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कविता

युद्ध

प्रदीप त्रिपाठी


युद्ध महज युद्ध नहीं होते

युद्ध में सूख जाती हैं

नदियों की आत्मा

पहाड़ों का जिस्म

रत्ती भर

सपनों का समुद्र भी।

युद्ध में सिर्फ़ वे ही नहीं मरते

मरती है भाषा की देह

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और इस तरह

मर जाती है

पूरी की पूरी सभ्यता।


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