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कविता

प्रिये ! तुम कहो तो

अनिल पांडेय


प्रिये ! सच है कि
मेरा प्रेम तुम्हारे प्रति
महज एक आकर्षण है
वह जो तुम्हारे जिस्म से
होकर गुजरता है
बेध जाता है मेरे हृदय तक

तुम्हारे साथ भी
ऐसा होता है या नहीं
कह नहीं सकता
लेकिन इतना जरूर है कि
देह गंध ही है जो बाँध कर रखी है
तुम्हें और हमें रिश्ते के जाल में

तुम देह-युक्त हो
तो गेह-युक्त हूँ मैं भी
आत्मिक जैसा कुछ भी नहीं
सब शरीरी प्रक्रिया के वाहक हैं
इच्छा-अनिच्छा तो बाद की बात है
यथार्थ में पहले दो जिस्म की मुलाकात है

प्रिये ! तुम चाहो तो
कह सकती हो यह महज पागलपन है
माया है, अज्ञान है, भ्रम है, नासमझी भी
तो सुनो, यह सच है और जरूरत भी
यदि यह सब है तो तुम हो, मैं हूँ और
यह सकल संसार है


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