धीमे स्वर में
धृष्टता से बुदबुदाया मैंने - आजादी
और
भाषा चौकन्नी हो गई
इतिहास चाक चौबंद।
जन्मी भी नहीं थी जब भाषा
तब भी
मैं थी
फिर भी इतिहास मेरी कहानी
नहीं कह पाता आरंभ से।
भाषा में बचा रह जाए ठीक-ठाक जो
उसके इतिहास में बचने की
पूरी संभावना है
लेकिन देख रही हूँ
भाषा का मेरा मुहावरा
अब भी गढ़े जाने की प्रतीक्षा में है
लड़ने को इतिहास से
कम से कम भाषा को
देना होगा मेरा साथ।