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नाटक

किडनी

डॉ. भारत खुशालानी


किडनी

सेटिंग: डॉक्टर लिमय का दवाखाना। डॉक्टर के ऑफिस में कई प्रकार के मेडिकल चार्ट टंगे हैं। कुछ मॉडल भी रखे हैं। डॉक्टर टेबल के पीछे अपनी कुर्सी पर बैठा है। उसके सामने दो कुर्सियां पेशंट के लिए हैं। मेज़ पर डॉ. लिमय के नाम की पट्टी रखी हुई है।

(अनुपमा और मोहन, डॉ. लिमय के दवाखाने में प्रवेश करते हैं। डॉ. लिमय मुस्कराहट के साथ उनका स्वागत करता है।)

डॉ. लिमय: मोहन, अनुपमा, कैसे हो भाई आप लोग? बहुत दिनों के बाद मुलाक़ात हो रही है। तुम लोगों को देखकर अच्छा लग रहा है।

अनुपमा: (मुस्कुराने की कोशिश करते हुए) नमस्ते डॉ. लिमय। अगर किन्हीं और परिस्थितियों में हमारी मुलाक़ात हो रही होती तो ज्यादा बेहतर होता।

डॉ. लिमय: मोहन, कैसे चल रहा है सब कुछ?

मोहन: बस, चल रहा है। आज ही आपके सेक्रेटरी से अपॉइंटमेंट ली। इतनी जल्दी आपने हमें मिलने का वक़्त दे दिया, उसके लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया।

डॉ. लिमय: अरे, ऎसी क्या बात है ! अब ये बताओ कि बात क्या है।

मोहन: बात अनुपमा के लक्षणों को लेकर है।

अनुपमा: जी। मुझे आजकल कुछ ज्यादा ही थकान महसूस हो रही है। सूजन भी है। पीठ में भी दर्द है।

डॉ. लिमय ये इतने गंभीर लक्षण नहीं हैं। किसी भी कारण से ऐसा हो सकता है।

अनुपमा (बेचैनी से): बाथरूम जाने का भी मसला है। आजकल मुझे रात को उठकर कई बार बाथरूम जाना पड़ रहा है।

मोहन: इससे सोने में विघ्न पड़ रहा है।

डॉ. लिमय (सोचते हुए): ह्म्म्म... रात में बार-बार पेशाब आना ...

अनुपमा: जी ...

डॉ. लिमय: आहार में कोई बदलाव किया है? तनाव पहले से अधिक है?

अनुपमा: तनाव की स्थिति तो बन ही गई है। काम में बहुत व्यस्तता है। हर छोटे-बड़े प्रोजेक्ट की तो डेडलाइन होती ही है। इसी से तनाव हो जाता है कि क्या मैं इनको पूरा कर पाउंगी?

मोहन: मैंने नोटिस किया है कि हाल ही में अनुपमा अपने आप पर कुछ ज्यादा ही जोर डाल रही है। ऐसा लगता है कि उसके ऊपर अपने काम का कुछ ज्यादा ही दबाव बना हुआ है।

डॉ. लिमय (सर हिलाते हुए): अपनी निजी ज़िंदगी और अपने करियर के बीच संतुलन बनाए रखना परम आवश्यक है।

मोहन: मैंने तो अनुपमा से कहा है कि यही वजह हो सकती है, और उसे अपने ऑफिस के काम को थोड़ा लाइटली लेना चाहिए।

डॉ. लिमय (अनुपमा से): आपके परिवार में किसी और को ऐसा होता है? किडनी संबंधी कोई समस्या से गुजरा है कोई?

अनुपमा (सोचते हुए): मुझे नहीं लगता है। जितना मुझे पता है। मेरे माता-पिता तो स्वस्थ हैं।

मोहन: आपको लगता होगा कि हम अपने काम के कारण ही आपसे मिलने आए हैं।

डॉ. लिमय: एक डॉक्टर से मिलने और कोई क्यों आयेगा! (हँसते हुए) ऎसी बात नहीं है। गंभीर चर्चा के बीच भी हम लोग मैत्रीपूर्ण तरीके से वार्तालाप कर सकते हैं।

मोहन: अगर हम अनौपचारिक तरीके से आपसे कहीं और मिलते तो यह समस्या नहीं बता पाते। ऐसा लगता कि बेवजह आपका समय जाहिर कर रहे हैं।

डॉ. लिमय: अनुपमा, हम इसका पता लगा लेंगे कि माजरा क्या है, क्या चल रहा है।कुछ परीक्षण की आवश्यकता है। कुछ टेस्ट करवाने पड़ेंगे।

अनुपमा (बेसब्री से): टेस्ट? किस प्रकार के?

डॉ. लिमय (आश्वासन देते हुए): अभी हम लोग किसी प्रकार का निष्कर्ष नहीं निकाल सकते हैं। डॉक्टर जासूस होते हैं, और टेस्ट तथा परीक्षण उनके मैग्नीफाइंग लेंस होते हैं। इससे साफ़ दिखता है कि प्रॉब्लम कहाँ पर है।

मोहन (बीच में ही, चिंता से): कोई सीरियस बात लग रही है क्या? क्योंकि कभी-कभी मुझे ऐसा लगता है की अनुपमा कहीं खो गई है और उसका ध्यान नहीं लग रहा है।

डॉ. लिमय (शान्ति से): अटकलें लगाने से कोई फायदा नहीं है। ऐसे लक्षणों से कई प्रकार की चीज़ें हो सकती हैं। हमारा काम है उन चीज़ों का पता लगाना।

मोहन: सही बात है। चिंता करने से कोई हल नहीं निकलेगा।

डॉ. लिमय (अनुपमा से): मुझे याद है जब तुम मेरे क्लिनिक में महज़ साधारण ज़ुकाम होने पर भी आती थी।

अनुपमा (आधी मुस्कराहट के साथ): छोटी-सी बात को लेकर भी इंसान बहुत बार चिंतित हो जाता है।

डॉ. लिमय (याद करते हुए): पुराने दिन थे वे जब रोग का पता लगाना आसान कार्य था। अनुपमा: अबकी बार इस रहस्य को सुलझाने के लिए परीक्षण जरूरी हो गए हैं।

डॉ. लिमय (अपनी कुर्सी से उठते हुए): कुछ टेस्ट करते हैं। खून और पेशाब की जांच कर लेते हैं। फिर मिलते हैं। इस बीच, ज्यादा चिंता करके अपनी सेहत को नुकसान पहुंचाने से कोई फायदा नहीं।

(आगे क्या होगा, इस अनिश्चिंतता के साथ मोहन और अनुपमा क्लिनिक से बाहर जाते हैं।)

डॉ. लिमय (अपने आप में सोचते हुए): ये लक्षण थोड़े रहस्मयी लग रहे हैं।

(डॉ. लिमय अपने ऑफिस में यहाँ से वहाँ घुमते हैं। अनुपमा के मेडिकल चार्ट को गौर से देखते हैं।)

(पूरा दिन गुजर जाता है। फिर डॉ. लिमय की सेक्रेटरी, अनुपमा के टेस्ट रिजल्ट लाकर डॉ. लिमय को दे देती है।)

सेक्रेटरी: ये अनुपमा के टेस्ट रिजल्ट हैं।

(सेक्रेटरी चली जाती है। डॉ. लिमय आशय से टेस्ट के परिणाम देखता है।)

डॉ. लिमय (गहरी सांस छोड़कर): किसी विशिष्ट ज्ञान वाले डॉक्टर की जरूरत है। विशेषग्य की सलाह की आवश्यकता है। किससे पूछूं? किसको बुलाऊं?

(डॉ. लिमय अपना मोबाइल निकालकर फ़ोन लगाते हैं। मोबाइल स्पीकरफ़ोन पर है। फ़ोन लगाने की रिंग जा रही है। दूसरी और से डॉ. मिलन फ़ोन उठाते हैं। उनकी आवाज आती है।)

डॉ. मिलन: डॉ. मिलन। कहिये?

डॉ. लिमय (फ़ोन पर): मिलन, मैं लिमय बोल रहा हूँ।

डॉ. मिलन: अरे वाह! क्या बात है! कैसे याद किया?

डॉ. लिमय: अरे कुछ ख़ास नहीं। लेकिन आज एक पेशंट आई थी। थोड़े से हैरान कर देने वाले उसके लक्षण हैं। मुझे लगा की तुम्हारी एक्सपर्टीस काम आ सकती है। तुम इस बात के विशेषग्य हो।

डॉ. मिलन (उत्सुकता से): हाँ, हाँ, बताओ।

डॉ. लिमय: पेशंट ... उसका नाम अनुपमा है ... पेशंट को थकान, सूजन, बार-बार पेशाब आ रहे हैं। साथ ही उसके पति का कहना है कि कभी-कभी वह अस्पष्ट रूप से व्यवहार करती है। किस प्रकार का रोग हो सकता है?

डॉ. मिलन: ह्म्म्म... जटिल मामला लगता है। स्टैण्डर्ड टेस्ट करवाए आपने?

डॉ. लिमय: हाँ, टेस्ट रिपोर्ट मेरे पास आ गई है। लेकिन उससे कुछ साफ़ नहीं हो रहा है।

डॉ. मिलन: ठीक है। टेस्ट रिजल्ट मुझे व्हाट्सएप्प कर दो। मैं थोड़ी ही देर में आपके क्लिनिक पहुंचता हूँ। हम इसपर आगे चर्चा कर सकते हैं।

डॉ. लिमय: बढ़िया! इस पहेली को शायद तुम्हारी विशेषज्ञता की ही जरूरत है।

डॉ. मिलन: हमने एक से बढ़कर एक दमदार केस मिलकर सुलझाए हैं। इसमें भी कुछ न कुछ तो हो जाएगा।

(डॉ. लिमय फ़ोन रख देते हैं। उन्हें राहत महसूस होती है। वह एक और फ़ोन लगाते हैं।)

डॉ. लिमय (फोन पर): अनुपमा, तुम्हारे केस के लिए मैंने डॉ. मिलन को बुलाया है। वह स्पेशलिस्ट हैं। और वह अभी कुछ ही देर में मेरे क्लिनिक पहुँच जायेंगे। तुम्हारे लिए संभव है इस वक़्त मेरे क्लिनिक आ पाना?

अनुपमा (फोन पर): बिलकुल, डॉ. लिमय। मैं आपकी आभारी हूँ कि आपने मेरे लिए इतनी तकलीफ उठाई।

डॉ. लिमय: अरे नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। तुम तुरंत पहुँचो।

(डॉ. लिमय फ़ोन रख देते हैं।)

(कुछ समय बाद अनुपमा और मोहन, और उनके पीछे-पीछे डॉ. मिलन का आगमन होता है।)

डॉ. लिमय: वेलकम, मिलन। मुझे उत्सुकता हो रही थी कि तुम कब आओगे।

(दोनों डॉक्टर हाथ मिलाते हैं।)

डॉ. लिमय (परिचय कराते हुए): अनुपमा, मोहन - ये डॉ. मिलन हैं। बहुत ही प्रसिद्ध विशेषग्य हैं। मैंने इन्हें बुलाया है ताकि तुम्हारे केस को एक और एंगल से देख कर बताएं।

(अनुपमा और मोहन, डॉ. मिलन को नमस्ते कहते हैं। डॉ. लिमय, अनुपमा के मेडिकल चार्ट, डॉ. मिलन को देते हैं। डॉ. मिलन उन्हें ध्यान से देखते हैं।)

डॉ. मिलन (मेडिकल चार्ट और अपने मोबाइल पर टेस्ट रिजल्ट देखते हुए): अनुपमा, तुम्हारे लक्षण वाकई में हैरान कर देने वाले हैं।

अनुपमा (उद्वेग से): मुझे क्या हो रहा है डॉ. साहब?

डॉ. मिलन (सोचते हुए): ऐसा लगता है कि तुम्हारी किडनी कोई कहानी बताने की कोशिश कर रही है।

मोहन: मतलब, डॉक्टर साहब?

डॉ. मिलन: अनुपमा, तुम्हारी किडनियां अनोखी हैं। वे खुद को इस तरह से अभिव्यक्त कर रही हैं जो सामान्य लक्षणों से परे है।

अनुपमा: अनोखी?! इसका मतलब क्या हुआ डॉक्टर साहब?

डॉ. मिलन: लिमय ने मुझे तुम्हारे चार्ट दिखाए हैं। तुम्हारी फॅमिली हिस्ट्री में एक छोटी कड़ी है जिसकी ओर पहले कभी ध्यान नहीं गया है। तुमको आनुवांशिकी समझती है?

मोहन: जी सर। हमारे जींस से संबंधित होती है।

डॉ. मिलन: बिलकुल। तो यही तुम्हारे फॅमिली की जींस की लिंक तुम्हारे किडनी के कार्य को प्रभावित कर रही है। इसे आनुवांशिक कड़ी कहा जा सकता है। यह कोई सीधा-साधा केस नहीं है।

(अनुपमा और मोहन हैरान नज़रों से एक-दूसरे की ओर देखते हैं।)

मोहन: सर, इसको थोड़ा-सा और स्पष्ट कर देंगे तो बहुत अच्छा हो जाएगा।

डॉ. मिलन (एक अलग परिपेक्ष्य प्रदान करते हुए): हमें व्यापक संभावनाओं पर विचार करने की आवश्यकता है। मेडिकल की पाठ्यपुस्तकों में जो किडनी के केसेस पढाए जाते हैं, उनसे थोड़ा-सा अलग लग रहा है। ऐसा लगता है की तुम्हारी किडनियां अपनी ही भाषा में कुछ कहना चाह रही हैं।

मोहन: डॉक्टर साहब, इस जानकारी को आत्मसात करने में हमें थोड़ा वक़्त लग जाएगा। यह हम पहली बार सुन रहे हैं।

अनुपमा: मुझे अपनी हालत की जटिलता का अनुभव हो रहा है।

डॉ. लिमय: दुर्लभ परिस्थितियों में मिलन की विशेषज्ञता के कारण ही मैंने इन्हें बताना और बुलाना उपयुक्त समझा। देखो कैसा अलग दृष्टिकोण दिया है इन्होने।

डॉ. मिलन (अनुपमा से): आमतौर से जो पैटर्न देखने को मिलते हैं, तुम्हारे केस में एकदम उनसे मिलतेजुलते तो नहीं हैं। तुम्हारी किडनियां विशिष्ट प्रकार से व्यवहार कर रही हैं।

अनुपमा (थोड़ा घबराकर): इसका परिणाम क्या हो सकता है?

डॉ. लिमय (बीच में ही बोलते हुए): इसका मतलब है कि हमें कुछ और विशिष्ट परीक्षण करने पड़ेंगे। तब जाकर इसकी बराबर तस्वीर उभरेगी।

मोहन: लेकिन टेस्ट तो हम करवा चुके हैं। इससे ज्यादा हम और क्या कर सकते हैं?

डॉ. मिलन: जो टेस्ट हमने किए, वे सब किडनी के स्टैण्डर्ड टेस्ट थे। उनसे उन बारीकियों को नहीं पकड़ सगेंगे जिनकी हमें तलाश है।

मोहन: फिर?

डॉ. मिलन (अनुपमा से): तुम्हारे जींस की बनावट कैसी है, यह जानने के लिए कुछ टेस्ट करने पड़ेंगे।

अनुपमा (चिंतित होकर): बहुत सीरियस है?

डॉ. लिमय: एहतियात के तौर पर यह करना पडेगा। अगर हम लक्षणों के सही कारक समझ जाते हैं, तो अधिक सटीक रूप से उपचार करने की योजना बना सकते हैं।

मोहन (स्वीकृति से, अनुपमा की ओर देखकर): जो कुछ भी करना है, हमारी सहमती है।

डॉ. मिलन: यह हुई न बात! हम सिर्फ लक्षणों का इलाज नहीं कर रहे हैं। हमें वह कहानी पूरी तरह से पढ़नी है जो शरीर हमको बताने की कोशिश कर रहा है।

अनुपमा: इस आनुवांशिकी के प्रभाव के क्या मायने हो सकते हैं?

डॉ. मिलन: किसी व्यक्ति की किडनी अपशिष्ट को कैसे फिल्टर करती है, यह भी उसकी आनुवांशिकी पर निर्भर हो सकता है। तनाव के जवाब में इंसान की किडनी किस प्रकार की प्रतिक्रया करती है, यह भी उसकी आनुवांशिकी पर निर्भर है।

मोहन: मतलब हर पहलू को देखना आवश्यक है।

डॉ. मिलन: अनुपमा के केस से जाहिर है कि किडनी जैसी शरीर की महत्वपूर्ण वस्तु के लिए ऐसी बारीकियों को समझना परम आवश्यक है। ऐसे पेशंट की देखभाल के लिए यह जरूरी है की वैयक्तिक दृष्टिकोण तैयार किया जाए जो हर पेशंट के लिए उसका खुद का होता है। ऐसा करने से ही उस पेशंट की अच्छी देखभाल हो सकती है।

डॉ. लिमय: ऐसी रणनीति का उद्देश्य होता है कि पेशंट को मानसिक रूप से सशक्त बनाया जाए। किडनी के बारे में इस प्रकार की सटीक जानकारी के साथ, हम पेशंट की देखभाल अधिक प्रभावी ढंग से कर सकते हैं।

अनुपमा (दृढ़ता से): मुझे भी यही रास्ता अपनाना है।

मोहन (सहायक रूप से): मैं हर कदम तुम्हारे साथ हूँ।

डॉ. लिमय: तो यह तय हो गया। हम यही मार्ग अपनाएंगे। अतिरिक्त टेस्ट के लिए मैं मिलन से कंसल्ट करके चिट्ठी बनाकर देता हूँ।

(स्टेज के एक कोने में डॉ. लिमय और डॉ. मिलन आपस में कंसल्ट करते हैं। स्टेज पर बत्तियां धीरे-धीरे बंद हो जाती हैं। जब बत्तियां वापिस आती हैं तो स्टेज पर सिर्फ अनुपमा और मोहन आपस में बात करते हैं। स्पेशल टेस्टिंग के नाम से उन्हें डर लग रहा है।)

अनुपमा (सांस भरते हुए): कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि बात यहाँ तक पहुँच जाएगी। मेरी किडनी सबसे अलग है! ऐसा लग रहा है जैसे कोई गुत्थी मेरे शरीर के अन्दर है जिसे मुझे सुलझाना है।

मोहन (धीरे से): ये लोग इसका पता लगा लेंगे। इन लोगों के पास अच्छी टीम है।

अनुपमा (सोचते हुए): हाँ, लेकिन बात सिर्फ टेस्टिंग की नहीं है। डॉ. मिलन ने मेरे अकेले के लिए अलग से उपचार योजना बनाने की बात की। इसका मतलब है कि साधारण मेडिकेशन से ज्यादा, है ना?

मोहन (हामी भरते हुए): वो सिर्फ ऊपर से दिखने वाले लक्षणों का इलाज नहीं करना चाहते हैं। उनकी नज़र में तुम्हारी किडनियों का समग्र स्वास्थ्य है।

अनुपमा (कुछ रूककर): क्या ऐसा हो सकता है की मेरी जीवनशैली की वजह से ऐसा हो रहा है? मैं क्या खा रही हूँ, कैसे जी रही हूँ ...

मोहन (विचार कर): बिलकुल संभव है। हो सकता है कि अब समय आ गया है कि हम ऐसे किसी व्यक्ति का सहारा लें जो पोषण संबंधी सलाह दे।

अनुपमा: न्यूट्रिशनिस्ट़?

मोहन: बिलकुल। हमें किसी ऐसे व्यक्ति की जरूरत है जो यह सुनिश्चित करने में हमारी मदद करे कि शरीर को, जो कुछ भी हो रहा है, उससे लड़ने के लिए जो चाहिए, वह मिल रहा है।

अनुपमा (सर हिलाते हुए): तुम्हारी नज़र में कोई है?

मोहन (विश्वास से): लीला। याद है? वही न्यूट्रिशनिस्ट़ है जो पिछले साल हमें वैलनेस सेमीनार में मिली थी।

अनुपमा (याद करते हुए): वही जिसने मन और शरीर के संबंधों पर ज्ञानवर्धक सेमीनार दिया था?

मोहन (उत्साह से): बिलकुल वही। मेरे पास उसका नंबर है। मुझे लगता है कि हमें उसे कॉल करना चाहिए।

अनुपमा (सहमत होकर): कोई हानि नहीं होगी। हमें हर पहलू से इसे देखना है।

(मोहन अपना मोबाइल निकालता है और लीला को कॉल करता है।)

मोहन (मोबाइल पर): लीला? मैं मोहन बोल रहा हूँ। हमारी मुलाक़ात पिछले साल वैलनेस सेमीनार में हुई थी। आप कैसे हो?

लीला (फ़ोन पर): मोहन! अच्छा लगा तुम्हारी आवाज सुनकर। मैं बिलकुल ठीक हूँ। धन्यवाद। बताइये मैं आपकी कैसे मदद कर सकती हूँ?

मोहन (गंभीर होकर): यह मेरी पत्नी अनुपमा को लेकर है। उसको कुछ स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ हैं, और हमें लगा कि आप पोषण संबंधित विशेषग्य हैं, तो आपकी सलाह हमारे लिए अमूल्य रहेगी।

लीला (फोन पर, चिंता से): मुझे दुःख हुआ यह सुनकर। लेकिन, हाँ, मैं जरूर आपकी मदद कर सकती हूँ। मिलकर बात करते हैं। मैं आपको मिलने का समय व्हाट्सएप्प कर देती हूँ।

मोहन: बहुत बहुत धन्यवाद लीला।

(स्टेज पर बत्तियां बंद होती हैं। जब बत्तियां वापिस शुरू होती हैं, तो न्यूट्रिशनिस्ट का ऑफिस है। अनुपमा और मोहन बैठे हैं। सामने लीला है। लीला उनका गर्मजोशी से स्वागत करती है।)

लीला: अनुपमा, मोहन! आप लोगों को देखकर अच्छा लगा। वैलनेस सेमीनार के बाद हमारी फिर मुलाक़ात नहीं हुई। क्या किया आप लोगों ने सालभर?

अनुपमा: बस वही। काम चलता रहा। ऑफिस का काम।

मोहन: भागदौड़ वाली ज़िंदगी रह गई है अब।

अनुपमा (हिचककर): मुझे कुछ स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ हो गई हैं। हम लोग चाहते थे कि किसी न्यूट्रिशनिस्ट से मिल लिया जाए और राय ले ली जाए। यह सुनिश्चित करने के लिए कि मेरा आहार और शरीर में जो कुछ भी चल रहा है, दोनों का आपसी तालमेल है या नहीं।

लीला (करुणा से): मैं हूँ ना इस मामले में आपकी मदद के लिए। मुझे बताओ कि आपका वर्तमान आहार कैसा है? प्रतिदिन किस प्रकार की भोजनशैली है आपकी?

अनुपमा: जो कुछ भी सुविधाजनक होता है, वही खा लेती हूँ। कभी-कभी फास्ट फूड या ऑफिस कैफेटेरिया में बनने वाली कोई चीज।

लीला: आपके व्यस्त कार्यक्रम को देखते हुए, समझ में आता है। अब देखिये, हमारे गुर्दे हमारे शरीर का उल्लेखनीय अंग होते हैं।वे इस बात से प्रभावित होते हैं कि हम अपने शरीर में क्या डालते हैं। खराब आहार उन पर तनाव डाल सकता है।

मोहन (चिंता से): किडनियों पर तनाव? वह कैसे पड़ता है?

लीला (समझाते हुए): हमारे गुर्दे, रक्त से अपशिष्ट और अतिरिक्त तरल पदार्थ को फ़िल्टर करते हैं।लेकिन कुछ खाद्य पदार्थ इस काम का बोझ बढ़ा देते हैं। उदाहरण के लिए, ज्यादा नमक, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ और अत्यधिक प्रोटीन, ये सभी चीज़ें हमारे गुर्दों पर दबाव डालती हैं।

अनुपमा (महसूस करते हुए): जब भी मैं अपने काम के प्रति तनाव महसूस करती हूँ, मैं बाहर से नमकीन स्नैक्स आर्डर कर लेती हूँ।

लीला (हल्के से): तनाव एक और कारक है। इससे हमारे शरीर में ऐसे हार्मोन बहते हैं जो समय के साथ गुर्दों के कार्य को दुष्प्रभावित करते हैं। हमको तनाव को काबू में रखने के उपाय भी करने चाहिए।

मोहन: हाल ही में हमने बहुत कुछ झेला है। तनाव तो निश्चित रूप से एक कारण है ही।

लीला: लेकिन हम लोग सुधार ला सकते हैं। अपने आहार में अधिक संपूर्ण खाद्य पदार्थों को शामिल करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। ताजे फल, सब्जियां, साबुत अनाज - ये पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं और किडनी पर बोझ नहीं बनते हैं।

अनुपमा (दृढ़ निश्चय से): मैं बिलकुल तैयार हूँ। तरल पदार्थों में?

लीला: जलयोजन महत्वपूर्ण है। पानी, किडनी से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है। प्रतिदिन कम से कम आठ गिलास पीने का लक्ष्य रखें, यदि आप सक्रिय हैं तो इससे भी अधिक।

अनुपमा: यह तो आराम से हो सकता है।

लीला: इसी प्रकार के छोटे, स्थायी परिवर्तन बड़ा बदलाव ला सकते हैं। और रक्त शर्करा के स्तर को स्थिर बनाए रखने के लिए नियमित भोजन बनाए रखना। सिर्फ प्लेट पर रखे भोजन से ही नहीं, सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए अच्छी तरह जीवन जीना भी जरूरी है।

मोहन (जिज्ञासा से): आजकल 'समग्र स्वास्थ्य' की बहुत चर्चा चल रही है। इसमें क्या-क्या शामिल होता है?

लीला: (समझाते हुए) समग्र स्वास्थ्य का अर्थ है संपूर्ण व्यक्ति तत्व, यानी - शरीर, मन और आत्मा -सब पर विचार करना। यह सिर्फ इस बारे में नहीं है कि आप क्या खाते हैं बल्कि यह इस बारे में भी है कि आप कैसे रहते हैं, तनाव को कैसे प्रबंधित करते हैं और अपने दिमाग को कैसे पोषण देते हैं।

अनुपमा ((चिंतन करते हुए): तनाव हाल ही में हमारे जीवन का एक बड़ा हिस्सा बन गया है।

लीला: व्यायाम समग्र स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण घटक है। यह ब्लड सर्कुलेशन में सुधार करता है, किडनी के कार्य में सहायता करता है, और, सबसे महत्वपूर्ण बात, तनाव को कम करता है। पूरे दिनभर की आम गतिविधियों से भी व्यायाम होते रहते है। ऐसी गतिविधियाँ खोजते रहनी चाहिए जिनमें आपको आनंद आता हो, चाहे वह चलना हो, नृत्य करना हो या योग करना हो।

मोहन: पहले हम लोग बहुत एक्टिव रहते थे ये सब करने में। अब फिर से वह समय आ गया है जब हें पहले की तरह यही सब कुछ वापिस शुरू कर देना चाहिए।

लीला (दोनों का उत्साह बढाते हुए): छोटे-छोटे कदम ही बड़े बदलाव लाते हैं। और नियमित भोजन के महत्व को मत भूलना। खाने में निरंतरता से किडनी और समग्र ऊर्जा दोनों को लाभ होता है।

मोहन (आभारी होकर): धन्यवाद, लीला जी।आपने स्वास्थ्य के प्रति एक व्यापक दृष्टिकोण से अवगत कराया है।

लीला: (आश्वासन देते हुए) समग्र स्वास्थ्य, सभी पहलुओं को संतुलित करने और पोषण करने के बारे में है।

अनुपमा: धन्यवाद लीला जी। आपने जितना भी बताया, मैं वह पूरा पूरा पालन करने का भरपूर प्रयत्न करूंगी।

लीला: इसको एक यात्रा की तरह समझो। मैं हूँ हर कदम पर आपकी सहायता के लिए और मार्गदर्शन करने के लिए।

(लीला को धन्यवाद देते हुए दोनों मोहन और अनुपमा उसके ऑफिस से निकल जाते हैं। स्टेज पर बत्तियां बंद हो जाती हैं। जब बत्तियां दोबारा शुरू होती हैं तो एक फिटनेस स्टूडियो का सीन है।)

(एक व्यक्ति अपने फिटनेस स्टूडियो में अपने उपकरण जांच रहा है। मोहन और अनुपमा प्रवेश करते हैं।)

मोहन (गर्मजोशी से): जय, मेरे दोस्त! कैसे हो यार?

जय (खुशी से): मोहन, मेरे भाई!

(दोनों गले लगते हैं)।

मोहन (आसपास देखते हुए): मुझे तो पहले से ही पता था कि ज़िन्दगी में कभी न कभी तो तू अपना खुद का फिटनेस स्टूडियो खोल ही लेगा। पहले से ही तू बड़ा फिटनेस एन्थुसिआस्ट था!

जय (अपने स्टूडियो की सराहना करते हुए): देख, कितना रोशनीदार है स्टूडियो। चमक रहा है, है ना?

मोहन: बिलकुल। मेरे और अनुपमा के लिए यह खुशी की बात है कि जब हमको फिटनेस की जरूरत पडी, तो ज्यादा ढूँढना नहीं पडा।

जय: इस फिटनेस स्टूडियो में हम लोग न केवल स्वास्थ्य वर्धन पर ध्यान देते हैं, परंतु साथ में मौज-मस्ती भी करते हैं।

अनुपमा: मुझे मालूम तो है कि व्यायाम जरूरी है, लेकिन इसका किडनी के स्वास्थ्य से क्या संबंध है?

जय (जुनून से): व्यायाम को स्वास्थ्य की धड़कन समझिये। यह आपके रक्त को पंप करता है, उसको अच्छे से दौड़ाता है, और आपके गुर्दे को अपना काम अधिक कुशलता से करने में मदद करता है।

मोहन (सम्मति से): यही बात तो हमको न्यूट्रीशनिस्ट लीला ने भी कही!

अनुपमा: हम लोग कसरत, व्यायाम वगैरह करने के माले में एक्टिव थे। फिर कैरियर और लाइफस्टाइल का बोझ आ गया।

जय (समझते हुए): हममें से अच्छे अच्छों के साथ ऐसा ही होता है।जीवन में क्या जरूरी है, यह जानना भी जरूरी है।

अनुपमा(चिंतन करते हुए): मैं व्यायाम के बारे में झिझकती रही हूँ।जॉब में जिस प्रकार सब कुछ चल रहा था, उस हिसाब से व्यायाम करना मुझे एक अतिरिक्त चुनौती की तरह लग रहा था।

जय: व्यायाम का संबंध सिर्फ शारीरिक प्रक्रियाओं से ही नहीं, मानसिक स्तर तक है।

मोहन: तुम सही कह रहे हो। हमें इसे प्राथमिकता बनाने की जरूरत है।

जय (उत्साही होकर): बहुत बढ़िया! कुछ ऐसे व्यायाम के साथ शुरुआत कर सकते हैं जो आसानी से हो सकें। प्रतिदिन की सैर या जल्दी-जल्दी चलने की प्रक्रिया से भी फायदा होता है। पहले वहीँ से शुरुआत करते हैं।

अनुपमा: समय आ गया है अपने स्वास्थ्य की लगाम अपने हाथ में लेने का।

जय (प्रोत्साहन देते हुए): व्यायाम करना कोई घरेलू जबरदस्ती का काम करना नहीं है। व्यायाम करने से हमें यह पता चलता है कि हमारा शरीर क्या-क्या और चीज़ें कर सकने के काबिल है।

मोहन (ऊर्जावान होकर): बिल्कुल! हम सिर्फ अनुपमा की किडनी के स्वास्थ्य पर काम नहीं कर रहे हैं; हम समग्र कल्याण के लिए एक नींव का निर्माण कर रहे हैं।

अनुपमा (भावविभोर होकर): धन्यवाद जय भैया। व्यायाम के जरिये आप हमें मार्ग दिखाएंगे ताकि हमारी फिटनेस यात्रा सही ढंग से हो - इससे अच्छी और क्या बात होगी!

जय (प्रेरणा देते हुए): ऐसी क्या बात है! यहाँ हमारे फिटनेस स्टूडियो में जितने भी लोग आते हैं,उनका भी एक अपना ही समुदाय बन गया है। आप भी उस समुदाय का हिस्सा बन जाइए। सभी लोग एक-दूसरे की हौसलाअफजाही करते हैं यहाँ पर।

(एक औरत का प्रवेश।)

अनुपमा (आश्चर्य से): अरे सरला, तू यहाँ?

सरला (आश्चर्य से): अरे अनुपमा, तू यहाँ कैसे??!

अनुपमा: इस फिटनेस स्टूडियो के मालिक जय, मेरे पति मोहन के घनिष्ठ मित्र हैं। उन्हीं से फिटनेस के बारे में सलाह लेने और व्यायाम की सारणी बनाने के लिए मैं यहाँ आई हूँ।

(अनुपमा, सरला का परिचय, मोहन और जय से कराती है।)

अनुपमा (सरला का परिचय कराते हुए): यह सरला है। हम दोनों एक साथ काम करते हैं, एक ही कंपनी में, एक ही जगह पर! मुझे नहीं मालूम था कि सरला भी यहाँ व्यायाम के लिए आती है!

जय (हंसकर): सरला ने बस अभी-अभी शुरू किया है।

मोहन: सरला जी, घर आइये कभी खाने पर। अनुपमा आपकी भी बात करती है घर में।

सरला: बिलकुल आऊंगी।

अनुपमा(आहें भरते हुए):सरला, ऐसा लगता है जैसे जीवन हाल ही में तेजी से आगे बढ़ रहा है। काम, परिवार और अब स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के बीच ...

सरला (सहमत होते हुए): मैं तुम्हारी बात समझ सकती हूं, अनुपमा। ऐसा लगता है जैसे हम बहुत सारी चीजें एक साथ करने की कोशश कर रहे हैं, और इस चक्कर में स्वास्थ्य पीछे छूट जाता है।

अनुपमा (चिंतन करते हुए):पहले मैं इस बात का अधिक ध्यान रखती थी कि मैंने क्या खाया और यहां तक कि कुछ वर्कआउट भी करती थी, लेकिन हाल ही में, यह सब संघर्ष बन गया है।

सरला (सहानुभूतिपूर्ण): मैं समझ गई। सामान्य तौर पर काम, परिवार और सिर्फ जीवन की सामान्य मांगें, हमारी भलाई को प्राथमिकता देना चुनौतीपूर्ण बना सकती हैं।

अनुपमा (निराशा से): और फिर यह दबाव बना हुआ है कि हम हमेशा सभी को बराबर परिणाम देते रहें, चाहे घर में हो या ऑफिस में। सांस लेने के लिए कोई जगह नहीं बची है।

सरला: मुझे भी ऐसा ही लगता है।सबकी यही अपेक्षा रहती है कि हम सब कुछ कर लें और वह भी सब कुछ सही ढंग से होना चाहिए।

अनुपमा (सिर हिलाते हुए): बिल्कुल। और जितनी अधिक हम कोशिश करते हैं, उतना ही अधिक हमारा स्वास्थ्य ख़राब होता जाता है।

सरला: यह एक दुष्चक्र है। और जब स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न होती हैं, तो यह एक चेतावनी की तरह है कि शायद हम बहुत लंबे समय से खुद की उपेक्षा कर रहे हैं।

अनुपमा: डॉ. मिलन और न्यूट्रिशनिस्ट लीला ने बताया कि तनाव मेरी किडनी को प्रभावित कर रहा है। मुझे अब तक कभी एहसास नहीं हुआ कि मैं कितने तनाव में हूँ।

सरला (विचारशीलता से): तनाव घातक है। हम इसे सम्मान के तमगे की तरह पहनते हैं, यह सोचकर कि यह सिर्फ खेल का हिस्सा है।पार्टियों में ताव के साथ कहते हैं कि ऑफिस में काम का कितना स्ट्रेस है। लेकिन इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है, है ना?

अनुपमा: और उचित भोजन के लिए समय निकाल पा रहे हैं क्या हम लोग? या तो फास्ट फूड है या पूरी तरह से उपवास! कितनी बार तो बेसमय खाया है मैंने, तुमको तो पता ही है।

सरला: (सिर हिलाते हुए) हमारे जीवन की उथल-पुथल में सुविधा अक्सर पोषण पर हावी हो जाती है।

अनुपमा: (आहें भरते हुए) मुझे वे दिन याद आते हैं जब मेरा अपने समय पर, अपने स्वास्थ्य पर थोड़ा अधिक नियंत्रण था।

सरला:मुझे भी। लेकिन हम अतीत को नहीं बदल सकते। यह कर सकते हैं कि वर्तमान में ऐसी गलतियां ना करें और एक स्वस्थ भविष्य को आकार देने के तरीके ढूंढना है।

अनुपमा: तुम कैसे सब कुछ मैनेज कर सक रही हो?तुम तो बहुत ठीक-ठाक लग रही हो।

सरला (मुस्कुराते हुए):अब मैं संभल गई हूँ। मैंने अब बार-बार ना कहना शुरू कर दिया है, काम पर सीमाएँ निर्धारित करना और आत्म-देखभाल को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया है। यह कठिन है, लेकिन यह आवश्यक है।

अनुपमा: तुम भोजन का प्रबंध कैसे कर पा रही हो? मेरे लिए बहुत चुनौतीपूर्ण हो गया है।

सरला: मैंने रविवार को सारे हफ्ते के भोजन की सूची बना लेती हूँ। सप्ताह के दौरान क्या खाना चाहिए, इसका अनुमान लगाने की जरूरत नहीं पड़ती है। और मैं छोटे-छोटे ब्रेक लेने पर ध्यान देती हूं, भले ही वह सिर्फ टहलने या कुछ शांति के पलों के लिए ही क्यों न हो।

अनुपमा: यह करना तो बिलकुल संभव लगता है। मैं भी वह कोशिश कर सकती हूं।

सरला: छोटे बदलाव, अनुपमा। हम अपने जीवन में रातोंरात बदलाव नहीं ला सकते, लेकिन हम एक स्वस्थ, अधिक संतुलित जीवनशैली की ओर क्रमिक बदलाव कर सकते हैं।

अनुपमा: धन्यवाद, सरला।कितना आश्वासन मिलता है यह जानकर कि इस संघर्ष में मैं अकेली नहीं हूं।

सरला: (मुस्कुराते हुए) हम कभी अकेले नहीं होते हैं।हमारे साथ क्या घटित हो रहा है,हम सभी इसका पता लगाने की कोशिश में जुटे रहते हैं। और किसके साथ वही सब कुछ घट रहा है, जो मेरे साथ हो रहा है ... यही जिज्ञासा हमें दूसरों से अपनी गुप्त बातें उनके साथ साझा करवाती है।

मोहन (अपना मोबाइल देखते हुए): डॉ. लिमय का व्हाट्सएप्प मेसेज है। स्पेशलाइज्ड टेस्टिंग में से कुछ खास निकलकर नहीं आया है।

जय (खुश होकर): गुड। तो अब हम लोग यह तय कर लेते हैं कि अनुपमा कल से ही व्यायाम करने के लिए यहाँ आया करेगी।

अनुपमा: बिलकुल। मुझे सरला का भी तो साथ मिल जाएगा।

सरला: और तुम्हारी न्यूट्रिशनिस्ट लीला के द्वारा बताया गया प्लान भी आज ही से शुरू कर देना।

अनुपमा: बिलकुल।

(पर्दा गिरता है।)


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हिंदी समय में डॉ. भारत खुशालानी की रचनाएँ