प्राण अंतर में लिए, पागल जवानी !
	कौन कहता है कि तू
	विधवा हुई, खो आज पानी?
	चल रहीं घड़ियाँ,
	चले नभ के सितारे,
	चल रहीं नदियाँ,
	चले हिम-खंड प्यारे;
	चल रही है साँस,
	फिर तू ठहर जाए?
	दो सदी पीछे कि
	तेरी लहर जाए?
	पहन ले नर-मुंड-माला,
	उठ, स्वमुंड सुमेरु कर ले;
	भूमि-सा तू पहन बाना आज धानी
	प्राण तेरे साथ हैं, उठ री जवानी!
	द्वार बलि का खोल
	चल, भूडोल कर दें,
	एक हिम-गिरि एक सिर
	का मोल कर दें
	मसल कर, अपने
	इरादों-सी, उठा कर,
	दो हथेली हैं कि
	पृथ्वी गोल कर दें?
	रक्त है? या है नसों में क्षुद्र पानी!
	जाँच कर, तू सीस दे-देकर जवानी?
	वह कली के गर्भ से, फल-
	रूप में, अरमान आया!
	देख तो मीठा इरादा, किस
	तरह, सिर तान आया!
	डालियों ने भूमि रुख लटका
	दिए फल, देख आली !
	मस्तकों को दे रही
	संकेत कैसे, वृक्ष-डाली !
	फल दिए ? या सिर दिए ? तरु की कहानी -
	गूँथकर युग में, बताती चल जवानी !
	श्वान के सिर हो -
	चरण तो चाटता है!
	भोंक ले - क्या सिंह
	को वह डाँटता है?
	रोटियाँ खायीं कि
	साहस खा चुका है,
	प्राणि हो, पर प्राण से
	वह जा चुका है।
	तुम न खोलो ग्राम-सिंहों से भवानी !
	विश्व की अभिमान मस्तानी जवानी !
	ये न मग हैं, तव
	चरण की रेखियाँ हैं,
	बलि दिशा की अमर
	देखा-देखियाँ हैं।
	विश्व पर, पद से लिखे
	कृति लेख हैं ये,
	धरा तीर्थों की दिशा
	की मेख हैं ये।
	प्राण-रेखा खींच दे, उठ बोल रानी,
	री मरण के मोल की चढ़ती जवानी।
	टूटता-जुड़ता समय
	'भूगोल' आया,
	गोद में मणियाँ समेट
	खगोल आया,
	क्या जले बारूद?-
	हिम के प्राण पाए!
	क्या मिला? जो प्रलय
	के सपने न आए।
	धरा? - यह तरबूज
	है दो फाँक कर दे,
	चढ़ा दे स्वातंत्र्य-प्रभु पर अमर पानी।
	विश्व माने - तू जवानी है, जवानी !
	लाल चेहरा है नहीं -
	फिर लाल किसके?
	लाल खून नहीं?
	अरे, कंकाल किसके?
	प्रेरणा सोई कि
	आटा-दाल किसके?
	सिर न चढ़ पाया
	कि छापा-माल किसके?
	वेद की वाणी कि हो आकाश-वाणी,
	धूल है जो जग नहीं पाई जवानी।
	विश्व है असि का? -
	नहीं संकल्प का है;
	हर प्रलय का कोण
	काया-कल्प का है;
	फूल गिरते, शूल
	शिर ऊँचा लिए हैं;
	रसों के अभिमान
	को नीरस किए हैं।
	खून हो जाए न तेरा देख, पानी,
	मरण का त्यौहार, जीवन की जवानी।