पीले पड़ चुके अखबार के पन्नों में छपे...
पहले फोटो में
श्रीनगर के हरीसिंह स्ट्रीट मार्केट में
हरी-भरी सब्जियाँ, कर्फ्यू में ढील, उतावले जरूरतमंद लोग
चमकदार ताजी सब्जियों पर चमकती दहशत।
दूसरे में अयोध्या में ग्राहक न आने की वजह से
चाँदी की दुकान में
मंदिर-मस्जिद से परे गहरी नींद में दुकानदार
बेफिक्री ऐसी कि लूट का डर नहीं और जमाने की परवाह नहीं।
तीसरे में हैदराबाद में तेज बारिश के बाद
सड़क पर भर आए पानी से जूझते हुए लोग।
चौथे में बाढ़ के पानी में डूबता यमुना मंदिर
एक भी फकीर नहीं आस-पास
पानी में डूबती-तिरती फकीरी नहीं, भव्यता की परछाई है।
पाँचवें में वृंदावन के बाढ़ग्रस्त इलाके में
तोते को पिंजरे में लिए घुटनों तक डूबी महिला
फोकस करता एक फोटोग्राफर
जिसने तोते की फड़फड़ाहट को भी स्टिल कर दिया है।
छठवें फोटो में
उफनती नदी से तबाह हुए घर को देखते किसान परिवार की तीन पीढ़ियाँ हैं
जिसमें बच्चे टीले पर चढ़े हुए
जवान नदी को ऐसे घूर रहे हैं, जैसे वे उसे लील जाएँगे
और वयोवृद्ध हाथ जोड़ते हुए।
कविता के लिए कितने सटीक विषय हैं ये
लेकिन इन पर कविता लिखना कितना मुश्किल...?
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