विभिन्न सभ्यताओं को एक दूसरे के परिप्रेक्ष्य में जानने की सतर्क कोशिश के संदर्भ में साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन एक महत्त्वपूर्ण उपादान माना जाता है। मनुष्य समुदाय में रहता है, समाज में पारस्परिक संपर्क विकसित करता है और किसी न किसी राष्ट्र की सीमाओं में जीता है। समुदाय, समाज और राष्ट्र के अंतरसंबंधों की बारीकियाँ साहित्य, संगीत और कलाओं में चित्रित होती हैं। तुलनात्मक अध्ययन कहीं न कहीं इनके बीच सार्थक संवाद की खोज की कोशिश है। संवाद और तुलना सतत जारी रहने वाली मानसिक प्रक्रियाएँ हैं। जब हम जाने-अनजाने अपने संपर्क में आने वाले तत्वों से संवाद कर रहे होते हैं, तो इस संवाद में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से तुलना भी शामिल रहती है। यह ध्यान रखने का विषय है कि तुलना में समानता और व्यतिरेकी तत्वों की खोज लक्ष्य न होकर इन दोनों के परे जाने का भाव छिपा हुआ है। इस रूप में तुलनात्मक अध्ययन प्रभावों के ग्रहण और उनके पीछे कार्यरत कारणों की तलाश करते हुए तुल्यों के मध्य अंतरसंबंधों के निर्धारण का अनुशासन है। यह कार्य वह विभिन्न भाषाओं के साहित्यों के तुलनात्मक अध्ययन द्वारा करता है और अन्य अनुशासनों से सहायता लेता है। इस प्रकार तुलनात्मक अध्ययन में सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, राजनैतिक परिस्थितियाँ तथा कारण निर्णायक भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के लिए तुलनात्मक अध्ययन पद्धति का प्रयोग करके हम जान सकते हैं कि "राजनैतिक परिस्थितियों तथा इतिहास से जुड़े मुद्दों के कारण अथवा सामाजिक स्थितियों के कारण किस तरह भक्तिकाल का आविर्भाव उत्तर तथा दक्षिण भारत में अगल-अलग समय पर होता है अथवा स्वतंत्रता संघर्ष के परिणाम स्वरूप दलित विमर्श का अस्तित्व प्रकट होता है, परंतु सामाजिक जागृति के परिणामस्वरूप वह महाराष्ट्र में पहले आता है तथा कालांतर में देश के उत्तरी हिस्से में वह प्रकट होता है। महाराष्ट्र की लोक-जागृति के कारण उसके इतिहास में ढूँढे जा सकते हैं जिस तरह उत्तर के राज्यों के पिछड़ेपन को उसके इतिहास में देखा जा सकता है। इस तरह साहित्य को देखने की दृष्टि साहित्य के तुलनात्मक अध्ययन से प्राप्त होती है। यह एकक साहित्य अध्ययन से संभव नहीं है। साहित्य को देखने की इस तरह की दृष्टि को विकसित करना ही आज सर्वाधिक प्रासंगिक है"। [1]
तुलनात्मक अध्ययन का स्वरूप
तुलनात्मक अध्ययन, एकक अध्ययन से भिन्न है। एकक अध्ययन जहाँ साहित्य के सीमित अध्ययन की दिशा की ओर संकेत करता है, वहीं तुलनात्मक अध्ययन हमें साहित्य के व्यापक अध्ययन की दिशा में ले जाता है। उदाहरण के लिए तुलनात्मक अध्ययन के अंतर्गत तुलना इस बात की नहीं होती है कि कौन-सा साहित्यकार या प्रवृत्ति या फिर साहित्य श्रेष्ठ है, बल्कि यह अध्ययन किया जाता है कि तुल्य लेखकों या प्रवृत्तियों या साहित्यों में समानता और भिन्नता के कौन-कौन से बिंदु हैं। कहाँ वे परस्पर मिलते हैं और कहाँ अलग हो जाते हैं। इसी के साथ इन दोनों के मूल में कौन-सी परिस्थितियाँ तथा कारण हैं। यह भाव और संवेदना के स्तर पर एक-दूसरे को पहचानने की दिशा में पाठक को ले जाता है। इस रूप में तुलनात्मक अध्ययन साहित्य और साहित्य के अध्येता को व्यापक दृष्टि प्रदान करता है। हम यह भी कह सकते हैं कि तुलनात्मक अध्ययन विचार-संकीर्णता के विरोध में खड़ा होता है जो विश्व साहित्य और विश्व जीवन के लिए अनिवार्य है। तुलनात्मक अध्ययन का शाब्दिक अर्थ समझाते हुए भी कहा जाता है कि वह अंग्रेजी के 'Comparative Study' का हिंदी पर्याय है, जिसमें एक ही प्रकार की या एक से अधिक वस्तुओं की तुलना की जाती है। उसकी प्रकृति और स्वरूप का संकेत करते हुए आदेश्वर राव कहते हैं कि "वास्तव में तुलनात्मक अध्ययन का उत्तरदायित्व आलोचना और अनुसंधान से भी महत्वपूर्ण है। यह मानव या व्यक्ति के सीमित ज्ञान क्षेत्र का विस्तार करता है और उसकी भाषा, साहित्य एवं देश के बंधनों को ज्ञानार्जन में बाधा डालने नहीं देता। मनुष्य के सीमित ज्ञान क्षेत्र के विकास को तुलनात्मक अध्ययन के उद्देश्य के रूप में देखा जा सकता है।" [2]
तुलनात्मक अध्ययन पद्धति के आधार पर तुलनात्मक साहित्य को समझा जा सकता है। यह ज्ञान की वह शाखा है, जिसमें दो या अधिक भिन्न भाषायी, राष्ट्रीय या सांस्कृतिक समूहों के साहित्य का अध्ययन किया जाता है। "साहित्य का अध्ययन करते हुए तुलना करने का मतलब सीधे साहित्य का अध्ययन करना ही है, क्योंकि अरस्तू के समय से 'तुलनात्मक' आलोचनात्मक व्यवहार का एक आवर्त्तक आयाम रहा है। चाहे एक भाषा में लिखित साहित्य का अध्ययन हो अथवा एक से अधिक भाषाओं में लिखित तुलनात्मक साहित्य का अध्ययन हो, दोनों ही स्थितियों में अध्ययन का केंद्रीय विषय साहित्य ही है और इसीलिए तुलनात्मक अध्ययन को किसी एक भाषा में लिखित साहित्य के अध्ययन से अलग नहीं किया जा सकता"। [3] तुलनात्मक अध्ययन और तुलनात्मक साहित्य के अंतरसंबंध को समझने में कुछ विद्वानों के अभिमत हमारी सहायता कर सकते हैं, जैसे-
हेनरी एच. एच. रेमाक के अनुसार "तुलनात्मक साहित्य एकक राष्ट्र के साहित्य की परिधि के परे दूसरे राष्ट्रों के साहित्य के साथ तुलनात्मक अध्ययन है। यह अध्ययन कला, इतिहास, समाजविज्ञान, धर्मशास्त्र आदि ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों के आपसी संबंधों का भी अध्ययन है"। [4]
रवींद्रनाथ श्रीवास्तव के अनुसार "एक अध्ययन-विषय के रूप में तुलनात्मक साहित्य, सांस्कृतिक इतिहास तथा व्यावहारिक आलोचना के बीच समन्वय की कोशिश करता है, विस्तार एवं घनत्व में संतुलन स्थापित करता है और राष्ट्रीयता तथा अंतरराष्ट्रीयता के बीच एक प्रकार के द्वन्द्वात्मक संतुलन का उद्घाटन करता है। दो विरोधी चीजों के सह-अस्तित्व तथा उनके बीच समन्वय या संतुलन का यह प्रदर्शन तुलनात्मक साहित्य की अपनी पहचान है"। [5]
टी. जी. मयकंड बताते हैं कि "तुलनात्मक साहित्य का आशय साहित्यों का साम्य-वैषम्य प्रकट करने के विचार से उसकी तुलना मात्र नहीं है। यहाँ तो मुख्य आशय है साहित्य विशेष को पृष्ठभूमि प्रदान करने वाली सांस्कृतिक प्रवृत्तियों के संधान द्वारा अपने परिप्रेक्ष्य को व्यापक बनाना और इस प्रकार साहित्य तथा मानवीय कार्यकलापों के अन्य क्षेत्रों में पारंपरिक संबंध से अवगत होना"। [6]
इंद्रनाथ चौधुरी अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि "भारत जैसे बहुभाषी-देश की स्थिति को ध्यान में रखते हुए तुलनात्मक साहित्य की परिभाषा मात्र यही हो सकती है कि तुलनात्मक साहित्य विभिन्न साहित्यों का तुलनात्मक अध्ययन करता है तथा साहित्य के साथ प्रतीति एवं ज्ञान के दूसरे क्षेत्रों का भी तुलनात्मक अध्ययन है"। [7]
इन कुछेक विद्वानों के अभिमतों से स्पष्ट है कि तुलनात्मक अध्ययन विभिन्न भाषाओं में रचे साहित्य के समतुल्यों के मध्य तुलना करने के साथ ही अलग-अलग देशों में किसी विचार-विशेष की अभिव्यक्ति व घटनाक्रम का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में बोध कराता है, विविध भाषाओं के साहित्यों के अंतरसंबंधों को स्पष्ट करता है तथा अध्येता को साहित्य को संपूर्णता में देखने व समझने की दृष्टि प्रदान करता है। "तुलनात्मक साहित्य एक प्रकार का अंतः साहित्यिक अध्ययन है जो अनेक भाषाओं को आधार मानकर चलता है और जिसका उद्देश्य होता है 'अनेकता में एकता संधान'"। [8] साहित्य के तुलनात्मक अध्ययन में यह जानना अधिक महत्त्वपूर्ण है कि तुल्यों के बीच जो महत्त्वपूर्ण है वह कैसे महत्त्वपूर्ण है, न कि यह जानना कि क्या महत्त्वपूर्ण है।
इस प्रकार तुलनात्मक साहित्य का अध्ययन मूलतः महत्त्वपूर्ण के नहीं, महत्त्वपूर्णता के कारणों पर बल देता है। इसके लिए, संस्कृति, राजनीति, समाज, फिल्म, संगीत आदि कला माध्यमों के साथ-साथ विभिन्न ज्ञान शाखाओं के मध्य अंतर-अनुशासनिक और अंतरानुशासनिक संवाद और संतुलन आवश्यक होता है। इस प्रकार तुलनात्मक अध्ययन और तुलनात्मक साहित्य के लिए एक संतुलित दृष्टि का होना अनिवार्य है। इस संतुलित दृष्टि की परिभाषा आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने की है। वे कहते हैं- 'संतुलित दृष्टि सत्यानवेषी दृष्टि है। एक ओर जहाँ वह सत्य की समग्र मूर्ति को देखने का प्रयास करती है, वहीं दूसरी ओर वह सदा अपने को सुधारने और शुद्ध करने को प्रस्तुत रहती है। वह सभी प्रकार के दुराग्रह और पूर्वग्रह से मुक्त रहने की और सब तरह के सही विचारों को ग्रहण करने की दृष्टि है।'
तुलनात्मक अध्ययन और अनुवाद का अति निकट संबंध है। तुलनात्मक अध्ययन विभिन्न भाषाओं के साहित्यों के मध्य संप्रेषण के गतिरोध को तोड़ने का कार्य करता है। यह कार्य अनुवाद के बिना संभव नहीं है। अनुवाद के माध्यम से स्रोतभाषा के साहित्य के सांस्कृतिक तत्वों का लक्ष्यभाषा में रूपांतरण होता है, जो तुलनात्मक अध्ययन का एक सबल आधार बनता है। इस तरह तुलनात्मक अध्ययन और अनुवाद सांस्कृतिक आदान-प्रदान की पृष्ठभूमि निर्मित करते हैं। इस पृष्ठभूमि का अनिवार्य संबंध तुलनात्मक साहित्य से है। इसीलिए माना जाता है कि "तुलनात्मक साहित्य के लिए विशेष रूप से भारत के संदर्भ में, अनुवाद कला से परिचित होना नितांत आवश्यक है। दूसरे संदर्भ में भी तुलनात्मक साहित्य के सामान्य अध्ययन के लिए अनुवाद कला, उसके स्वरूप और सिद्धांत से परिचित होना आवश्यक है। अनुवाद की महत्ता दर्शाते हुए ग्राहम हफ़ स्पष्ट करते हैं कि किस प्रकार नॉर्थ, पोप, एलफ़्रेड और आगस्टन जैसे अनुवादकों ने अनुवाद के माध्यम से अंग्रेजी साहित्य क्षेत्र में साहित्य सिद्धांत, साहित्यलोचन तथा साहित्येतिहास को नया रूप प्रदान किया। ड्राइडन ने 'फेबल्स' की भूमिका में अनुवाद तथा रूपांतरण के इतिहास के साथ तुलनात्मक आलोचना के निकट संबंध को स्पष्ट किया है"। [9]
इस प्रकार कहा जा सकता है कि तुलनात्मक अध्ययन वह प्रक्रिया है, जिसमें एक से अधिक भाषाओं के साहित्यों, साहित्यकारों, प्रवृत्तियों आदि का अध्ययन किया जाता है। विश्व की भाषाओं के साहित्यों के अंतराल को पाटने में तुलनात्मक अध्ययन की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसके आधार पर विश्व भर की भाषाओं के अलगाव को दूर किया जा सकता है। तुलनात्मक अध्ययन के द्वारा हमारी अध्ययन दृष्टि को पूर्वग्रहों से छुटकारा मिलता है, जिससे विश्व के श्रेष्ठ साहित्य को पहचाना जा सकता है। अनुवाद, तुलनात्मक अध्ययन और तुलनात्मक साहित्य का गहरा संबंध है। अनुवाद के अभाव में न तो तुलनात्मक अध्ययन के लिए सामग्री मिलना संभव है और न तुलनात्मक साहित्य का अस्तित्व। आज साहित्य के तुलनात्मक अध्ययन का महत्व पहले से कहीं अधिक है। सभ्यताओं के बीच उभरते संघर्ष को मिटाने तथा अधिक जीवंत साझी संस्कृति के विकास के लिए साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन अपरिहार्य है।
अध्ययन के महत्वपूर्ण स्त्रोत
1. राव, आदेश्वर. (1972). " तुलनात्मक शोध और समीक्षा". आगरा: प्रगति प्रकाशन.
2. चौधुरी, इंद्रनाथ. (2006). "तुलनात्मक साहित्य: भारतीय परिप्रेक्ष्य," दिल्ली; वाणी प्रकाशन.
3. राजूरकर, भ.ह. व बोरा, राजमल. (संपा). (2004). " तुलनात्मक अध्ययन: स्वरूप और समस्याएँ." दिल्ली: वाणी प्रकाशन.
4. शुक्ल, हनुमानप्रसाद. संपा. (2015). " तुलनात्मक साहित्य: सैद्धांतिक परिप्रेक्ष्य." नई दिल्ली: राजकमल प्रकाशन.
5. पाटिल, आनंद. (2006). "तुलनात्मक साहित्य: नए सिद्धांत और उपयोजन." (अनु.) चंद्रलेखा. दिल्ली: न्यू भारतीय बुक कार्पोरेशन
6. http://jagadishwarchaturvedi.blogspot.in/2017/02/blog-post_18.html
7. https://hi.wikipedia.org/wiki/तुलनात्मक_साहित्य
8. https://www.jstor.org/journal/compstudsocihist
9. http://samaykolkhyan.blogspot.in/2015/02/blog-post_15.html
10. http://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/150007/4/04_chapter%201.pdf