hindisamay head


अ+ अ-

कविता

सहयाद्रि

यूनिस डी सूज़ा

अनुवाद - ममता जोशी


उड़ा देना
मेरी राख को
पश्चिमी घाट में
अब वही पहाड़ियाँ घर सी लगती हैं
तेंदुए शायद कविता का स्वाद चख लें
कौव्वे और चील अपनी आवाज के उतार चढ़ाव को
सँवार लें
मौसम चाहे प्रतिकूल भी हो
धुंध और झरने
घास और फू़ल
कायम रहें
हर समय।

(मृत्यु से पहले कुछ समय पहले लिखी उनकी अंतिम कविता Western Ghats का अनुवाद)


End Text   End Text    End Text