कवि होता है
जाड़े में आवश्यक धूप की तरह
समाज की जरूरत
कवि होता है
दाल में जरूरी नमक की तरह
परिवेश की जरूरत
कवि होता है
जीवन में जरूरी धन की तरह
जीवन की जरूरत
कवि नहीं होता
प्रचार में शामिल झंडे की तरह
बनावटी वसूल
कवि नहीं होता
जानबूझ कर किए गए अपराध की तरह
दिखावटी भूल
कवि नहीं होता
जबरन वसूले गए व्याज की तरह
दलालों का मूल
अफसोस कि यहाँ
परिवेश से गायब है कवि आजकल
कविता की तरह
अफसोस कि यहाँ
कवि से गायब है कविता आजकल
कवि की तरह