मैं मृत्यु को चाहता हूँ
आधो-आध
मेरे जीवन की कहानी
अनगिनती
प्रभावों की कहानी है
मैंने अबतक जो भी किया
अधूरा ही किया
मैं अधूरा होकर
अधूरा ही चाहाता रहा
मुझे अब तक जो मिला
अधूरा ही मिला
मैंने हरेक चीज को अधूरा ही बरता
और इस तरह से अधूरा ही रहा
मैंने अधूरा जिया
अधूरा ही मरना चाहता हूँ
अधूरेपन का हरेक विन्यास ही
मेरी मृत्यु और जीवन को
मेरी घृणा और चाह को
पूर्णता देगा
मैं मरूँगा
पूरा
मैंने जीवन को अधूरा जिया है।
(* डॉ. नामवर सिंह की स्मृति में
,
जिन्हें अज्ञेय की यह काव्य-पंक्ति बहुत पसंद थीं।)