देश में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन के यत्न चल रहे हैं।
सभी स्तर पर नामांकन को बढ़ाना और उसके लिए नवोन्मेषी शिक्षा व्यवस्था की
स्थापना करना जहाँ एक ओर चुनौती के रूप में है, वहीं पिछले डेढ़ वर्ष से अधिक
का समय कोरोना के कारण से शैक्षिक उपलब्धियों की दृष्टि से अच्छा नहीं रहा।
छात्रों के स्वास्थ्य और भविष्य इन दोनों की चिंता ने गुणवत्तापूर्ण
शिक्षा के उद्देश्यों को गंभीरता से प्रभावित किया है। माध्यमिक स्तर और
उससे ऊपर की शिक्षा में कक्षा अध्यापन को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। लेकिन
महामारीजनित कारणों से अभी स्थिति सामान्य होने की संभावना नहीं दिख रही है।
शिक्षा जिस प्रकार के मनुष्य निर्माण की प्रक्रिया है उसमें छात्रों का कक्षा
में एकत्रित होना, शिक्षकों के साथ प्रत्यक्ष संवाद, छात्र समुह के सामाजीकरण
का अपरिहार्य भाव है। उच्च शिक्षा की क्षेत्र में सेमिनार, संवाद, चर्चा, बहस
ज्ञान को अद्यतन करने के साधन हैं। इन सब पर एक तरह का विराम है। देश में सभी
स्तरों पर प्राथमिक से उच्च शिक्षा तक इस बिकट परिस्थिति में ऑनलाइन
एज्युकेशन को एक पर्याय के रूप में स्वीकार किया गया है। पर यह विकल्प ही
है। इसे प्रत्येक स्तर पर शिक्षा प्रक्रिया में गुणवत्ता निर्मिति के लिए
एड ऑन सुविधा के रूप में तो समझा जा सकता है, मुख्य व एकमेव साधन के रूप में
यह कारगर नहीं होगा। जिस प्रकार पारंपरिक दूरस्थ शिक्षा प्रणाली शिक्षा के
विस्तार और जीवन पर्यंत सीखने की प्रक्रिया के लिए उपयोगी रही है, किंतु यह
शिक्षा प्रत्यक्ष शिक्षा का विकल्प नहीं बन सकी, वही स्थिति महामारी के
कालखंड में बाध्यकारी कारणों से चुनी गयी ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली की है।
ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली ने भारत जैसे विविधता वाले देश में एक नए प्रकार का
विभेद पैदा किया है। जिसे तकनीकी विभेद के रूप में समझा जा सकता है। यह
छात्रों के पास उपलब्ध उपकरणों का विभेद है, तो इंटरनेट नेटवर्क की उपलब्धता
का भी है। आए दिन ऐसे चित्र देखने को मिल रहे हैं कि विद्यार्थी मोबाइल लेकर
पेड़ों पर बैठकर पढ़ाई कर रहा है। यह शिक्षा के लिए आदर्श स्थिति नहीं है। आने
वाले कुछ महीनों में राहत और सुचारु रूप से कक्षाएं प्रारंभ हो सकेगी,
छात्रावास में विद्यार्थियों को कक्षाओं में वापस बुलाया जाएगा इसकी संभावनाएं
भी नहीं दिख रही है। ऐसे में सबको गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल तथा बोध दोनों
में समन्वित शिक्षा का लाभ कैसे प्राप्त किया जा सकेगा? वर्तमान पीढ़ी के
छात्रों को श्रेष्ठ शिक्षा की उपलब्धता के द्वारा उनके साथ न्याय कैसे होगा
इस प्रश्न पर गंभीरता से विचार किए जाने की जरूरत है। शायद यह समय सम्मिश्र
शिक्षा प्रणाली के बारे में सोचने का है। कक्षा में भीड़ न हो लेकिन सबको
कक्षा शिक्षा का अनुभव प्राप्त हो सके इसके रास्ते तलाशने पडेंगे। देश के
उपलब्ध संसाधनों का एक दिन में इतना विस्तार तो नहीं हो सकता कि साठ छात्रों
की कक्षा को छह टुकडों में बांटा जा सके, छात्रावासों में सबको एकल कक्ष दिया
जा सके। ऐसे में एक ही रास्ता है कि जो नया तकनीकी विभेद आया है उसको पाटने
की कोशिश की जाए और चक्रानुक्रम से छात्रों को कक्षाओं में बुलाया जाए।
चक्रानुक्रम से ही उनको छात्रावासों में जगह दी जाए इसके लिए नए प्रकार की
व्यवस्था की निर्मिति करनी पड़ेगी। दो सौ दिनों की कक्षा में से प्रत्येक
विद्यार्थी को पचास दिन परिसर का अनुभव प्राप्त हो यह एक तरीका हो सकता है
जिससे शिक्षा में जीवंतता लायी जा सकेगी। देश में होने वाली बड़ी परीक्षाओं ने
जो चुनौतियां प्रस्तुत की हैं उसके लिए दो सत्रों से एकमात्र विकल्प के रूप
में उपलब्ध मूल्यांकन के तरीके का उपयोग किया जा रहा है। जिसमें विगत वर्षों
का परिणाम एवं आंतरिक मूल्यांकन आधार बना है। यह वह समय है जब सभी प्रकार के
शिक्षा स्तरों पर सतत और समग्र मूल्यांकन की प्रक्रिया को आरंभ किया जाना
चाहिए। जिसमें मूल्यांकन केवल शिक्षा के अनुभव के आधार पर न हो, उसमें
विद्यार्थी की शैक्षणिक प्रगति का उचित आकलन हो। बड़ी सार्वजनिक परीक्षाओं के
आयोजन की स्थापित प्रक्रिया से बाहर निकलकर कक्षा और शिक्षक केंद्रित निरंतर
मूल्यांकन का रास्ता एक ऐसा तरीका है जिसे वर्चुअल क्लासरूम और वास्तविक
कक्षा दोनों में एक साथ लागू किया जा सकता है। हां इसके लिए जरूरत है कि सभी
स्तरों के शिक्षकों को प्रशिक्षित और जागरूक किया जाए। साथ ही प्रयोगशाला,
पुस्तकालय को भी सम्मिश्र प्रणाली में लाना ही पड़ेगा। विशेषत: उच्च शिक्षा
और अनुसंधान संस्थानों के पुस्तकालयों का डिजिटलाइजेशन और उनतक छात्रों की
पहुंच के लिए नई संरचना खड़ी करने की एक बड़ी चुनौती है। प्रयोगशालाओं में
वर्चुअल और फिजिकल दोनों स्तरों पर इन दोनों का अनुभव और कार्यक्षमता
निर्मिति में विकसित हो इस दिशा में भी कदम बढ़ाना होगा। शिक्षा की दृष्टि से
यह कालखंड बड़ी चुनौतियों का कालखंड है। 2030 तक नई शिक्षा नीति और संयुक्त
राष्ट्र संघ एसबीजी4 के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए गति बढ़ानी होगी।
विज्ञान व तकनीक, समाज विज्ञान व मानविकी के उच्च शिक्षा के क्षेत्रों में
नवाचार को बढ़ावा देना पड़ेगा। भविष्य के मनुष्य के आवश्यकता की पूर्ति के
लिए तकनीक के विकास के केंद्र के रूप में विश्वविद्यालय और शोध संस्थान
कार्य कर सकें इसके लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को समग्रता में लागू करने
के साथ ही शिक्षा प्रविधि और शैक्षणिक संस्थानों में युगांतकारी परिवर्तन की
आवश्यकता है। तभी सबको, सर्वत्र, श्रेष्ठ शिक्षा का लक्ष्य प्राप्त किया
जा सकता है।