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कविता

वे जो भी चाहते हैं

अनिल पांडेय


वे चाहते हैं कि न्यायपालिका
वही निर्णय दे जो वे चाहते हैं
वे चाहते हैं कि कार्यपालिका
वही कार्य करे जो वे करना चाहते हैं
वे चाहते हैं की व्यवस्थापिका
वही कानून बनाए जो वे चाहते हैं

तो सुनो भाई
तुम कभी तो वह किए ही नहीं
जो चाहती है जनता
तुम नहीं चाहे कि कसाब को, अफजल को फाँसी हो
मानवता कराह उठती है तुम्हारी नजरों में यहाँ
जनता मारी जाए उसकी कोई बात ही नहीं
हस्ताक्षर वालों में तुम सब थे शामिल वहाँ
तुम नहीं चाहे की सजा हो सलमान को
तुम्हारी नजरों में उसने सिर्फ जानवर ही तो मारा था
फेसबुक पर पूजा अर्चना भी तुम्हीं लोगों ने की थी

तुमने नहीं चाहा की पत्थरबाज सुधारे जाएँ
कश्मीर में वे बिगड़े युवा ही तो थे
उन्हें फूल माला पहनाकर मनाया जाना चाहिए था
तुमने नहीं चाहा कि आतंकवादी मारे जाएँ
उनसे तुम्हारी वैचारिक मित्रता जो है सदियों से
देश का तिरंगा पैरों के नीचे कुचलकर
पाकिस्तानी झंडे का गुणगान तुम ही तो करते हो भाई

कठुआ कांड तुम्हारे लिए घटना तो हो ही नहीं सकती
राजनीतिक हितों को साधने वाली एक फायदे का मामला जरूर है
सहारा लेकर उसका आ जाओगे देश के सिंहासन पर
नाम बच्ची का तुम इसीलिए छिपा न सके सार्वजनिक करते हो
क्योंकि मानवता के लिए नहीं सांप्रदायिक उन्माद के लिए जीते मरते हो
सच सुनना सिखाया ही नहीं तुम्हें तुम्हारे आकाओं ने
झूठ बोलने से तुम सकुचाए ही आखिर कब

जागरण संवादी तुम भला कैसे हो जाओगे
युवा महोत्सव दिल्ली में नाच नाच कर मनाओगे
तुम परपंचशील के वंशजों जन-जीवन से जुड़ना ही कब चाहे हो
पाकर महानगर का न्यौता चंडीगढ़ भागकर आए हो
छोड़ दो लिखना पढ़ना बंधु पार्टी झंडा उठा लो अब
कलम तुम्हारे बस की नहीं सच की झूठ तुम्हारी परंपरा है
जिसने भी सच को बोला है वह तुम्हारे लिए जनमजरा है


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