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कविता

उलटबाँसी

नीलेश रघुवंशी


तुम मेरा प्रथम प्रेम तो नहीं
लेकिन तुम्हारे प्रेम की व्याकुलता
प्रथम प्रेम की व्याकुलता सी है!
हर शाम तुम्हारी याद आती है
तुम्हारी याद को शाम
करेला और नीम चढ़ा बना देती है!
अगर पेड़ न होते तो जाने क्या होता
दगा तो सूर्य और चंद्रमा करते हैं
सूर्य अपनी लालिमा बिखेरकर
तुम्हारी याद में तपा देता है !
चाँद बजाय शीतलता देने के
ऐसे छिपता है जैसे छोटे शहरों के
प्रेमी युगल अपने प्रेम को छिपाते फिरते
मारे डर के एक दूसरे को राखी बाँध देते हैं!
यही उलटबाँसी चाँद की हर दिन चलती है
सबसे ज्यादा तब -
जब मुझे तम्हारी घनघोर याद आती है!


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