तुलनात्मक अध्ययन का मूल उद्देश्य किन्हीं दो या दो से अधिक भाषाओं में रचे गए
साहित्यों के बीच समानता और असमानता का अध्ययन करते हुए उनके अंतरसंबंध की खोज
करना होता है। तुलना इस अध्ययन पद्धति का मुख्य अंग है और तुलनात्मक अध्ययन की
सीमा का विस्तार अनंत है। तुलनात्मक अध्ययन किसी राष्ट्र की परिधि के भीतर
रचित साहित्य के साथ ही विभिन्न राष्ट्रों में रचित साहित्य को अपने अध्ययन में
शामिल करता है। अलग-अलग देशों के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक तथा सांस्कृतिक
परिवेश की समानता और असमानता के परिप्रेक्ष्य में तुलनात्मक अध्ययन हो सकता
है। तुलनात्मक अध्ययन का क्षेत्र ज्ञान की विभिन्न शाखाओं से संबंधित है, लेकिन
साहित्य का ज्ञान के अन्य क्षेत्रों के साथ संबंध का अध्ययन विशेष रूप से इसके
अंतर्गत आता है। यह तथ्य व्यापक स्वीकृति प्राप्त कर चुका है कि तुलनात्मक
अध्ययन सिर्फ एक अध्ययन पद्धति नहीं है, बल्कि यह एक स्वतंत्र ज्ञानानुशासन है।
यह भी माना जाने लगा है कि एकल अध्ययन से तुलनात्मक अध्ययन का कोई विरोध नहीं
है।
ऐसी संकल्पना है कि प्रारंभ में एक या दो अनुशासन ही थे उसके उपरांत उन्ही
अनुशासनों में से अनेक अनुशासनों का निर्माण होता गया। किसी अनुशासन के
निर्माण की प्रकिया काफी जटिल एवं धीमी होती है। जब किसी अनुशासन विशेष के एक
क्षेत्र की लोकप्रियता एवं समाज में उसकी प्रासंगिकता बढ़ती जाती है जिसके
परिणाम स्वरूप उस क्षेत्र के अपने सिद्धांत, अवधारणाएँ, प्रविधि एवं संभावनाएं
भी बढ़ती जाती हैं। जिसके फलस्वरूप उस विषय का वह क्षेत्र स्वतंत्र अनुशासन के
रूप में अध्ययन किया जाने लगता है।
अंतर-अनुशासनिक अध्ययन को एक विषय के रूप भले ही मान्यता 20वीं - 21वीं सदी में
मिली है, परंतु अंतर-अनुशासनिक अध्ययन का इतिहास अति प्राचीन है। प्रारंभ से
ही देखा जाए तो प्लेटो, सुकरात, अरस्तु एवं हिप्पोक्रेट्स का योगदान लगभग सभी
अनुशासनों के लिए अविस्मणीय है। उपरोक्त विद्वानों को लगभग दर्जनों भर विषयों
के जनक के रूप में जाना जाता है। जिससे पता चलता है कि अंतर-अनुशासनिक अध्ययन
प्रारंभ से ही होते रहे हैं। अंतर-अनुशासनिक अध्ययन प्रश्नों के उत्तर खोजने
की एक प्रकिया है, समस्या समाधान की प्रणाली है या बहुत अधिक जटिल या विस्तृत
विषय को संबोधित करने की शैली है, जो एक अनुशासन के द्वारा पूर्ण रूप से
संबोधित हो पाना संभव नहीं हो पाता है और अनुशासन से परिप्रेक्ष्य और
अंतर्दृष्टि को समन्वित कर व्यापक परिप्रेक्ष्य की रचना करता है।
अंतरानुशासनिक अध्ययन का अभिप्राय एवं स्वरूप
अंतरानुशासनिक अध्ययन को अंतरानुशासनिक अध्ययन पद्धति के रूप में भी जाना जाता
है। अंतरानुशासनिक अध्ययन शोध और अध्ययन का एक नवीन माध्यम है, जो तीव्र गति
से स्वतंत्र ज्ञानानुशासन का स्वरूप प्राप्त करने की ओर बढ़ रहा है। यह स्वयं
में एक बहुत बड़ी अध्ययन पद्धति कही जा सकती है, जो खुले मंच की तरह हमारे
सम्मुख ज्ञान के विभिन्न स्तरों और स्वभावों को प्रस्तुत करती है।
अंतरानुशासनिक अध्ययन अनेक अनुशासनों की अध्ययन और शोध पद्धतियों को अपने अंदर
समाए हुए है। यह पद्धति इतनी व्यापक और संश्लिष्ट है कि इसे व्याख्यायित या
परिभाषित करना एक जटिल कार्य है। जिस प्रकार किसी संस्थान को चलाने के लिए
सार्थक परिस्थितियों और उत्पादनों के द्वारा या उनके साथ मिलकर कार्य किया
जाता है और एक साथ मिलकर ही उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है, उसी प्रकार
अध्ययन एवं शोध की यह व्यवस्था अन्य अध्ययन अनुशासनों के साथ मिलकर तथा उनके
स्वरूप, स्वभाव और स्थितियों से परिचित होकर अपने उद्देश्य की प्राप्ति करती
है।
अंतरानुशासनिक अध्ययन पद्धति ज्ञान की बुनियादी समझ विकसित करने और समस्याओं
को हल करने की दिशा में सक्रिय रहती है। यह दो या दो से अधिक अध्ययन क्षेत्रों
या ज्ञान के विशेष निकायों के माध्यम से विकसित शोध की एक ऐसी पद्धति है,
जिसमें समूहों या व्यक्तियों द्वारा विविध सूचनाओं, तथ्यों, तकनीकों, उपकरणों,
दृष्टिकोणों और अवधारणाओं को एकीकृत किया जाता है। इसे समझने के लिए साहित्य
और प्रदर्शनकारी कला ज्यादा उपयुक्त होते हैं जिसमें सभी विषयों और कलाओं का
समाहार हो जाता है। इसलिए स्वाभाविक है कि इन विषयों का अध्ययन इनके मूल
सिद्धांतों के अतिरिक्त अन्य विषयों के कोणों से करना अपेक्षित हो जाता है।
अंतर अनुशासनिक अध्ययन अंग्रेजी भाषा के 'इंटर डिसिप्लिनरी स्टडी' का हिन्दी
पर्याय है। विद्वानों ने 'डिसिप्लिन' शब्द का सटीक हिन्दी पर्याय 'विद्या'
शब्द होने के चलते 'इंटर डिसिप्लिनरी स्टडी' का हिन्दी पर्याय 'अंतरविद्यावर्ती
अध्ययन' माना है। डॉ॰ फादर कामिल बुल्के ने भी अपने अंग्रेजी-हिन्दी शब्दकोश
में 'डिसिप्लिन' के लिए 'विद्या' शब्द ही दिया है। लेकिन अंतर अनुशासनिक अध्ययन
ही 'इंटरडिसिप्लिनरी स्टडी' का हिन्दी पर्याय रूप में चल पड़ा।
डबल्यू नेवेल द्वारा संपादित 'एडवांसिंग इंटरडिसिप्लिनरी स्टडीज़' पुस्तक में
जे. क्लेन और डबल्यू. नेवेल (1998) द्वारा अंतरानुशासनिक अध्ययन को विवेचित
किया गया। उनके अनुसार- "किसी प्रश्न का उत्तर खोजने या किसी समस्या के
समाधान, अथवा किसी ऐसे विषय को लक्ष्य बनाने की प्रक्रिया अंतरानुशासनिक
अध्ययन है, जहाँ उस प्रश्न, समस्या या विषय के अत्यधिक व्यापक या जटिल होने
के कारण किसी एकल अनुशासन या पेशे से उसका समुचित रूप में समाधान नहीं हो
पाता। इसके माध्यम से हम अनुशासनात्मक दृष्टिकोणों को ग्रहण करते हैं और फिर
अपेक्षाकृत कहीं अधिक व्यापक दृष्टिकोण की निर्मिति करते हुए गहरी अंतर्दृष्टि
को समाहित करते हैं"। जाहिर है यह अध्ययन पद्धति ज्ञान-विज्ञान की जटिलता और
व्यापकता को आसान बनाने में विशेष तौर पर कारगर सिद्ध हो सकती है। वैसे तो
अंतरानुशासनिक अध्ययन प्राचीन युग से होते आ रहे हैं, किन्तु एक स्वतंत्र
अध्ययन अनुशासन के विकास की इच्छा रखते हुए अध्ययन की नवीन प्रणालियों की खोज
की दृष्टि से आधुनिक युग में इनका विशेष महत्व उभर कर आया है। अंतरानुशासनिक
अध्ययन के मूल में अनेक कारण हैं, जैसे- समाज एवं प्रकृति की जटिलता, नित-नई
सामाजिक समस्याओं को सुलझाने की आवश्यकता, समस्याओं या प्रश्नों के उत्तर पाने
की जिज्ञासा, नई तकनीक की सामर्थ्य और उससे प्राप्त सुविधाएँ, विश्व युद्धों के
बाद सामाजिक कल्याण से जुड़े प्रश्नों के हल निकालने की अनिवार्यता आदि।
अंतरानुशासनिक अध्ययन ज्ञान की रूढ़ सीमाओं के पार कुछ नया बनाने और उसे
विस्तार देने का महत्त्वपूर्ण दृष्टिकोण भी है। इसका प्रयोग मुख्य रूप से
अकादमिक क्षेत्रों में किया जाता है, जहाँ दो या दो से अधिक अनुशासनों के
शोधकर्ताओं द्वारा अपने दृष्टिकोणों का समन्वय किया जाता है। इसी तरह यह
पद्धति वहाँ भी प्रयुक्त होती है, जहाँ समूह शिक्षण पाठ्यक्रम के संदर्भ में
अध्येताओं को कई पारंपरिक अनुशासनों के परिप्रेक्ष्य में किसी एक विषय को
समझने की आवश्यकता होती है। सामाजिक घटनाएँ विविध पक्षीय व बहु-कारकीय होती
हैं, जिनका अध्ययन ज्ञान की किसी एक शाखा की समझ के परे होता है। इसका उपाय यही
है कि विभिन्न ज्ञानानुशासनों की अंतरदृष्टि को एकीकृत किया जाए। उदाहरण के लिए
अनुवाद अनुशासन के क्षेत्र में कार्य करने के लिए सांस्कृतिक अध्ययन,
मनोभाषाविज्ञान, समाज भाषाविज्ञान, प्रवासन अध्ययन, पर्यावरण अध्ययन, स्त्री
अध्ययन, राजनैतिक मानवशास्त्र, सामाजिक अर्थशास्त्र, ऐतिहासिक मनोविज्ञान आदि
अनेक अध्ययन अनुशासनों की समन्वित दृष्टि की आवश्यकता है।
अंतरानुशासनिक अध्ययन : विद्वानों के अभिमत
विभिन्न विद्वानों ने अंतरानुशासनिक अथवा अंतरानुशासनिक अध्ययन के संबंध में
जो अभिमत प्रकट किए हैं, उनमें से कुछ प्रस्तुत किए जा रहे हैं :
क्लीन और नेवेल (1997) "अंतरानुशासनिक अध्ययन प्रश्नों के उत्तर देने की
प्रक्रिया है, समस्या समाधान की एक प्रणाली या बहुत विस्तृत या जटिल विषय को
संबोधित करने की एक शैली है, जो एक अनुशासन के द्वारा पूर्ण रूप में संबोधित
नहीं हो पाते तथा साथ ही यह अनुशासनों से प्राप्त परिप्रेक्ष्यों और
अंतरदृष्टियों को समन्वित कर व्यापक परिप्रेक्ष्य की रचना करता है"।
डायना रोटन, मार्क चुन और जुली टी क्लीन (2006)): "अंतरानुशासनिक अध्ययन
पाठ्यक्रम के प्रारूप तैयार करने और प्रशिक्षण की वैसी विधि, जिसके तहत
फ़ैकल्टी, व्यक्तिगत या समूह/दल के रूप में विद्यार्थियों की क्षमता को विकसित
करने, मुद्दों की समझ, समस्याओं को संबोधित करने और नए उपागम के निर्माण तथा
समस्या समाधान की दिशा में जो एक अनुशासन या प्रशिक्षण के क्षेत्र से बाहर है,
के लिए दो या दो से अधिक अनुशासनों की सूचनाओं, आँकड़ों, तकनीक और उपागम तथा
सिद्धांतों की पहचान तथा मूल्यांकन करता है"।
वेरोनिका बॉइक्स मैनसिला (2005): "अंतरानुशासनिक अध्ययन ज्ञान को समन्वित करने
और सोचने की वैसी पद्धति है, जिसे दो या दो से अधिक अनुशासनों से प्राप्त किया
गया हो, जिसका उद्देश्य है, संज्ञानात्मक प्रगति को प्राप्त करना। उदाहरण के
लिए किसी घटना का वर्णन, समस्या का समाधान, किसी वस्तु का निर्माण या नए
प्रश्नों को उठाना जिन्हें किसी एक विषय के माध्यम से प्राप्त नहीं किया जा
सकता"।
विलियम नेवैल (2007): "अंतरानुशासनिक अध्ययन दो भागों की वैसी प्रक्रिया है,
जिसमें पहले, बहुत क्षीण या नाजुक तौर पर अनुशासन से अंतरदृष्टि प्राप्त की
जाती है और दूसरे, किसी जटिल प्रघटना की वृहद समझ के लिए उपस्थित अनुशासनों की
अंतरदृष्टियों का समन्वय किया जाता है।"
इन विद्वानों के अतिरिक्त अंतरानुशासनिक अध्ययन के बारे में द नेशनल एकेडमी ऑफ
साइन्स संस्था का मत भी उल्लेखनीय है, जो इस प्रकार है-
"अंतरानुशासनिक अध्ययन "किसी शोध दल या व्यक्तिगत स्तर पर किए जाने वाले या
अंशों की आधारभूत समझ को विकसित करने के लिए या समस्याओं के समाधान के लिए,
जिनका समाधान किसी एक अनुशासन के शोध अभ्यास के क्षेत्र से परे है, से संबंधित
सूचनाओं, आकड़ों, तकनीकों, उपकरणों, परिप्रेक्ष्यों, अवधारणाओं को समन्वित किया
जाता है"।
ये अभिमत अंतरानुशासनिक अध्ययन के तत्वों और स्वरूप को समझने में हमारी सहायता
करते हैं। क्लीन नवेल के अनुसार यह जटिल समस्याओं के समाधान की एक प्रणाली है।
यह अध्ययन विभिन्न अनुशासनों से सामग्री प्राप्त कर ज्ञान के स्तर को व्यापक
करता है। वहीं विभिन्न अकादमियों ने इसे एक व्यापक अध्ययन माना है, जिसमें किसी
अनुशासन की समझ विकसित करने के लिए तथा समस्याओं के समाधान हेतु दूसरे अनुशासन
से संबंधित समग्रियों व तकनीकों को लिया जाता है। इन्हीं विचारो के तहत डायना
रोटन व उनके साथी सह लेखकों ने अंतरानुशासनिक अध्ययन को एक विधि के रूप में
उद्घोषित किया है। वे इसे एक ऐसी प्रशिक्षण विधि मानते हैं, जिसमें
विद्यार्थियों की क्षमता को विकसित करने तथा समस्याओं के समाधान के लिए
प्रशिक्षण के क्षेत्र के परे दो या अधिक अनुशासनों का मूल्यांकन किया जाता है।
मनसीला ने इसे दो या दो से अधिक अनुशासनों के समन्वित रूप से प्राप्त एक
पद्धति घोषित किया है, जो संज्ञानात्मक प्रगति में सहायक है।
इन अभिमतों के आधार पर हम अंतरानुशासनिक अध्ययन की एक समन्वित परिभाषा करते
हुए कह सकते हैं कि - अंतरानुशासनिक अध्ययन प्रश्नों के उत्तर देने की
प्रक्रिया, समस्या के समाधान की पद्धति और जटिल विषय को संपूर्णता में समझने
की एक विधि है। यह ऐसे प्रश्नों से जूझती है, जिनके उत्तर एक विषय या एक
ज्ञानानुशासन के पास नहीं होते। अंतरानुशासनिक अध्ययन में विभिन्न
ज्ञानानुशासनों पर निर्भर रहते हुए उनकी अंतरदृष्टियों का समन्वय इस लक्ष्य के
साथ किया जाता है कि संबंधित समस्याओं पर एक वृहद दृष्टिकोण और संपूर्ण समझ बन
सके।
तुलनात्मक अध्ययन तथा अंतरानुशासनिक अध्ययन का अंतरसंबंध
अंतरानुशासनिक अध्ययन आधुनिक युग की आवश्यकता है इसका कारण यह है कि ज्ञान
अखंड भले ही हो, लेकिन उसकी प्राप्ति और प्रतीति के मार्ग अलग-अलग होते हैं।
ज्ञान का विभाजन दर्शन, विज्ञान आदि संकायों में नहीं किया जाता था। कौटिल्य
के 'अर्थशास्त्र' में राजनीतिक और सामाजिक पहलुओं का ज्ञान एक साथ ही मिलता है।
गैलीलियो से पहले दर्शन और विज्ञान को एक ही समझा जाता था। तब दर्शन को मीमांसा
दर्शन और विज्ञान को व्यावहारिक दर्शनों के नाम से जाना जाता था। प्लेटो के
'रिपब्लिक' में भी ज्ञान अखंड रूप में ही विद्यमान है। इसके पश्चात विभाजन का
युग आया और ज्ञान का रूप विश्लिष्ट यानि अलग-अलग होने लगा। बाद के दिनों में
ज्ञान की अनेकों शाखाएँ विकसित हो गई। लेकिन ज्ञान की ये शाखाएँ स्वतंत्र होते
हुए भी दूसरे से पूर्णतः निरपेक्ष नही हैं क्योकि विद्या की प्रत्येक शाखा
जीवन को समझने का ही मार्ग प्रदान करती हैं इसलिए उनका प्रभाव एक दूसरे पर
पड़ता ही है। उत्तर आधुनिक युग में विद्वानों ने महसूस किया की ज्ञान का शुद्ध
स्वरूप तभी स्थिर हो सकता है जब उसकी एक से अधिक शाखाओं के बीच के अंतर
सम्बन्धों का अध्ययन किया जाये। इसलिए वर्तमान समय में अंतर आधुनिक अध्ययन का
जो स्वरूप विकसित हुआ है वह तीन-चार दशक ही पुराना है लेकिन इसकी लोकप्रियता
और उपयोगिता इसके नए-नए आयाम विकसित कराते जा रहे हैं। शुद्ध विज्ञान का आधार
पूर्णतः बौद्धिक होता है इसलिए उसमें कम लेकिन मानविकी विषयों में अंतर
अनुशासनिक अध्ययन की अधिक आवश्यकता होती है। अनुपर्युक्त विज्ञान की शाखाओं में
भी अंतर अनुशासनिक अध्ययन की अधिक उपयोगिता होती है।
तुलनात्मक अध्ययन तथा अंतरानुशासनिक अध्ययन में अन्योन्याश्रित संबंध है।
तुलनात्मक अध्ययन के अंतर्गत किसी समस्या को प्रकाशित तथा उसके समाधान हेतु दो
या अधिक भाषाओं, साहित्यों, संस्कृतियों तथा विषयों के मध्य तुलना करने के लिए
अंतरानुशासनिक दृष्टि का सहारा लिया जाता है। वहीं अंतरानुशासनिक अध्ययन में
समस्या का तुलनात्मक दृष्टि से दो अनुशासनों में सापेक्षिक अध्ययन किया जाता
है। दोनों ही अध्ययन ज्ञान के विस्तृत फ़लक से संबंध रखते हैं। इसके साथ ही
दोनों अध्ययनों में एक से अधिक विषयों को सम्मिलित किया जाता है। मूलतः दोनों
अध्ययनों की प्रकृति समान रूप से अंतर्दृष्टियों का प्रयोग करती है। दोनों
अध्ययन समस्याओं के हल, सिद्धांतों के विकास और स्वयं की अंतर्दृष्टि विकसित
करने के लिए अनेक अनुशासनों की अंतर्दृष्टियों और सिद्धांतों का सहारा लेते
हैं। इन अध्ययनों में अध्येता समस्या के समाधान हेतु संस्कृति, भाषा तथा
अनुशासन के बंधन को तोड़ व्यापक ज्ञान की और बढ़ता है। यह ध्यान रखा जाना चाहिए
कि तुलनात्मक अध्ययन के अंतर्गत समस्या के समाधानहेतु अंतरानुशासनिक
दृष्टि का प्रयोग आवश्यक है। इसी के साथ अंतरानुशासनिक अध्ययन विभिन्न
अनुशासनों से प्राप्त ज्ञान की तुलना करके किया जाता है।
अंतरानुशासनिक अध्ययन तथा अनुवाद का अंतरसंबंध
अनुवाद मूलत: अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान का अंग है, किन्तु अब वह एक स्वतंत्र
अध्ययन अनुशासन के रूप में देखा जाने लगा है। प्रयोगात्मकता और अध्ययन पद्धति
की दृष्टि से अनुवाद अध्ययन की प्रकृति अंतरानुशासनिक अध्ययन के निकट है।
अनुवाद के सिद्धांतों को निर्मित करने और उन्हें समझने के लिए एकाधिक
ज्ञानानुशासनों का सहारा लेना पड़ता है। जिस प्रकार अंतरानुशासनिक अध्ययन में
एक से अधिक अनुशासन मिलकर एक नयी दृष्टि का निर्माण कराते हैं, उसी प्रकार
अनुवाद अध्ययन की अंतर्दृष्टि भी एकाधिक अध्ययन अनुशासनों की दृष्टियों के
समन्वित रूप से आकार ग्रहण करती है। अनुवाद एक अंतरानुशासनिक अनुशासन की तरह
व्यापक समस्याओं के हल के लिए प्रयोग में लाया जाता है। यह उस सलाद की तरह है,
जिसमें सभी फल आपस में मिल जाते हैं तथा अपना स्वाद एक दूसरे के साथ मिलाकर
नमक के सहयोग से एक नया स्वाद बनाते हैं।
इस प्रकार स्पष्ट होता है कि अंतरानुशासनिक अध्ययन का मुख्य उद्देश्य है, ज्ञान
का समन्वय और दो या दो से अधिक ज्ञानानुशासनों को साथ लेकर सोचने की पद्धति का
विकास। ज्ञान के एकीकरण का अर्थ है किसी विशिष्ट समस्या की समझ या बौद्धिक
प्रश्नों के उत्तर हेतु प्रासंगिक अनुशासनों की पहचान और उनके अनुशासनिक
ज्ञान/अंतरदृष्टि का सम्मिश्रण कर वास्तविकता में किसी घटना पर परीक्षण किया
जाए और उसका परिणाम साझा किया जाए। अंतरानुशासनिक अनुशासन का उपयोग उपलब्ध
समस्यायों के संपूर्णता में हल ढ़ूढ़ने के लिए किया जाता है। वर्तमान समय
अंतरानुशासनिक अनुशासन का समय है। यह समाज में विद्यमान समस्याओं का अध्ययन
परंपरागत अनुशासनों के पार जाकर अन्य अनुशासनों की विकसित और स्थापित
अंतर्दृष्टियों की सहायता से करता है। आवश्यकतानुसार, एक ही समस्या को
संपूर्णता में संबोधित करने के लिए, एक से अधिक अनुशासनों की अंतर्दृष्टियों
का समन्वय करता है और इन अंतर्दृष्टियों को मिला कर एक नई अंतर्दृष्टि विकसित
की जाती है। किसी एक अनुशासन के अध्ययन की अपेक्षा अंतर अनुशासनिक अध्ययन
द्वारा ज्ञान के क्षेत्र में रूढ़ियों और पूर्वाग्रहों के निवारण की संभावना
बहुत अधिक होती है।
संदर्भ स्त्रोत :-
1.चौधुरी, इंद्रनाथ. (2006). तुलनात्मक साहित्य: भारतीय परिप्रेक्ष्य,
दिल्ली; वाणी प्रकाशन.
2.राव, आदेश्वर. (1972). तुलनात्मक शोध और समीक्षा. आगरा: प्रगति
प्रकाशन.
3. शुक्ल, हनुमानप्रसाद. संपा. (2015). तुलनात्मक साहित्य: सैद्धांतिक
परिप्रेक्ष्य. नई दिल्ली: राजकमल प्रकाशन.
4.
http://samaykolkhyan.blogspot.in/2015/02/blog-post_15.html
5.
http://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/150007/4/04_chapter%201.pdf
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http://jagadishwarchaturvedi.blogspot.in/2017/02/blog-post_18.html
7.
http://samaykolkhyan.blogspot.in/2015/02/blog-post_15.html