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कविता

तुम्हारा जाना

प्रदीप त्रिपाठी


तुम्हारा जाना

जैसे कि कोई शब्द नहीं


तुम्हारा न होना

जैसे कि कोई धूप और मिट्टी नहीं


तुम सा न होना

जैसे कि गुमशुदा मन


तुममें न होना

जैसे कि आत्मा की रुंधी आवाज


तुम्हारा होना

जैसे कि एक अश्क छलकता प्रेम


तुमसे दूर होना

जैसे कि हर दुःख पहाड़ और नदी।



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