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बाल साहित्य

बाल कविता

दिनेश पाठक शशि


वन्दना

माँ हमको दो, यह वरदान।

पढ़ं-लिखें हम, बनें महान।

खेलें-कूदें, खेल नये।

बढ़े देश की, हमसे शान

विश्व-गुरू हो, फिर से देश

इसका करें, सभी सम्मान।

...

हे प्रभु दो...

हे प्रभु दो, ऐसा वरदान।

करें सदा सबका सम्मान।।

रहे सदा से, पूजा-पाठी

पर विज्ञानी, बहुत बड़े।

नहीं क्षेत्र ऐसा, कोई भी

जिसका हमें नहीं हो, ज्ञान।।

कुछ भी शेष नहीं रहता है,

करता विश्व सदा यह गान।

फलीभूत जब हो जाता है

प्रभु तेरी किरपा का दान।।

...

चन्दा मामा

चन्दा मामा, चन्दा मामा

मुझको बहुत सताते हो।

तकती रहती राह तुम्हारी

नहीं समय पर आते हो।।

इतने बड़े हो गये फिर भी

शरम नहीं तुमको आती।

आते हो तुम रोज देर से

राह देख मैं सो जाती।

तारों की इस महासभा के

तुम प्रधान बन जाते हो।।

भैया मुझसे रोज पूछता

चाँद कहाँ पर रहता है।

क्या खाता है,क्या पीता है

शीत-घाम क्यों सहता है?

कभी चाँद के गाल फूलकर

कुप्पा से हो जाते हैं।

कभी पिचक कर रोटी के

टुकड़े जैसे रह जाते हैं।।

भैया की इस अबुझ पहेली,

में, क्यों हमें फँसाते हो?

क्या तुमने भी नेताओं की

तरह घोटाले कर डाले।

इसीलिए क्या लगा रखे हैं

अपने होठों पर ताले?

क्या तुमने भी स्विसबैंक में

अपना खाता खोला है?

कहाँ छुपा रक्खा है मामा

टाफी वाला झोला है?

छुपे-छुपे क्यों घूम रहे हो,

क्यों इतना घबराते हो?

नहीं किया घोटाला मैंने

नहीं कहीं खाता खोला

दूर हो गया हूँ मैं तुमसे

जब से मनुज मुझ पर डोला

मुझको जब से मानव ने

कंकड़-पत्थर का बतलाया ।

बच्चों मैंने उस दिन से ही

नहीं अभी तक कुछ खाया।।

तुमको मैं अच्छा लगता हूँ।

मुझको भी तुम भाते हो।।

...

सूरज दादा

मैं हूँ सूरज भोर का।

दुश्मन हूँ तम घोर का।।

रोज सबेरे आता हूँ।

अपना फर्ज निभाता हूँ।

किरणों के तीखे भालों से

तम को मार भगाता हूँ।

कलियाँ खिलतीं, फूल बिहँसते

चिड़ी चहकती शोर का।।

मैं हूँ सूरज भोर का।।

ठीक समय पर पहुँचा करता

नहीं बहाना करता हूँ।

सर्दी गर्मी या वर्षा हो

नहीं किसी से डरता हूँ।

बर्फ गिरे, आँधी आये या

आये तूफां जोर का।।

मैं हूँ सूरज भोर का।।

बच्चो ! कभी नहीं कम होने

देना अपने साहस को।

और कभी मत पास फटकने

देना, अपने आलस को।

फिर मेरी ही तरह तुम्हारा

स्वागत होगा जोर का।।

मैं हूँ सूरज भोर का।।

...

छुक-छुक रेल

बच्चे मिलकर खेलें खेल।

छुक-छुक चलती अपनी रेल।।

नन्दू जी की गुड़िया बोली

आओ मिलकर खेलें खेल।

हो जाते हैं खड़े इस तरह

बन जायेगी लम्बी रेल।।

किन्तु न करना कोई भैया

बिल्कुल धक्कम ठेला-ठेल।।

छुक-छुक चलती अपनी रेल।।

चिंकी - पिंकी, टिंकू डिब्बे

इंजन राजा भैया।

राजुल गार्ड दे रहा सीटी

नाचे ता - ता थैया।

डिब्बे बनकर सब करते हैं

देखो कैसी धक्कम पेल।।

छुक-छुक चलती अपनी रेल।।

नहीं तीसरा दरजा इसमें

नहीं है दरजा पहला।

भेद-भाव से दूर बहुत है

कोई न नहला - दहला।

खेल-मेल की इस गाड़ी का

नाम रखा है चुनमुन मेल।।

छुक-छुक चलती अपनी रेल।।

...

होली

हो-हो, हो-हो हैया रे

कैसा जाड़ा भैया रे।।

आई बसन्त बहार है।

फूलों की भरमार है।

भीनी बहती ब्यार है।

कहती कोयल सार है।

नहाओ गंगा मैया रे।।

हो-हो, हो-हो हैया रे ।।

नाचो-कूदो मस्ती में

आई होली बस्ती में।

झूमे टोली जत्थी में।

कपड़े रख दो खत्ती में।

मस्त कुलांचें छैया रे।।

हो-हो, हो-हो हैया रे।।

लाओ पप्पू रंग गुलाल।

गले मिलें, सब बाल-गुपाल।

महक उठे सब घर-चैपाल।

दुहो सबेरे गैया रे ।।

हो-हो, हो-हो हैया रे।।

...

समय का मोल

लगा देखकर बौर आम पर

मन ही मन हरषाया माली।

डाल-डाल पर बोली मैना

मधुर स्वरों में कोयल काली।।

बैठ डाल पर हरियल तोता

गीत प्रेम के गाये।

कच्ची-खट्टी अमिया उसको

बिना नमक ही भाये।।

तितली रानी फूल-फूल पर

नाच करे मुसकाकर ।

मधुमक्खी तब शहद चुराये

भिन-भिन गीत सुनाकर।।

सभी कर्मरत रहते हरदम

बिना कहे, बिन बोले बोल।

हम भी सीखें सबक सभी से

समझें सदा समय का मोल।।

...

ठण्ड का असर

आज नहीं आये सूरज जी

लगता, ठण्डी मान गये।

कोहरे की चादर को ओढ़े

छुपकर, लम्बी तान गये।।

बुरा हुआ अब हाल ठण्ड से

सभी ठिठुर कर कांप रहे।

रहे किटकिटा दांत सभी के

जैसे माला जाप रहे।।

नहीं छूटती आज रजाई

सोते रहो, यही मन करता।

दादू की झिड़की सुन लेकिन

बच्चों का मन डरता।।

बहुत हो चुका सूरज दादा

मत हमको तरसाओ।

ओढ़ रजाई बैठें कब तक

अब तो बाहर आओ।। ...

सक्षम पहुँचा अपने गाँव

दादी-दादू रहते जिस घर

सक्षम पहुँचा, अपने गाँव ।

बड़ा सुहाना, मौसम देखा

खुला, मस्त और सुन्दर ठाँव।।

बीच गाँव में घर है उनका

और गाँव के बाहर घेर।

दादी दुहती दूध गाय का

बछड़ा पीता आँखें फेर।।

घेर बहुत है लम्बा -चैड़ा

उसमें सब्जी, बोते दादू।

फूल और फुलवारी संग में

आम, पपीता, कटहल, कद्दू ।।

हरा-हरा धनिया, पालक भी

प्रतिदिन - ताजा खाते।

डाल पुदीना रोज रायता

दादू मुझे खिलाते।।

और आम की बगिया में

जब दादू लेकर जाते।

मुझको बड़े प्यार से दादू

मीठे आम खिलाते।।

...

वे रहते हैं सदा निरोगी।

खूब खिल-खिलाकर, हँसते जो।

क्रोध कभी ना, करते हैं जो।

सोते-जगते, सही समय पर।

वे रहते हैं, सदा निरोगी।।

सुबह सुहानी होती ऐसी

बहती शीतल मंद समीर।

करते सेवन, उसका जो भी

वे रहते हैं, सदा निरोगी ।।

...

हे कोरोना अब जाओ।

हे! कोरोना अब जाओ।

नहीं लौट कर, फिर आओे।।

घर के अन्दर ऊब गया हूँ

मैं अपने में डूब गया हूँ।।

मुझको अब शाला जाना है

खेलों में अब्बल आना है।।

हा-हाकार मचा चहुँ ओर।

कैसी संध्या कैसी भोर।।

सभी पा रहे सजा जेल की।

भूल गये अब सैर रेल की।।

खेलूँ दिनभर घर में कैसे।

ठहर गया है जीवन जैसे।।

घर में भी सब रहते दूर।

कोरोना तुम कितने क्रूर।।

पार्क कबड्डी, खो-खो खेल।

छीन लिया है तुमने मेल।।

दादी कहतीं, यह है पाप।

तुम्हें लगेगा सबका शाप।।


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