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नाटक

नए हथकंडे

डॉ. भारत खुशालानी


एक कमरे में एक मेज़ के चारों तरफ पांच लोग बैठे हैं. पाँचों किसी बहुत बड़े घराने के लगते हैं. पाँचों ने बहुत ऊंचे कपडे पहन रखे हैं.

कमल: तीन हज़ार लोग जमा थे वहाँ पर. तीन हज़ार ! और किसलिए ? हड़ताल पर जाने के लिए !

धनीराम: पत्तेकाटूं?

कमल:(धनीराम की तरफ देखकर)ठहरो यार !

कमल: (बाकी तीन को संबोधित करते हुए) औरक्या नारे लगा रहे थे वो ? क्या मांग कर रहे थे ? एकदम बकवास मांगें थी उनकी.

गिरधारी: साम्यवादियोंकी तरह.

कमल: (जयेश से) और उतना ही नहीं. एक लड़का मिला मुझे वहाँ. लड़का! आजकल के लड़कों के कैसे कैसे विचार हो गए हैं.

धनीराम: आज कौनसा गेम खेलना है ? रमी?

जयेश: (कमल से) मैं समझ गया. मुझे भी बिलकुल तुम्हारे जैसा ही लगता है.आज ही हम लोग एक बैंक में डाका डाल कर आ रहे हैं.कोई बड़ा डाका नहीं. छोटा सा था. बैंक भी छोटा ही था. सहकारी बैंक था. कोई बड़ी बात नहीं थी. कल्लन को तो तुम जानते ही हो. उसकोऔर उसके दो और साथियों को साथ में ले लिया था. हम चार लोग थे. चेहरे पर मुखौटा लगा लिया था. धडधड करके बैंक में घुस गए. कल्लन ने जाते ही फ़ोन लाइन काट दी ताकि पुलिस को न बुला सकें. सबके मोबाइल ले लिए. बैंक में भीड़ भी नहीं थी और कर्मचारी भी सिर्फ तीन थे.

बाकी के चार उसकी तरफ गौर से देखते हैं.

जयेश: सबकुछ बराबर हो गया. मैंने कैश उठा लिया.मालूम है कितना आया हाथ में ?

सब लोग अपेक्षापूर्ण नज़रों से जयेश को देखते हैं.

जयेश: एक लाख रूपए !

कमल हँसता है.धनीराम पत्ते पीसना शुरू कर देता है.

जयेश: (गिरधारी की तरफ देखते हुए)साठ हज़ार रूपए उन तीनों बदमाशों को देने पड़े.

कमल: वो तो देना ही पड़ेगा.

जयेश: और मेरे हिस्से में क्या आया ? चालीस हज़ार ! सिर्फ चालीस हज़ार! औरखर्चा अलग !

कमल: कौन से ज़माने में जी रहे हैं हम लोग ?

अमरसिंह: हम जी कहाँ रहे हैं ? हम तो मरे हुए हैं.

गिरधारी: सोये हुए हैं हम.

अमरसिंह: अब तो जागना ही पड़ेगा.

गिरधारी: हमारे भेजे में यह बात ही नहीं जा रही है कि हमारा अस्तित्व ख़त्म होने को आ रहा है.

कमल: ये सब पूंजीवादियों के कारण है.

अमरसिंह: पूरा समाज उपभोक्तावादी बन गया है.सब लोग मोटर साइकिल और कार चला रहे हैं. हमारे ज़माने में सिर्फ साइकिल चलती थी.

कमल: पूरे देश की ऐसी तैसी हो गई है.

धनीराम: हम लोग मनसूख हो गए हैं.

अमरसिंह: मनसूख मतलब?

धनीराम: हमारा ज़माना गया. हम जैसे लोग अब प्रचलन में नहीं हैं.

गिरधारी: उदार कोई बचा ही नहीं है. सब उदारतावाद के विरुद्ध हो गए हैं. फासीवाद पनप रहा है हिंदुस्तान में.

धनीराम: हमारे विकास में कमी आ गयी है.

जयेश: इसका कारण मुझे मालूम है.

कमल: क्या कारण है ?

जयेश: क्योंकि हम पैसों की तलाश बैंक में कर रहे हैं.

धनीराम: पैसा बैंक में नहीं रहेगा तो और कहाँ रहेगा ?

जयेश:पैसा बैंकों में नहीं है. मेरे हाथ में देखो कितना आया. चालीस हज़ार रूपए !

कमल: तो पैसा कहाँ पर है ?

जयेश: तुमने तो रैली देखी आज.सब प्रदर्शनकारी रस्ते पर आ गए थे.सब राजनीति में घुस रहे हैं.

धनीराम: सही बात है. आलू-चालू सब वहीँ घुस रहे हैं.सबको कोई न कोई आन्दोलन करना है.

गिरधारी: बात आन्दोलन की नहीं है. समाचारपत्रों में मुखपृष्ठ पर आना है. फोटो के लिए रस्ते पर आ जाते हैं.

जयेश: अगरतुमको पैसा चाहिए तो किसी संस्था का कोषाध्यक्ष बन जाओ.

कमल: जोआन्दोलन कर रहे थे, उनकी भी कोई न कोई संस्था होगी.

अमरसिंह: बात बिलकुल साफ है. पुराने ज़माने के लुटेरों का अब ज़माना नहीं रहा.

धनीराम: बीस साल पहले उनका ज़माना था.अब नहीं है.

गिरधारी: अब ज़माना बदल गया है. बच्चेमैग्गी और नूडल्स खाकर स्कूल जा रहे हैं. चीनी लोगों का खाना देश के घरों में घुस गया है.

कमल: खाने के बाद इनका समाजवाद भी हमारे घरों में घुस जाएगा.

अमरसिंह: समाजवाद तो पहले से घरों में घुस गया है.

धनीराम: वोदूसरे प्रकार का समाजवाद है.

कमल:जो बड़े बड़े निगम होते हैं, मैंअब सिर्फ उनका ही काम अपने हाथ में लेता हूँ.

धनीराम: उनका कौन-सा काम ?

कमल: उसमें भी उनके बड़े से बड़े अधिकारी का ही काम अपने हाथ में लेता हूँ.

धनीराम: मुझे नहीं मालूम था कि तुमने रास्ता बदल दिया है.

गिरधारी: रास्ता तो इसका नहीं बदला है. रास्ता वही है.

अमरसिंह: कौन-सा काम देते हैं वो ?

जयेश: और उसमे पैसा कितना मिलता है ?

कमल:अब मैं दक्षिणपंथियों को गोली मारता हूँ.

धनीराम: बहुत खूब.

गिरधारी: इससे क्या होता है ?

कमल:वामपंथियों पर इलज़ाम लगता है.

गिरधारी: दक्षिणपंथियों को गोली मारने के लिए ठेका तो वामपंथी ही देते होंगे.

जयेश: तो उनपर इलज़ाम सही है.

कमल: यही तो बात है. जो अराजकतावादी दक्षिणपंथी हैं, वो ठेका देते हैं.

धनीराम: बढ़िया है. दक्षिणपंथी ही दक्षिणपंथी को ठोकने के लिए ठेका दे रहे. वाह रे गाँधी !

गिरधारी: वाह रे गाँधी नहीं, वाह रे नेहरु !

जयेश: गांधीजी को वामपंथियों पर भरोसा नहीं था.

गिरधारी: नेहरु के कारण ही दक्षिणपंथी बढ़ गए हैं हमारे देश में.

जयेश: तुम तो ऐसे बोल रहे हो जैसे दक्षिणपंथी होना गुनाह है.देश का कर्जा कोई उनके कारण थोड़े ही बढ़ा है.

धनीराम: हमारा देश जो इतना पिछड़ गया है, मुझे नहीं लगता कि उसके लिए दक्षिणपंथी जिम्मेदार हैं.

अमरसिंह: देश नहीं पिछड़ा है, हम पिछड़ गए हैं.

कमल: जोस्वेच्छातंत्रवादी हैं, उनके खिलाफ अराजकतावादी वाले ठेका देते हैं.

अमरसिंह: एक दो को उडा दिया तो कोई फरक नहीं पड़ता है.

कमल: आज के युग में सिर्फ राजनीति ही सच्चाई है.

जयेश: मैं तो तुमको पहले ही बोल रहा था राजनीति जैसा कोई व्यापार नहीं है.

धनीराम: लेकिन राजनीति में भी कौन-सी पार्टी सही है ?

कमल: यही तो तुम लोग नहीं समझ रहे हो. सब पार्टियों के ऊपर ! लूट ऊपर है.

गिरधारी: सभी तो लूट रहे हैं, तो लूट ऊपर कैसे है ?

कमल: ('हमारे लिए' पर जोर देते हुए) हमारेलिए... हमारे लिए लूट ऊपर है.

अमरसिंह: लूट ऊपर है ?

कमल: सरकार, बड़ेनिगम,कामगार संघ.

धनीराम: सब लूट है.

कमल: आज जहां मैं गोली मारने गया था, तीन हज़ार लोग थे वहाँ ! बड़ी रैली थी ! सरकार, बड़े निगम और कामगार संघ, तीनों की सांठ-गांठ थी.

धनीराम:ऐसे ही लूट का मौका बनता है.

कमल: किसी भी बड़े बिगम के बड़े अधिकारी को घायल करने के पांच लाख रूपए मिलते हैं मुझे.

अमरसिंह: पांच लाख रूपए ??!

कमल: किसी भी बड़े कामगार संघ में बैंक से ज्यादा पैसा होता है.

धनीराम:तोतुम उसे गोली मार देते हो?

कमल: मैं सिर्फ उसे घायल करता हूँ. मारता नहीं हूँ.

धनीराम: आज तक कोई मरा नहीं ?

कमल: आज तक कोई मरा नहीं. वैसे भी हाल ही में ये धंधा शुरू किया है.

जयेश: राजनीति में सुधार लाना असंभव है.

अमरसिंह: हमको राजनीतिशास्त्र सीखना चाहिए.

धनीराम: किससे सीखना चाहिए ?

अमरसिंह: चुने हुए गुंडे और बदमाशों से.

धनीराम: हम क्या हैं ?

अमरसिंह: हमको राजनीति नहीं आती है.

धनीराम: इस समय केअर्थछवी दांव-पेंच सीखने चाहिए.

अमरसिंह: अर्थछवी मतलब?

धनीराम: तुम्हारे लिए 'बदले हुए'.

गिरधारी:आजकल के दांव-पेंच जबरन पैसा वसूली पर टिके हुए हैं.

धनीराम: औरबंधक बनाने पर.

अमरसिंह: अपहरण करने पर.

गिरधारी: यह ज्यादा चल रहा है आजकल.

धनीराम: इसमें पैसा ज्यादा है.

अमरसिंह: राजनीति में भी ऐसे ही पैसा कमा रहे हैं.

कमल: वो हमको ठेका देते हैं.

अमरसिंह: पैसे वसूली का भी ठेका देते हैं.

गिरधारी: वो तो कॉन्ट्रैक्ट से भी बहुत लूटते हैं.

जयेश: हमको हर प्रकार के विशेषग्य बुलाकर उनकी राय लेनी चाहिए.

धनीराम: वो लोग आने के पैसे लेते हैं.

अमरसिंह: मुझे राजनीति वाला धंधा अच्छा लग रहा है.

कमल: लेकिन इसके लिए यह समझना बहुत जरूरी है कि कौन समाजवादी है, कौन अराजकताकारी है, कौन स्वेच्छातंत्रवादी है,कौन रूढ़िवादी है,कौननरम दलीय है.

जयेश: इसकी जानकारी कौन देगा ?

कमल: दोनों तरफ ठेका देने वाले लोग हैं.

धनीराम: गोली चलाने वाले को सफ़ेद झंडा दिखाने वाला बहुत खटकता है.

गिरधारी: अपनों के अन्दर ही गुटबाजी है.

धनीराम: खुद ही अपने वालों को हटाना चाहते हैं.

गिरधारी: जिनसे इन्होने सीखा है,उनको तो कभी नहीं लगता होगा किजिनको वो पैदा कर रहे हैं, उनमें कोई आदर्श नहीं है.

धनीराम: हम भी तो बिना आदर्शों वाले हैं.

गिरधारी: हमारी बात अलग है. हमारे भी अपने उसूल हैं.

कमल: बिलकुल, मैं सिर्फ घायल करता हूँ, मारता नहीं हूँ.

जयेश: मैंने भी बैंक डकैती में कभी पिस्तौल का इस्तेमाल नहीं किया. सिर्फ डराने धमकाने के लिए.

गिरधारी: जो लोग ठेका दे रहे हैं, दूसरों को हटाने का,वो अपने गुट में इसीलिए नहीं हैं कि उनका कोई आदर्श है.

अमरसिंह: पैसा ही उनका आदर्श है.

धनीराम: औरताकत.

गिरधारी: सत्ता.

जयेश: अव्यवस्था और अराजकता फैलाने में उनको मज़ा आता है.

अमरसिंह: मज़ा तो बाद में आएगा, पहले पैसा आता है.

धनीराम:अव्यवस्थाके लिए अलग से कोर्ट-कचहरी होनी चाहिए.

कमल: अराजकता फैलाने वाले मुझे पैसा दे रहे हैं. उनके खिलाफ जितने भी कोर्ट-केस होते हैं वो सब बाकी के केसों के साथ मिल जाते हैं.

गिरधारी: फिर तो दस-बीस साल कहीं नहीं गए.

कमल: उसके बाद गवाह नदारद. बाईज्ज़त बरी.

जयेश:पुराने ज़माने के मुजरिमों से ही इस नई पीढ़ी का जन्म होगा. यह नयी पीढ़ी अराजकता और अव्यवस्था फैलाकर लूट रही है.

कमल: हमको भी इस लूट में शामिल होना है.

धनीराम: गुंडागिरी में नया अध्याय खोलना है.

कमल: हमारे जैसे बदमाशों को ये सत्ता हडपनी है.

गिरधारी: बिलकुल सही बात है. सारा वो ही लूट रहे हैं. हम बदमाश कहाँ जायेंगे ?

जयेश: बैंकों में भी पैसे नहीं हैं.

धनीराम: हमारे पास कल्पना शक्ति नहीं है. इसीलिएदूसरे के भरोसे पर बैठे हैं कि वो ठेका दे.

अमरसिंह: पर इससे लोग मर भी सकते हैं.

गिरधारी: और मरेंगे भी.

धनीराम: तो क्या हो गया ? जब इमरजेंसी लगी थी, तो कितने लोग मर गए थे ? और जब दंगे भड़कते हैं, तो कितने लोग मरते हैं ? जो लोग राज करतेहैं, उनका कुछ नहीं होता है.

गिरधारी: अगर कोई आदमी अपनी गाडी सौ की स्पीड से रोड पर तेज़ चलाकर भगाता है,तो कम से कम दस लोगों को रौंद ही देगा.ये राज करने वाले भी इसी प्रकार के लापरवाह चालक हैं, फरक इतना है कि वो सिर्फ दस लोगों को नहीं मारते हैं, सैकड़ों और हज़ारों को मारते हैं.

जयेश: हम लोग तो किसी को भी नहीं मारते.

गिरधारी: ये राज करने वाले समझते हैं कि वो इस देश में क्रान्ति ला रहे हैं.

धनीराम:भौतिकवाद लाया है, क्रान्ति नहीं.

जयेश: दोनों पक्षों की ओर सेभौतिकवाद आया है.

धनीराम: द्विपक्षीय भौतिकवाद है.

गिरधारी: क्रान्ति तब आती है जब सामाजिक बलों में वास्तविक संघर्ष होता है.

जयेश: अब संघर्ष पैसों से प्रेरित है.

कमल: हमारे लिए अच्छा है. हमको ठेका मिलेगा.

धनीराम: भौतिकवाद ही राजनीतिक विचारों का आधार बन गया है.

गिरधारी: विश्लेषण कम, संश्लेषण ज्यादा.

धनीराम: द्वंद्ववाद है.

अमरसिंह: बहुत पेचीदा है. समझने में उतना सरल नहीं है.

कमल: हमको उतना ज्यादा समझने की जरूरत नहीं है.

जयेश: पैसा मिल जाए उतना ही काफी है.

धनीराम: ये लोग एक स्थिति का विश्लेषण करते हैं, और उससे एक बहुत बड़े पैमाने का सामान्य निश्कर्ष निकालते हैं.

गिरधारी: फिर उसी निष्कर्ष को दूसरी विशेष परिस्थिति में लगाते हैं.

धनीराम: उसमें भी देख-देखकर.

गिरधारी: अपना रहा तो आतंकवादियों से उसको छुडाने के लिए बातचीत करेंगे. कोई और रहा तो अपने सामान्य निष्कर्ष वाला सिद्धांत देश के सामने रख देंगे.

धनीराम: यही द्वंद्व है. इसी से द्वंद्ववाद पनपता है. भौतिकवाद और द्वंद्ववाद साथ साथ में चल रहा है इस देश में.

जयेश: बाकी सब लोग मौकापरस्त हैं, मौके का फायदा उठा रहे हैं.

अमरसिंह: ठीक उसी तरह जैसे बड़े निगमों में भर-भरकर आमदनी मिल रही है तोसब उस ओर दौड़ रहे हैं.

जयेश: निगमों की आमदनी के चक्कर में उनका जीवन खुद का कहाँ बचा है ? इससे तो हम अच्छे हैं.स्वतंत्र हैं.

अमरसिंह: लेकिन ठेके के लिए दूसरों पर निर्भर हैं.

गिरधारी: एक परिस्थिति से निष्कर्ष निकालना, और उसी निष्कर्ष को दूसरी परिस्थिति पर लगाना ...

धनीराम: आखिर में जो हमको चाहिए, उसीप्रकार से इसको मोड़ सकते हैं.

अमरसिंह: सबके विचार अलग अलग हैं.

धनीराम: उनके विचारों में ही नहीं, उनके काम करने के तरीकों और उनके सिद्धांतों में भी विरोधाभास है.

अमरसिंह:सब कुछ बहुत भ्रामक है.

जयेश: भ्रामक होकर भी सीधे सीधे है. अगर सिर्फ पैसा ही चाहिए तो कुछ भी समझने की जरूरत नहीं है. कोई प्रश्न उठाने की जरूरत नहीं है.

धनीराम: फिर हममें और बड़े निगमों में जो भेडचाल मची है, उसमें क्या फर्क रह जाएगा ?

कमल: पैसों को छोड़ भी दो, तो अगर मुझे मालूम है कि ये सब कुछ मेरी समझ में नहीं आएगा या मैं ये सब कुछ नहीं समझता हूँ, तोमुझे कोई भ्रम नहीं रहेगा,मैं भ्रम से ऊपर रहूँगा.इस प्रकार से मैं और ज्यादा पैसा कमा सकूंगा.

गिरधारी: मंच पर चढ़कर ये लोग नारे देते हैं - "एकदूसरे से प्रेम करो", "भाईचारा अपनाओ", और फिर एक दूसरे को मारते हैं.

धनीराम: इन्हीं विरोधाभासों का हमको फायदा उठाना है.

अमरसिंह: ऐसा करने से हमारे कार्यवाई का क्षेत्रफल बदल जाएगा.

कमल: हमको एक प्रकार का विशेषग्य होना है. हमारीविशेषता इस भ्रम में स्पष्टता होनी चाहिए.

धनीराम: भ्रम में स्पष्ट होना...

गिरधारी: जो ठेका दे रहे हैं, वो भ्रम में हैं. हम स्पष्ट हैं.

जयेश: हमारी स्पष्टता का कारण पैसा भी हो सकता है.

अमरसिंह: मुझे ठीक तरह से स्पष्ट नहीं हुआ है.

जयेश: मैं समझाता हूँ. हम पाँचों लोग साथ मिलकर एक बीड़ा उठाते हैं.

अमरसिंह: साथ मिलकर कसम लेते हैं ?

जयेश: नहीं. साथ मिलकर एक सुपारी खाते हैं.

अमरसिंह: सुपारी के लिए किसी को ठेका देना पड़ेगा.

जयेश: नहीं. हम खुद ही अपना बीड़ा उठाते हैं. पाँचों अपनी अपनी ताकत मिलाकर.

अमरसिंह: ऐसा सीधा बोलने से कोई भ्रम नहीं है. सब साफ़ और स्पष्ट है.

जयेश: वर्तमान राजनीति के हथकंडों का इस्तेमाल करते हैं.उसी में सबसे ज्यादा पैसा और फायदा है.

अमरसिंह: मतलब अपहरण और जबरन पैसा वसूली.

जयेश: बिलकुल सही.

गिरधारी: पहले अपहरण. फिर जबरन पैसा वसूली.

धनीराम: मतलब कि पाँचों मिलकर पहले अपहरण करेंगे और बाद में उसके घरवालों से पैसा वसूली.

जयेश: बिलकुल सही.

कमल: मुझे कोई आपत्ति नहीं है.

अमरसिंह: मैं तैयार हूँ.

गिरधारी: मैं भी.

धनीराम: मैं भी.


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