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कविता

दुख

अवनीश गौतम


तुम्हारे दुख के बिरवे में
पतझर नहीं आता क्या ?
वह बोली
पतझर तो आता है
लेकिन फिर
नए पत्ते भी आ जाते हैं
मैंने पूछा
फिर फूल भी आते होंगे
वह बोली
फूल ही नहीं, फल भी आते हैं
रुको कुछ दिन
चख कर जाना तुम भी
मैं रुका नहीं
मैं कैसे रुकता
कोई नहीं रुका था पहले
न पिता, न पितामह


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