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कविता

आओ प्रिये

अनिल पांडेय


आओ प्रिये !
बढ़ो दो कदम और
हम वफा के मिजाज पर
तुमसे यहाँ कुछ बात करेंगे

सुनो प्रिये !
सोचो न कुछ अधिक
बेवफाई के असफल अंदाज पर
अपने मिजाज के वाद गढ़ेंगे

तुम आओ !
कुछ बात उठेगी और
परिवेश में तुम्हारे-हमारे बीच
कुछ अनसुलझे विवाद बढ़ेंगे

घबड़ाओ मत
लोग सोचेंगे अपनी बात
अपने अपने मस्तिष्क मुताबिक
हमारे-तुम्हारे रिश्तों पर जज्बात कसेंगे

हम तुम
बैठेंगे कहीं शांत-मांत
जिनको लड़ना है लड़ेगा वह
चलकर उनसे दूर कहीं
हम अपना संवाद करेंगे

आओ प्रिये !
जैसे पहले आती थी
इधर के हलचल से अनजान बनकर
उधर के मौसम-मुताबिक मुलाकात करेंगे


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