आगे बढ़ाया है।" इस प्रकार से सरकारी योजनाओं को विज्ञापन के माध्यम से जन-जन को अवगत कराया जाता है।
सरकारी विज्ञापन सरकार द्वारा प्रायोजित होते हैं। सरकार इन पर अरबों रुपये खर्च करती है। इन योजनाओं के विज्ञापन पर खर्च होने वाला रुपया आम आदमी का होता है। अतः यह जानना बहुत आवश्यक है कि किन कमियों और खामियों की वजह से लोग इन योजनाओं का लाभ लेने से वंचित रह जाते हैं। प्रस्तुत शोध पत्र में सरकारी योजनाओं से संबंधित विज्ञापनों पर कार्य किया है। जिसमें सरकारी योजनाओं और विज्ञापन से जुड़े तथ्यों को आधार बनाकर ग्रामीण जनता में फैली जागरूकता का अध्ययन किया है और इस अध्ययन हेतु 'एलेबोरेसन लाइकली हुड मॉडल' को आधार बनाया है।
साहित्य का पुनरावलोकन
दिशा प्राराशर और डॉ. महेश परिमल ने 'ब्रांड चाइल्ड' किताब में लिखा है कि 6 महीने का बच्चा कंपनी के 'लोगो' को पहचान सकता है। 3 साल का बच्चा ब्रांड को उसके नाम से जान सकता है और 11 साल का बच्चा किसी ब्रांड पर अपने विचार रखा सकता है। डॉ. संजीव भानावत के अनुसार वर्ष 1993 में गैल्प इंटरनेशनल का एक विश्वस्तरीय सर्वेक्षण बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस सर्वेक्षण में 22 देशों के 2000 उपभोक्ताओं का शामिल किया गया और विज्ञापन के प्रति उनके दृष्टिकोण को जानने का प्रयास किया गया। पहले के कम्युनिस्ट देशों में सभी ने विज्ञापन के प्रति सकारात्मक नजरिया दिखाया था। ये एक विशेष प्रकार के उपभोक्तावादी पश्चिमी पूँजीवाद का प्रतीक था। इसके विपरीत पूर्व जर्मनी के उपभोक्ताओं में विज्ञापन के प्रति नकारात्मक नजरिया था। वहीं जापान, उरुग्वे तथा बुल्गारिया भी विज्ञापन को सकारात्मक रूप में मानते है। इस सर्वेक्षण के मुताबिक जापान के लोग ये मानने को तैयार नहीं थे कि विज्ञापन समाज में नकारात्मक भावना को विकसित करने में सहायता करता है। जापान के लोगों का कहना था कि अगर विज्ञापन पर किसी प्रकार का प्रतिबंध लगाया गया तो समाज को इसकी कमी महसूस होगी। सर्वे में केवल मिस्र ही ऐसा देश पाया गया जहाँ के सारे उत्तरदाता विज्ञापन के विरोध थे। इंटरनेशनल एडवरटाइजिंग एसोसिएशन के पूर्व निदेशक नॉरमन वेल का यह कहना था कि विज्ञापन लोगों को स्वस्थ एवं नवीन अर्थव्यवस्था की ओर उन्मुख करता है।
शोध उद्देश्य
1. सरकारी योजनाओं के विज्ञापन की आवश्यकता का अध्ययन करना।
2. सरकारी योजनाओं के विज्ञापन के महत्व को जानना।
3. सरकारी विज्ञापनों से लोगों में फैली जागरूकता का अध्ययन करना।
शोध प्रश्न
1. क्या लोग सरकारी विज्ञापनों को लेकर जागरूक नहीं हैं?
2. क्या लोगों की सरकारी विज्ञापनों तक पहुँच नहीं है?
3. क्या लोगों को सरकारी योजनाओं के विज्ञापन की आवश्यकता नहीं है?
4. क्या लोग सरकारी योजनाओं के विज्ञापन को समझ नहीं पाते हैं?
शोध क्षेत्र
प्रस्तुत शोध लखनऊ जिले के पास स्थित ढोरवा गाँव और फैजुलागंज में किया है। यह गाँव शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर है। यहाँ भारत सरकार की कई योजनाएँ लागू है। यहाँ का सामाजिक परिवेश ग्रामीण है बिजली 10 से 12 घंटे रहती है। अखबार तो नहीं लेकिन टीवी अधिकतर घरों में है।
शोध का महत्व और उपयोगिता
प्रस्तुत शोध बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि सरकार सरकारी योजनाएँ में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए विज्ञापन पर अरबों रुपये खर्च करती है। अतः विज्ञापनों के लक्षित समूह पर पड़े प्रभाव को जानना आवश्यक है।
शोध की सैद्धांतिक संरचना
प्रस्तुत शोध 'एलेबोरेसन लाइकली हुड मॉडल' पर आधारित है। यह मॉडल मनोविज्ञान के क्षेत्र से लिया गया है। यह मॉडल विज्ञापन के क्षेत्र में बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस मॉडल को 1985 में Cacioppo, John T. और Richard E. Petty ने विकसित किया था। कोई भी व्यक्ति किसी भी चीज को अपने अनुभव के आधार पर समझता है। उसी के अनुरूप उसकी सोच और समझ विकसित होती है और वह उसी के अनुसार व्यवहार भी करता है। विज्ञापन की महत्वपूर्ण भूमिका भी लोगों को प्रोत्साहित करने में होती है। यह लोगों को नए विचारों, उत्पादों और सेवाओं के विषय में अवगत कराता है। विज्ञापन कैसे लक्षित समूह के व्यवहार को नियंत्रित करता है और कैसे उनके व्यवहार में परिवर्तन लाता है यही इस मॉडल का आधार है।
इस मॉडल में विज्ञापन से प्राप्त सूचनाओं के प्रति लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए दो मार्ग बताए गए हैं - 1. Central Route (सेंट्रल रूट), 2. Peripheral Route (पेरीफेरल रूट)। व्यवहार परिवर्तन में इन रूट्स की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जनमाध्यमों में प्रसारित सभी विज्ञापन लोगों को प्रभावित नहीं करते है। क्योंकि सभी विज्ञापन व्यवहार परिवर्तन के लिए नहीं होते है। कुछ ही विज्ञापन लोगों को प्रभावित करते है ये उनके व्यवहार में भी परिलक्षित होता है।
कैसिपो के एलेबोरेसन लाइकली हुड मॉडल में केवल दो रूट्स को दिखाया गया था। Gerard J. Tellis ने मॉडिफाइड एलेबोरेसन लाइकली हुड मॉडल में उन दर्शक वर्ग को भी स्थान दिया गया है जो सूचनाओं को देखकर प्रोत्साहित नहीं होते हैं। इसके लिए विभिन्न कारणों को भी बताया है। जैसे mere exposure अर्थात विज्ञापन का बार-बार न दिखाया जाना, सॉफ्ट सेल - विज्ञापन का बहुत आकर्षक न होना, विज्ञापन में चेतना की कमी होना, विज्ञापन में प्रेरक तत्वों का न होना आदि। इस रूट का लक्षित समूह विज्ञापन के प्रति निष्क्रिय होता है।
शोध प्रविधि
प्रस्तुत शोध से संबंधित जानकारी जुटाने के लिए प्रश्नावली का प्रयोग किया गया है। यह प्रश्नावली अनुसूची विधि से भरवाई गई है। अनुसूची उन लोगों से भरवाई गई है जो शोध संबंधी जानकारी देने में सक्षम है। अनुसूची 300 लोगों से भरवाई गई है। जिसमें 140 महिला और 160 पुरुष को शामिल किया गया है। अनुसूची उद्देश्यपूर्ण या निर्णयात्मक निदर्शन के अनुसार भरवाई गई है। अवलोकन सूचनाओं को एकत्रित करने की स्वतंत्र शोध प्रविधि है। इस शोध प्रविधि का उपयोग तब किया जाता है जब व्यवहार और विशेष परिस्थिति का अध्ययन करना हो। अवलोकन नेत्रों द्वारा किया जाने वाला निरीक्षण है। अवलोकन का प्रयोग किसी लक्षित समूह के जीवन स्तर का अध्ययन करने और उसके कारण और परिणामों को जानने के लिए किया है। प्रस्तुत शोध में अवलोकन का कार्य शोधार्थी द्वारा स्वयं किया गया है। शोध क्षेत्र में सरकारी योजनाओं के विज्ञापन लोगों को दिखाते समय उनका अवलोकन किया गया है।
1 . मनरेगा (महात्मा गांधी रोजगार गारंटी)
महात्मा गांधी रोजगार गारंटी भारत सरकार की बहुत ही महत्वपूर्ण सामाजिक सुरक्षा की योजना है। जिसके तहत ग्रामीण जनता को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराने का प्रावधान है। जिसमें स्त्री और पुरुष दोनों को समान वेतन देने का प्रावधान है। काम के बाद 15 दिन में पूरी मजदूरी बैंक या पोस्ट ऑफिस से ली जा सकती है।
मनरेगा का जो विज्ञापन प्रस्तुत शोध के लिए लिया है। यह तीन विज्ञापनों की एक श्रृंखला है। इसमें सभी विज्ञापन 30 सेकंड के है। यानि कि कुल 1 मिनट तथा 20 सेकंड के है। यह विज्ञापन भारत सरकार के ग्रामीण मंत्रालय द्वारा जारी किया गया है। इस विज्ञापन को NFDC के द्वारा निर्देशित किया गया है। मनरेगा भारत सरकार की ऐसी योजना है जिसमें समय-समय पर अनियमिता देखने और सुनने को मिलती है और इसमें कई घोटाले भी हुए है और भष्ट्राचार भी हुए है, इसलिए इसके प्रति जागरूकता की अत्यंत आवश्यकता है।
मनरेगा का विज्ञापन महात्मा गांधी रोजगार गारंटी कानून की लगभग पूरी जानकारी लक्षित समूह तक पहुँचाने का कार्य करता है। इस विज्ञापन में सभी प्रकार की जानकारी जैसे जॉब कार्ड कहाँ से बनेगा? क्या काम इस योजना के तहत करना होता है? मजदूरी कहाँ से मिलेगी? सब जानकारी लक्षित समूह तक पहुँचाने का प्रयास करता है।
इस विज्ञापन में मनरेगा के विषय में संपूर्ण जानकारी बहुत ही सरल भाषा और साधारण शब्दों में दी जा रही है। विज्ञापन का परिवेश भी ग्रामीण है। महात्मा गांधी रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 में पास हुआ। उस समय यह कुछ क्षेत्रों में ही लागू हुआ था पर 2008 में पूरे भारत के ग्रामीण इलाकों पर लागू हुआ है।
2 . खाद्य सुरक्षा योजना
खाद्य सुरक्षा योजना एक ऐसी योजना है जिसमें गरीब परिवारों को कम मूल्य पर अनाज उपलब्ध कराने का प्रावधान है। इसके तहत 3 रुपये किलो चावल, 2 रुपये किलो गेहूँ और 1 रुपये किलो मोटा अनाज गरीबों को मिल सकेगा। एक व्यक्ति के हिसाब से 5 किलो अनाज तथा 35 किलो अनाज अधिकतम एक महीने में किसी परिवार को मिलता है। इसके लिए अध्यादेश संसद में 5 जुलाई 2013 को लाया गया है। जो अब पास हो चुका हैं। जिसके तहत देश की 85 प्रतिशत जनसंख्या को शामिल किया गया है।
इस विज्ञापन की अवधि 59 सेकंड है। यह विज्ञापन भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा जारी किया गया है। यह विज्ञापन भारत सरकार की विज्ञापन संस्था डायरेक्टरेट ऑफ एडवरटाइजिंग एंड विसुअल पब्लिसिटी द्वारा बनाया गया है। जिसका उद्देश्य लोगों को जागरूक करना है। विज्ञापन की पृष्ठभूमि में गरीबों की वास्तविक स्थिति को दिखाने का प्रयास किया गया है। यह विज्ञापन वास्तविक स्थिति को ध्यान में रखकर बनाया गया है। विज्ञापन का वातावरण भी जनसाधारण की स्थिति को दिखता है।
3 . डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर योजना
डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर योजना विज्ञापन की अवधि 1 मिनट 5 सेकंड है। यह विज्ञापन भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा विज्ञापित किया गया है। यह विज्ञापन अनुप्रिया गोयनका द्वारा निर्देशित किया गया है। इसके तहत छात्रों की छात्रवृत्ति, सब्सिडी और सभी प्रकार के सरकारी भुगतान जैसे - विधवा पेंशन, वृद्धा पेंशन, मनरेगा का पैसा, जननी सुरक्षा का पैसा आदि का भुगतान सरकार द्वारा सीधे लाभार्थी के बैंक खाते में किया जाता है इससे जो बिचौलिये का सामना जनता को करना पड़ता था वो काफी हद तक खत्म हुआ है।
हमारे देश में करीब 35 प्रतिशत जनसंख्या अभी भी अशिक्षित है। उनमें जानकारी का अभाव है। जिस कारण से वे अपने कार्य को स्वयं नहीं कर पाते है। उन्हें दूसरों का सहारा लेना पड़ता हैं। यह विज्ञापन इसी समस्या को सुलझाने को लेकर किया गया प्रयास है। जिसमें विज्ञापन द्वारा लोगों को जागरूक तथा शिक्षित करने की कोशिश की गई है कि उनके हक का पैसा अब सीधे उनके बैंक खाते में आएगा। वह उन्हें ही मिलेगा किसी अन्य को नहीं। हमारे देश में लोग जानकारी के अभाव में भटक जाते हैं।
यह विज्ञापन लोगों को जागरूक बनाने के साथ ही शिक्षित भी करने का काम करता है। 100 पैसा की जगह 15 पैसा लोगों को न मिले बल्कि पूरा 100 पैसा मिले जो उनका हक है, यह विज्ञापन का उद्देश्य है। विज्ञापन जनसाधारण की हिंदी भाषा में है और इसमें बहुत क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग न करके साधारण शब्दों को लिया गया है। विज्ञापन यथार्थ परिस्थितियों ये जुड़ा है। समाज की सोच तथा वास्तविक परिस्थितयों को दिखाने की कोशिश की गई है। विज्ञापन का संदेश स्पष्ट है। इसमें किसी प्रकार का प्रलोभन नहीं दिया गया है।
4. स्वच्छ भारत मिशन
शहरों और गाँवों की साफ-सफाई को ध्यान में रखकर स्वच्छ भारत अभियान को शुरू किया गया है। इसे स्वच्छ भारत मिशन या स्वच्छता मिशन के नाम से भी जाना है। यह भारत सरकार की राष्ट्रीय योजना है। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य शौचालयों का निर्माण, ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में साफ-सफाई की आदत विकसित करना है। इस अभियान की शुरुआत 2 अक्टूबर 2014, को नई दिल्ली के राजघाट से की गई थी। इस अभियान के तहत भारत सरकार ने 2 अक्टूबर 2019 तक भारत को स्वच्छ रखने का उद्देश्य रखा है। प्रस्तुत शोध ग्रामीण भारत पर किया जाना है इसलिए स्वच्छता अभियान के तरह निर्मल भारत अभियान के विज्ञापन को लिया है। इसकी शुरुआत 1999 में भारत सरकार ने की थी, अब इसे नए रूप में स्वच्छ भारत मिशन के नाम से दुबारा शुरू किया गया है। जिसका प्रमुख उद्देश्य ग्रामीण में विकसित खुले में शौच की आदत से मुक्ति दिलाना है। इसके लिए सरकार द्वारा 11 करोड़ 11 लाख शौचालय बनाने की योजना बनाई गई है। इसकी सफलता के लिए सभी की भागीदार आवश्यक है। इससे ग्रामीणों के जीवन स्तर में सुधार की प्रबल संभावना उत्पन्न होगी। इस योजना के प्रसार के लिए निरतंर विज्ञापनों का सहारा लिया जा रहा है। ये विज्ञापन भारत सरकार द्वारा जनहित में जारी किए जा रहे हैं। इसके विज्ञापन का निर्माण सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने किया है।
आँकड़ा प्रस्तुतिकरण
प्रश्नावली का विश्लेषण करने से पहले उत्तरदाताओं का जनसांख्यिकी विश्लेषण किया गया है। जिससे उत्तरदाताओं की शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति का अनुमान लगाया जा सके। यह विश्लेषण निम्नलिखित आधार पर किया गया है। ये आधार इस प्रकार से हैं - लिंग, आयु, आय, पारिवारिक सदस्यों की संख्या और शिक्षा।
तालिका 1 . लिंग
क्रम सं लिंग संख्या प्रतिशत कुल योग
1 . स्त्री 140 46.67% 300
2 . पुरुष 160 53.33% 300
प्रस्तुत शोध में 46.67% स्त्रियाँ और 53.33% पुरुष शामिल हैं।
तालिका 2 . आयु
क्रम सं. आयु वर्ग संख्या प्रतिशत
1 . 20 से 30 वर्ष 37 12.33%
2 . 30 से 40 वर्ष 128 42.67%
3 . 40 से 50 वर्ष 135 45%
कुल योग 300 100%
प्रस्तुत शोध में 20 से 30 आयु वर्ग के 12.33% उत्तरदाता, 30 से 40 आयु वर्ग के 42.67% और 40 से 50 वर्ष के 45% उत्तरदाता हैं ।
तालिका 3 . आय
क्रम सं. आय के आधार पर संख्या प्रतिशत
1 . 5000 रुपये से कम 187 63.33%
2 . 5000 से 10,000 के बीच 67 22.33%
3 . 10,000 रुपये से ज्यादा 46 15.33%
कुल योग 300 100%
प्रस्तुत शोध में शामिल उत्तरदाताओं में 63.33% की मासिक आय 5000 रुपये के कम है, 22.33% उत्तरदाताओं की आय 5000 से 10,000 रुपये के बीच है और केवल 15.33% उत्तरदाताओं की आय 10,000 रुपये से अधिक है ।
तालिका 4 . परिवार की संख्या
क्रम सं. परिवार की सदस्य संख्या परिवार की संख्या प्रतिशत
1 . 5 से 8 सदस्य 119 39.67%
2 . 8 से 10 सदस्य 100 33.33%
3 . 10 से ज्यादा सदस्य 81 27%
कुल योग 300 100%
प्रस्तुत शोध में शामिल उत्तरदाताओं में 5 से 8 सदस्य वाले परिवार 39.67%, 8 से 10 सदस्य वाले परिवार 33.33% और 10 से ज्यादा सदस्य वाले परिवार 27% है।
तालिका 5 . व्यवसाय
क्रम सं. व्यवसाय संख्या प्रतिशत
1 . कृषक 87 29%
2 . मजदूर 156 52%
3 . पशु पालक 21 7%
4 . गृहणी 16 5.33%
5 . अन्य 20 6.67%
कुल योग 300 100%
प्रस्तुत शोध में शामिल उत्तरदाताओं में कृषक 29%, मजदूर 52%, पशु पालक 7%, गृहणी 5.33% और अन्य 6.67% है।
प्रश्नावली विश्लेषण
प्रश्न-1 . क्या आपने ने सरकारी योजनाओं के विज्ञापनों को देखा है?
1 . उत्तर हाँ नहीं कुल योग
2 . संख्या 212 88 300
3 . प्रतिशत 70.67% 29.33% 100%
उपरोक्त चार्ट के अनुसार सभी उत्तरदाताओं में से केवल 70.67% ने ही सरकारी योजनाओं के विज्ञापन देखे हैं। 29.33% उत्तरदाताओं ने सरकारी योजनाओं के विज्ञापन नहीं देखे हैं।
प्रश्न-2 . क्या आपको मनरेगा, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर, खाद्य सुरक्षा योजना और स्वच्छ मिशन अभियान की जानकारी है?
मनरेगा : हाँ - 63%, नहीं-37%
डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर : हाँ - 65%, नहीं - 35%
खाद्य सुरक्षा योजना : हाँ - 66.33%, नहीं - 33.67%
स्वच्छ मिशन अभियान : हाँ - 67.33%, नहीं - 32.67%
उपरोक्त चार्ट के अनुसार आधे से ज्यादा उत्तरदाता शोध में शामिल सरकारी योजनाओं के विषय में जानकारी रखते हैं।
प्रश्न-3 . आपको मनरेगा के दिखाए गए विज्ञापन से जानकारी प्राप्त हुई?
उत्तर पहले से जानकारी थी विज्ञापन देखकर जानकारी मिली कुल योग
संख्या 177 123 300
प्रतिशत 59% 41% 100%
उपरोक्त चार्ट के अनुसार आधे से ज्यादा 59% लोग पहले से मनरेगा विज्ञापन की जानकारी रखते थे केवल 41% को विज्ञापन देखकर जानकारी प्राप्त हुई।
प्रश्न-4 . मनरेगा विज्ञापन से प्राप्त जानकारी इस योजना का लाभ लेने के लिए पर्याप्त है?
उत्तर हाँ नहीं थोड़ा बहुत कुल योग
संख्या 135 109 56 300
प्रतिशत 45% 36.33% 18.67% 100%
उपरोक्त चार्ट के अनुसार 45% के अनुसार मनरेगा विज्ञापन से प्राप्त जानकारी इस योजना का लाभ लेने के लिए पर्याप्त है जबकि 36.33% के अनुसार मनरेगा विज्ञापन से प्राप्त जानकारी इस योजना का लाभ लेने के लिए पर्याप्त नहीं है। 18.67% के अनुसार थोड़ा बहुत मनरेगा विज्ञापन से प्राप्त जानकारी इस योजना का लाभ लेने के लिए पर्याप्त है।
प्रश्न-5 . खाद्य सुरक्षा के विज्ञापन किस विषय पर बात की गई है?
उत्तर : अनाज के वितरण की - खाद्य सा. के दाम की - खा.सु.वि. की - उपरोक्त सभी
संख्या 102 87 56 45
प्रतिशत 34% 29% 18.67% 15%
खाद्य सुरक्षा का विज्ञापन अनाज के वितरण, खाद्य सामग्री के दाम, खाद्य सुरक्षा विधेयक इन सभी की सूचना लोगों को उपलब्ध कराता है। केवल 15% उत्तरदाताओं के अनुसार यह विज्ञापन इन सभी विषय के बारे में बताता है। 34% के अनुसार अनाज के वितरण, 29% के अनुसार खाद्य सामग्री के दाम और 18.67% के अनुसार खाद्य सुरक्षा विधेयक की बात करता है।
प्रश्न-6 . खाद्य सुरक्षा का विज्ञापन आपको इस योजना का लाभ लेने के लिए प्रोत्साहित करता है?
उत्तर हाँ नहीं कुल योग
संख्या 210 90 300
प्रतिशत 70% 30% 100%
खाद्य सुरक्षा का विज्ञापन 70% उत्तरदाताओं को खाद्य सुरक्षा विज्ञापन का लाभ लेने के लिए प्रोत्साहित करता है। 30% उत्तरदाताओं को यह विज्ञापन इस योजना का लाभ लेने के लिए प्रेरित नहीं करता है।
प्रश्न-7 . क्या आपको डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर योजना विज्ञापन के अनुसार लाभ आसानी से मिल जाता है?
उत्तर हाँ नहीं
संख्या 70 230
प्रतिशत 23.33% 76.67%
डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर योजना का लाभ 76.67% उत्तरदाताओं को आसानी से नहीं मिल रहा है केवल 23.33% उत्तरदाताओं को आसानी से मिल रहा है।
प्रश्न-8 . क्या आपको डायरेक्ट बेनिफिट योजना का विज्ञापन आपकी सहायता करता है?
उत्तर हाँ नहीं
संख्या 235 65
प्रतिशत 78.33% 21.67%
डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर योजना का विज्ञापन 78.33% उत्तरदाताओं की सहायता करता है। 21.67% के अनुसार विज्ञापन उनकी कोई सहायता नहीं करता है।
प्रश्न-9 . स्वच्छ भारत मिशन का विज्ञापन आप को स्वच्छता के प्रति जागरूक करता है?
उत्तर हाँ नहीं कुल योग
संख्या 65 235 300
प्रतिशत 21.67% 78.33% 100%
78.33% उत्तरदाताओं के अनुसार स्वच्छ भारत का विज्ञापन उन्हें स्वच्छ के प्रति जागरूक नहीं करता है। 21.67% के अनुसार यह विज्ञापन लोगों को जागरूक करता है।
प्रश्न-10 . स्वच्छ भारत मिशन के विज्ञापन में किस बात पर जोर दिया है?
उत्तर : स्वच्छता की आदत विकसित करने पर - शौचालय निर्माण पर - बीमारियों से बचने पर - उपरोक्त सभी
संख्या 192 65 36 7
प्रतिशत 64% 21.67% 12% 2.33%
64% उत्तरदाताओं के अनुसार स्वच्छ भारत मिशन के विज्ञापन लोगों में स्वच्छता की आदत विकसित करने पर जोर देता है, 21.67% के अनुसार शौचालय निर्माण पर, 12% के अनुसार बीमारियों से बचने पर जोर देता है।
अवलोकन
गाँव के सभी लोगों के पास टेलीविजन नहीं है। जिन लोगों के पास टेलीविजन है, उन्हें विज्ञापन के बारे में पूरी जानकारी है। वह निरंतर विज्ञापन को देखते हैं, समझते हैं और विज्ञापनों का लाभ भी उठाते हैं।
अगर व्यवसायिक वस्तु के विज्ञापन की बता की जाए तो ये लोग उन वस्तुओं का इस्तेमाल करना पसंद करते है जिनका विज्ञापन कभी देखा हो, वहीं अगर सरकारी योजना के विज्ञापन के संदर्भ में देखा जाए तो ये लोग जानकारी होने के बावजूद गाँव के मुखियाँ या ग्राम पंचायत अधिकारी से संपर्क स्थापित कर योजना लागू करने के विषय में चर्चा भी नहीं करते हैं।
मनरेगा को ग्रामीण नरेगा के नाम से जानते है, जिसके तहत पंजीकरण तो 20 से 50 उम्र वर्ग के अधिकतर व्यक्तियों का हुआ है। परंतु काम कुछ ही लोगों को मिला है। जैसा कि विज्ञापन में दिखाया जाता है कि जब भी गाँव में काम की आवश्यकता हो, काम ग्रामवासी पंचायत से माँग सकते हैं, परंतु लोगों ने कभी माँगा नहीं है। लोगों को जानकारी पूरे मनरेगा योजना की है, यह जानकारी नहीं है कि पंजीकरण होने के बावजूद उन्हें इस योजना का लाभ क्यों नहीं मिल पर रहा हैं। मनरेगा के तहत कुछ काम गाँवों में किया गया है, पर उसका भुगतान पंजीकृत सभी लोगों को नहीं मिला है और ना ही लोगों को मनरेगा के तहत किसी भी प्रकार का बेरोजगारी भत्ता ही प्राप्त हुआ है।
डायरेक्ट बेनिफिट हस्तांतरण के तहत मनरेगा का तो नही, परंतु और कई योजना का लाभ लोगों को मिल रहा है। डायरेक्ट बेनिफिट हस्तांतरण के तहत लोगों का पैसा सीधे लोगों के बैंक खाते में आने से दलालों का खात्मा हुआ है जिस कारण लोग अपना पूरा पैसा आसानी से प्राप्त कर पर रहे है। लोगों ने माना कि यह बहुत अच्छी सुविधा है। किसी और माध्यम से अगर उनका पैसा आता तो कुछ समस्या का सामना उन्हें करना पड़ता था। कम शिक्षित होने के वाबजूद ग्रामवासियों को अपना पैसा अपने खाते से निकालने तथा जमा करने में किसी तरह की कोई भी समस्या नहीं हो रही है। लक्षित समूह इस योजना के विज्ञापन के अनुसार ही व्यवहार कर रहे थे।
शहर से करीब होने के कारण सभी गाँवों में बिजली की समस्या कम है। बिजली लगभग सभी गाँवों में 10-16 घंटे तक रहती है। जिस वजह से जिन लोगों के घरों में टीवी है उन्हें कई विषयों पर जानकारी हासिल है और पूछने पर जानकारीपूर्ण बातें बता रहे थे लेकिन इस वर्ग को इस शोध में शामिल नहीं किया गया है क्योंकि इन लोगों को जानकारी तो थी पर वे योजनाओं का लाभ नहीं उठा रहे थे।
खाद्य सुरक्षा योजना के तहत सुबह-सुबह लोगों को जिलाधिकारी द्वारा नियुक्त कुछ मोटर सायकिल सवार गाँव भर में घूम-घूम कर अनाज के उपलब्ध होने की जानकारी देते हैं। लोगों का मानना है कि अनाज की गुणवत्ता भी काफी अच्छी रहती है। परंतु ऐसा मानने वाले बहुत ही कम लोग मिले, जबकि अधिकतर का कहना था कि अनाज कई बार अच्छी गुणवत्ता का नहीं होता है। जिसके कारण उन्हें इस अनाज के अलावा बाजार से भी अनाज खरीदना पड़ता है।
मोबाइल फोन पूरे गाँव में लगभग सब के पास है, वे इसका इस्तेमाल भी निरंतर कर रहे है। मोबाइल फोन पर इंटरनेट का इस्तेमाल तो लोग कम ही या नहीं करते हैं। उन्होंने कभी भी किसी प्रकार की जानकारी हासिल करने के लिए इंटरनेट का प्रयोग नहीं किया है। वर्तमान समय में लोगों को कुछ कंपनियों द्वारा मुफ्त इंटरनेट उपलब्ध कराए जाने के कारण अब ग्रामीण परिवेश में इंटरनेट का इस्तेमाल होने लगा है।
टेलीविजन विज्ञापन उनके लिए मनोरंजन का साधन है, जानकारी का नही। जैसे- आज कल स्वच्छ भारत मिशन अभियान के तरह शौचालय निर्माण को लेकर काफी विज्ञापन प्रसारित हो रहा है, सरकार सहायता भी कर रही है फिर भी लोग जागरूक कम ही हैं। आज भी गाँव में अधिकतर घरों में शौचालय नहीं बना था। गाँवों में लोगों को खुले में शौच जाने से रोकने के लिए कुछ प्राथमिक शिक्षकों की ड्यूटी भी सुबह और शाम को लगाई गई जिसमें उन्हें सुबह 5 बजे और शाम को 5 बजे उन लोगों को देखकर सीटी बजाने का कार्य करना होता है जो खुले में शौच जाते हैं।
निष्कर्ष
लक्षित समूह की जन माध्यमों तक पहुँच कम है इसलिए सरकारी योजनाओं के विज्ञापन को लक्षित समूह तक पहुँचना आवश्यक है, जिससे लक्षित समूह बिना किसी भ्रम के सरकारी योजना का लाभ उठा सके। इसलिए सरकारी योजना के विज्ञापन लक्षित समूह के लिए आवश्यक हैं। शोध में शामिल लक्षित समूह के रूप में किसान, मजदूर, गृहणी, पशु पालक और अन्य कुटीर उद्योग करने वालों को शामिल किया गया है। जिनमें अधिकतर लोगों की मासिक आय 5 हजार से भी कम है। सत्ताधीन सरकारें निरंतर टीवी, रेडियो और समाचार पत्रों में विज्ञापन प्रेषित करती रहती हैं, जिनसे समाज के कई लोग किसी न किसी रूप में रूबरू होते रहते हैं। इसके बाद भी शोध के सभी लक्षित समूह के अनुसार उन्हें सरकारी विज्ञापनों की जानकारी नहीं है। टीवी पर प्रसारित सरकारी विज्ञापनों के अंतर्वस्तु विश्लेषण करने पर पाया गया कि सरकारी विज्ञापन, सरकार की योजना की विषय-वस्तु का पूरी तरह से चित्रांकन करते हैं। इन सरकारी योजनाओं के विज्ञापन से योजनाओं के उद्देश्य, आवश्यकता, महत्व और लाभ को जाना जा सकता है। लक्षित समूह सरकारी विज्ञापन तक पहुँच नहीं पा रहे हैं, इसलिए विज्ञापन देखकर भी लोग योजनाओं की सही जानकारी नहीं दे पा रहे थे। सोशल सिक्यूरिटी की योजनाएँ लक्षित समूह को एक सामाजिक सुरक्षा प्रदान करती हैं। मनरेगा एक सोशल सिक्यूरिटी की योजना है, लेकिन लक्षित समूह का कहना था कि मनरेगा से उन्हें कोई लाभ नहीं मिला है। जैसे विज्ञापन में दिखाया जाता है कि काम न मिलने पर बेरोजगारी भत्ता तो मिल ही जाता है। प्रश्नवाली, अनुसूची में शामिल किसी भी उत्तरदाता ने यह नहीं बताया कि उन्हें बेरोजगारी भत्ता मिला है।
विमर्श
सरकारी योजना के विषय में लक्षित समूह एकदम ही नहीं जानता है। कुछ सरकारी योजनाओं की जानकारी लाक्षित समूह को है, परंतु पूरी जानकारी लक्षित समूह को नहीं है। यही कारण है कि लक्षित समूह सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं ले पा रहा है और सरकारी योजनाएँ विफल हो रही हैं। लक्षित समूह को यह जानकारी नहीं है कि सरकारी योजनाओं का लाभ कैसे उठाया जाए। लक्षित समूह के पास जानकारी हासिल करने की तकनीकि एवं संसाधन नहीं है। लक्षित समूह को सही मार्गदर्शन भी नहीं मिल पा रहा है। लक्षित समूह का जागरूकता स्तर बहुत से तथ्यों पर निर्भर करता है। लक्षित समूह एलेबोरेसन लाइकली हुड मॉडल के अंतर्गत पेरिफेरल रूट और पैसिव रूट में आता है। जैसा इस मॉडल में पेरिफेरल और पैसिव रूट का विश्लेषण किया गया है, इसी मॉडल के अनुसार प्रस्तुत शोध कार्य का लक्षित समूह भी व्यवहार करता है। गाँवों के जिन लक्षित वर्ग को शोध में शामिल किया गया है उनकी सरकारी विज्ञापनों तक पहुँच नहीं और जिन लोगों की विज्ञापन तक पहुँच है वे विज्ञापन का विश्लेषण करने में समर्थ नहीं हैं। एक दूसरा तथ्य यह भी है कि लोग सरकारी विज्ञापन को देखते हैं, सरकार को जानते हैं, लेकिन सरकारी योजनाओं की जानकारी नहीं रखते हैं। आँकड़ा विश्लेषण के तहत पाया गया कि लक्षित समूह में विज्ञापन के प्रति उदासीनता और कम रुचि है। प्रस्तुत शोध के माध्यम से लक्षित समूह की उदासीनता के कारण को जानने का प्रयास किया गया है।
सुझाव
लक्षित समूह में जागरूकता का आभाव है। लक्षित समूह विज्ञापन में दिखाए गए तत्वों और तथ्यों की अपेक्षा गाँव के मुखिया और अन्य लोगों की बातों पर ज्यादा भरोसा करते हैं। ग्रामीण लोग योजनाओं की जानकारी होने पर भी उसे पाने के लिए आवाज नहीं उठाते हैं। जन संचार माध्यमों की कमी सबसे बड़ा कारण है। लोगों की जानकारी का स्तर बहुत कम है, वे खुद से चीजों को नहीं समझ पाते हैं, जो जैसा कहता है, वैसा मान लेते हैं। अतः सबसे जरूरी है कि सरकारी विज्ञापन लक्षित समूह तक पहुँचे उसके लिए ऐसे जन माध्यमों को चुना जाए जो आसानी से लक्षित समूह समूह को जागरूक करे।
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* यह आलेख म.ग.अ.हि.वि. , वर्धा के जनसंचार विभाग विभाग की शोधार्थी शशि गौड़ के साथ मिलकर लिखा गया है।
शशि गौड़ - shashigaurbbau@gmail.com