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कविता

चाय महज शब्द नहीं है

अनिल पांडेय


दूर हूँ गुरुवर आपसे
कहता हूँ खुश हूँ लेकिन सच नहीं है ये
याद करता हूँ बराबर
शांत होकर लखता हूँ बीते अतीत को
चलना चाहता हूँ आगे
चाय का हवाला देकर रोकते हैं आप

अतीत में ही सही
व्यक्तित्व का अंश भर लेना चाहता हूँ
चाय के बहाने स्नेह के नेह में रुककर
हृदय की हूक भर स्मृतियों को
कर देना चाहता हूँ अर्पण
आप हैं कि डाँटते हैं, पहले चाय पी ले

सच कहूँ गुरुवर मेरे लिए चाय
महज शब्द नहीं है
संवेदना है मन की
वेदना है हृदय की
साथ इसके जुड़ी यादें हैं
पहली मुलाकात से उस आखिरी मिलन की
बोले थे जब आप "खुश रहना बेटा, अच्छा करना
उम्र तुम्हारी चिंता की नहीं, है चिंतन की"

तब नहीं पता था, यह भी सच है
पता अब चल रहा है
किसी काम के न रहने पर
बैठना अनावश्यक नहीं माना जाता
चाय के इंतजार में
बहुत कुछ अनकहा भी
है कहा जाता
नहीं रहा जाता एक बार आदत पड़ जाने के बाद

गुरुवर आपके सानिध्य में
चाय का मिलना
महज गले का तर होना नहीं है
आँख का नम होना भी जुड़ा है इसके साथ
नहीं रहती चाय इन दिनों संग तो
नहीं रहते पास आप
बेचैनी बढ़ जाती है मिलन की आस में
बिन आपके सच कहूँ फिर से, तो जीवन उदास है


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