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कविता

क्षत-विक्षत अलाप

सुजाता


1.

बस्ते से निकाल रबड़
रगड़ती है पेट पर
मिटाती है गर्भ
बच्ची दस साल की।
खेलती है भीतर, खेलती है बाहर
दो नन्हीं जान।

2.

पजामा पहनते दोनों पैर
एक ही जगह फँसा लिए हैं
हँसती है माँ...

रोती है आँखें मूँद

देखना था यह भी...
देखूँ कैसे !
क्षत-विक्षत कोमलांग
रक्त से लथ-पथ
जल गईं कलियाँ कराहते स्निग्ध कोंपल
सिसकती उन पर ओस की बूँद
रक्तिम

खाने का डब्बा छूटता था बस में
आज छूट गया बचपन !

3.

क्या भूली है रत्ती !
सुन्न क्यों है ?
व्यर्थ हुआ पाठ ?
गुड टच / बैडटच?

4.

बिस्तर में गुड़िया अब क्या कहती होगी
सपनों में परियाँ अब क्या गाती होंगी
तेरा जो साथी होगा
सबसे निराला होगा
नोचेगा नहीं छाती
दूर से करेगा बातें मदमाती
पूछेगा तेरी राजी
देखना -
एकदम गुड्डा होगा !

5.

सोचती क्या हो शकुंतले !
प्रेम विहग उड़ रहा डाली से डाली
यौवन ने जीवन कमान ज्यों सँभाली
धधकती श्वास अग्नि
थिरकती हैं अँगुलियाँ
काँख के ताल में
क्रीड़ारत मीन ।
हास
छलक गए मदिरा के प्याले हजार
बावरी है हवा, चुंबनों से देती है
लटों को सँवार

होगा क्या प्रथम यौवन उन्मत्त स्पर्श ऐसा ही ?
गाएगा क्या
कभी मन ?


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