मगरमच्छ के आँसू
पात्र:
1. मनोज - एक मध्यम आयु वर्ग का चिड़ियाघर संचालक
2. लीना - मनोज की बेटी
3. डॉ। हरकिशन - एक प्राणी विज्ञानी
4. माया - एक रहस्यमय महिला जिसके पास कोई रहस्य है
5. जय - एक शरारती किशोर
6. पंकज - एक स्थानीय पुलिस कांस्टेबल
7. सुशील - हार से स्वागत करने वाला
(सेटिंग: स्थानीय चिड़ियाघर।मनोज, चिड़ियाघर संचालक के रूप में काम करता
है।उसकी बेटी, लीना, उसके साथ है। स्टेज पर मगरमच्छों के बारे में विभिन्न
जानकारी दर्शाते चित्र और पोस्टर लगे हैं।)
लीना: पापा, आप कितने साल से इस चिड़ियाघर की देखभाल कर रहे हो?
मनोज: लीना बेटी, मुझे इस चिड़ियाघर को संभालते हुए तकरीबन बीस साल हो गए हैं।
लीना: पापा, आपको इस काम में मज़ा आता है ना?
मनोज: बेटा जानवरों के साथ रहकर उनकी देखभाल करना अलग ही काम है। जानवर मुंह
से कुछ बोल नहीं सकते हैं, इसीलिए हमें ही समझना पड़ता है कि वे क्या कहना चाह
रहे हैं।
लीना: जानवरों के पास उनका दुःख-दर्द समझने वाला कोई नहीं होता है?
मनोज: उनके अपने साथीदार होते हैं, उनके अपने जानवर मित्र।
लीना: पापा, आज मैंने सुशील भैय्या को देखा - वे कहीं से हार और पूजा की थाली
ला रहे थे। आज क्या हो रहा है यहाँ?
मनोज: डॉ। हरकिशन, प्राणी विज्ञानी, दौरा कर रहे हैं।
लीना: पापा, प्राणी विज्ञानी कौन होते हैं?
मनोज: बेटा, प्राणी विज्ञानी वे होते हैं जिन्हें जानवरों के बारे में सबकुछ
पता होता है। वे जानवरों के विशेषग्य होते हैं।
लीना: डॉ। हरकिशन क्यों आ रहे हैं आज हमारे चिड़ियाघर में?
मनोज: डॉ। हरकिशन मगरमच्छ प्रदर्शनी पर चर्चा करना चाहते है।
लीना: (आसपास लगे मगरमच्छों के चित्र और पोस्टरों की तरफ इशारा करते हुए) इसी
प्रदर्शनी पर चर्चा करेंगे हमारे प्राणी विज्ञानी?
मनोज: हाँ। लेकिन उन्हें बुलाने के पीछे मेरा एक खास मकसद भी है।
लीना: मुझे मालूम है पापा।
मनोज: अच्छा, बताओ क्या?
लीना: (एक मगरमच्छ की ओर इशारा कर) यह उस मगरमच्छ के बारे में है।
मनोज: (मगरमच्छ की ओर उदासी से देखते हुए) बिलकुल सही पहचाना बेटा। उसी
मगरमच्छ के बारे में। कुछ ठीक नहीं है उसके साथ। शायद डॉ। साहब ही कुछ बता
सकें।
(डॉ। हरकिशन का प्रवेश।)
मनोज: आइये, आइये, डॉ। हरकिशन। आप का ही इन्तजार था।
डॉ। हरकिशन: नमस्कार, मनोज भाई। एक बेहतरीन कार्य कर रहे हो आप, इन सब जानवरों
की देखभाल करके।
(सुशील मंच पर आता है और डॉ। हरकिशन को हार पहनाकर उनका स्वागत करता है।)
डॉ। हरकिशन: धन्यवाद। (मगरमच्छ प्रदर्शनी को देखते हुए) बहुत अच्छी प्रदर्शनी
है। अलग अलग प्रकार की नायाब जानकारी रखी है मगरमच्छों के बारे में। चित्रों
समेत।
मनोज: डॉ। साहब, इस मगरमच्छ को देखिये। इसके चेहरे पर उदासी नहीं नज़र आ रही है
आपको?
(डॉ। हरकिशन, मनोज द्वारा दिखाए गए मगरमच्छ को देखते हैं।)
डॉ।हरकिशन: मनोज, इस मगरमच्छ के बारे में कुछ अजीब जरूर है।
मनोज: हाल ही में, यह बेहद शांत हो गया है। इसकी क्या वजह हो सकती है?
लीना: चिड़ियाघर देखने आनेवाले लोगों में से कुछ को मैंने यह कहते हुए सुना है
कि यह मगरमच्छ आँसू बहाता है। हमें इस बात की जांच करनी चाहिए ना?
डॉ। हरकिशन: बिलकुल करनी चाहिए बेटी।
(डॉ। हरकिशन मगरमच्छ के करीब जाकर उसे गौर से देखते हैं।)
(माया, एक रहस्यमय महिला, मगरमच्छ प्रदर्शनी देखने पहुंचती है।)
लीना: माया आंटी, आप आज फिर आई हैं?
माया: क्या करूं बेटा, मेरी मगरमच्छों के प्रति रुचि ही मुझे यहाँ खींच लाई
है।
(माया थोड़ी देर प्रदर्शनी देखती है, फिर उदास मगरमच्छ के समीप पहुंचती है।)
माया: (फुसफुसाते हुए) मैं तुम्हारा रहस्य जानती हूँ, मेरे दोस्त।तुम सिर्फ एक
सरीसृप नहीं हो; तुम एक रक्षक हो।
(मगरमच्छ थोड़ी प्रतिक्रिया करता है, जैसे माया की बात समझ रहा हो और उससे सहमत
हो।)
लीना: (उसकी बात सुनते हुए) माया आंटी, सरीसृप क्या होते हैं?
माया: बेटा, सांप और मगरमच्छ जैसे पेट के बल रेंगकर चलनेवाले प्राणी सरीसृप
कहलाते हैं। इनके छोटे-छोटे पैर होते हैं।
डॉ। हरकिशन: उनकी सूखी त्वचा, पपड़ी या हड्डी की प्लेटों से ढकी होती है और वे
आमतौर पर नरम छिलके वाले अंडे देते हैं।
मनोज: हाँ, और इनकी रीढ़ की हड्डी भी होती है। सभी मगरमच्छों में रीढ़ की
हड्डी होती है।
लीना: माया आंटी, क्या आपको यह पता है कि यह उदास मगरमच्छ आँसू क्यों बहाता
है?
माया: (रहस्मयी तरीके से) हाँ बेटे, मैं इस मगरमच्छ का राज़ जानती हूँ।
डॉ। हरकिशन: इसके आसुओं का राज़ तनाव से संबंधित हो सकता है।
मनोज: जैसे मनुष्यों को तनाव महसूस होता है, वैसे ही?
डॉ। हरकिशन: वैसे तो वैज्ञानिक तौर पर खाना खाते समय मगरमच्छों को आसूं बहाते
देखा गया है। शोधकर्ताओं का सुझाव है कि मगरमच्छ को आंसू इसलिए आते हैं क्योंकि
मगरमच्छ खाना खाते समय फुफकारता है, और यह फुसफुसाहट साइनस के माध्यम से आंख
से हवा को बाहर निकालती है।
लीना: मतलब कि इसका वैज्ञानिक कारण है।
डॉ। हरकिशन: मगरमच्छ अपने शिकार को खाने के बाद अपने साइनस में फंसी हवा के
कारण आंसू बहाते हैं। इसका इनके दर्द से कोई लेना देना नहीं है।
मनोज: डॉ। हरकिशन, मैं इतना निश्चित नहीं हूँ कि इस उदास मगरमच्छ के साथ भी
यही हो रहा है। मैं बीस सालों से चिड़ियाघर का संरक्षक रहा हूँ। इस मगरमच्छ की
उदासी अलग है।
माया: बिलकुल सही फरमाया, मनोज भैय्या।
मनोज: उदासी से आंसूं नहीं हैं इसके।
माया: मनोज भैय्या, हमें आपस में बात करने की ज़रूरत है।यह मगरमच्छ खतरे में
है।
मनोज: ख़तरा? आपका क्या मतलब है?
माया: यह कोई साधारण मगरमच्छ नहीं है। यह एक रक्षक है, जो किसी महत्वपूर्ण चीज़
की रक्षा करता है। लेकिन कोई इसका फायदा उठाना चाहता है।
(मनोज, डॉ। हरकिशन और लीना, इस बात को सुनकर सकते में आ जाते हैं।)
मनोज: माया जी, यह क्या कह रही हैं आप?
माया: बिलकुल ठीक कह रही हूँ।
डॉ। हरकिशन: आप ऐसा कैसे कह सकती हैं? यह तो कोई वैज्ञानिक तथ्य नहीं हुआ।
माया: कोई इस मगरमच्छ का शोषण कर रहा है।
मनोज: (हैरानी से) इसका शोषण कर रहा है? कौन?
(लीना भी हैरान होकर माया की तरफ देखती है।)
माया: मैं अभी सब कुछ कह नहीं सकती, लेकिन इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, हमें
कार्रवाई करनी होगी।
(जय का प्रवेश। जय, एक शरारती किशोर है। जय आकर प्रदर्शनी देखने के बहाने
सेमनोज और माया की उदास मगरमच्छ के बारे में बातचीत सुनता है।)
जय: (उनकी बातचीत सुनते हुए, अपने आप से,फुसफुसाते हुए) यह तो कोई दिलचस्प घटना
लगती है।
जय: (प्रदर्शनी देखने के बहाने से यहाँ-वहाँ देखते हुए, अपने आप से)मनोज
भैय्या, लीना, डॉ। हरकिशन और माया आंटी, सभी मगरमच्छ के पास इकट्ठा हुए हैं।
कुछ बात है।
माया: हमें मगरमच्छ की सुरक्षा का कोई रास्ता खोजना होगा। यह किसी अनमोल चीज़
की कुंजी है।
डॉ।हरकिशन: यह बेतुकी बात है! रक्षक, रहस्य-यह सब बकवास है।
माया: तुम्हें तब तक समझ नहीं आएगा जब तक राज़ नहीं खुल जाता।
(जय उनकी बातचीत सुनता रहता है।)
जय:(अपने आप से) यह कौन-सा रहस्य है? रक्षक कौन है? मगरमच्छ की सुरक्षा? जरूर
कोई राज़ की बात है। (राज़ उजागर करने के इरादे से जय, चिड़ियाघर में मगरमच्छ
के कटघरे में घुस जाता है।)
जय: (फुसफुसाते हुए) मैं इस राज़ की तह तक जाऊंगा।
(मनोजजबजय को मगरमच्छ के कटघरे में घुसते देखता है तो परेशान हो जाता है।)
मनोज: जय बेटा, तुम यह क्या कर रहे हो?
जय: मैंने सब कुछ सुन लिया है। मैं आप लोगों की मदद करना चाहता हूँ।
मनोज: यह बहुत खतरनाक बात है, जय।
लीना: जय भैय्या, मगरमच्छ आदमियों को भी खा जाते हैं।
डॉ। हरकिशन: बेटा, मैं तो तुम्हें नहीं जानता, लेकिन तुम जो भी हो, फ़ौरन
मगरमच्छ के कटघरे से बाहर आ जाओ।
जय: डॉ। हरकिशन, मैं आपको जानता हूँ। आप जानवरों के बारे में सबको शिक्षा देते
हैं। मैं इस मगरमच्छ का राज़ जानकार ही आऊँगा।
डॉ। हरकिशन: बेटा, तुम अभी इसी वक़्त कटघरे से बाहर आ जाओ, वरना मैं पुलीस को
बुला लूँगा।
जय: आप चाहे जिसे भी बुलाइए, मुझे तो यह राज़ जानना ही है।
माया: (जय को उकसाते हुए) बेटा, तुमको राज़ जानना है तो बिलकुल अच्छी बात है।
लेकिन बेहद सावधान रहने की जरूरत है।
लीना: हाँ भैय्या, मगरमच्छों का कोई भरोसा नहीं होता है।
(जय को अचानक मगरमच्छ के कटघरे में मगरमच्छ के पास ही एक दरवाजा दिख जाता है।)
जय: अरे! यहाँ तो दरवाजा है!चिड़ियाघर के पीछे एक छिपा हुआ कक्ष नज़र आ रहा है!
(मनोज, लीना, और माया, जयके द्वारा खोजे गए मगरमच्छ के छिपे हुए कक्ष की ओर
आतुरता से देखते हैं।)
डॉ। हरकिशन: (फ़ोन पर, पुलीस से बात करते हुए) हेल्लो, पुलीस? देखिये मैं शहर के
चिड़ियाघर से बोल रहा हूँ। यहाँ, एक युवक जबरदस्ती मगरमच्छ के कटघरे में घुस
गया है और निकल नहीं रहा है। प्लीज जल्दी से किसी को भेजिए वरना यहाँ कुछ गड़बड़
हो जाएगी।
(यह कहकर डॉ। हरकिशन फ़ोन रख देते हैं और कटघरे की तरफ देखते हैं।)
(इस बीच, जय दरवाजे के अन्दर हाथ डालता है और प्राचीन कलाकृतियाँ वहाँ से
निकालता है।)
मनोज: (प्राचीन कलाकृतियों की तरफ आश्चर्य से देखते हुए) यह सब क्या है? मेरी
बीस साल की नौकरी में आज तक मैंने यह सब नहीं देखा है।
लीना: पापा, मुझे भी नहीं पता था कि ये सब मूर्तियाँ यहाँ पडी हुई हैं।
माया: यह एक प्राचीन सभ्यता का मार्ग है। मगरमच्छ संरक्षक है, प्रवेश द्वार की
रक्षा करता है।
लीना: ओह! अब समझी! इसी सब की रक्षा की बात आप कर रहे थे और हमें बता रहे थे
कि मगरमच्छ एक रक्षक है! कितनी सही बात थी!
(माया यह सुनकर प्रसन्न हो जाती है।)
जय: यहाँ कोई चमकदार स्लेट भी है। एक कलाकृति के पीछे छिपी है।
माया: निकालकर देखो उसे!
(जय चमकदार स्लेट को निकालता है। चमकदार स्लेट पर प्राचीन सभ्यता और कलाकृतियों
के इतिहास के बारे में लिखा है। वह इस स्लेट को सबको दिखाता है।)
माया: इस प्राचीन सभ्यता ने पनपने के लिए मगरमच्छ की ऊर्जा का उपयोग किया है।
उन्होंने प्रवेश द्वार को गलत हाथों में जाने से बचने के लिए मगरमच्छ को अपना
संरक्षक बनाया है।
डॉ।हरकिशन: (आश्चर्यचकित होकर) यह तो मेरी कल्पना से परे है। मैं तो ऐसा सोच
भी नहीं सकता था!
लीना: वह तो ठीक है, लेकिन मगरमच्छ उदास क्यों है? वह रोता क्यों है? उसे तो
मुस्तैद होकर इस प्राचीन सभ्यता की मूर्तियों की रक्षा करनी चाहिए।
माया: (लीना के प्रश्न का उत्तर देते हुए) कोई तो है जो व्यक्तिगत लाभ के लिए
प्राचीन सभ्यता की इस जबरदस्त शक्ति का शोषण करना चाहता है।
लीना: मतलब कि कोई इन मूर्तियों पर कब्जा करना चाहता है?
माया: हाँ, तभी तो मगरमच्छ उदास है। हमें उन्हें रोकना होगा। जो भी मूर्तियाँ
हड़प कर उनकी शक्तियों का प्रयोग अपने लिए करना चाहते हैं,उनके नापाक इरादों को
विफल बनाना होगा।
(पुलीस अधिकारी पंकज का मंच पर आगमन।)
पंकज: (मनोज से) मैं पुलीस कांस्टेबल पंकज। किसी ने शिकायत की कि कोई युवक
मगरमच्छ के कटघरे में घुस गया है।
डॉ। हरकिशन: (पंकज से) मैंने ही आपको बुलाया था।
पंकज: (जय को मगरमच्छ के कटघरे में घुसे देखते हुए) यहाँ क्या हो रहा है?
माया: (पंकज से) पंकज जी, चिंता की बात नहीं है। सब ठीक है। लेकिन अब आप आ ही
गए हो तो ध्यान से सुनो - मगरमच्छ और इस प्राचीन प्रवेश द्वार की सुरक्षा के
लिए हमें आपकी मदद की ज़रूरत है।
पंकज: (निर्धारित रूप से) मैं तैयार हूँ।वैसे भी मुझे इसी काम के लिए चिड़ियाघर
में भेजा गया है।
माया: (मनोज से) मनोज भैय्या, इस दरवाजे की रक्षा हम कैसे कर सकते हैं? और इन
प्राचीन कलाकृतियों की रक्षा के लिए हमें क्या करना चाहिए?
(अचानक मंच पर एक धनी आदमी, और उसके दो गुंडे, प्राचीन शक्ति पर कब्जा करने के
लिए पहुंचते हैं।)
मनोज: (कड़क आवाज में) कौन हो तुम लोग? क्या चाहते हो?
धनी: (हँसते हुए) मूर्ख! मुझे नहीं जानता?! ये सब मूर्तियाँ मेरी ही हैं।
इन्हें मैं वापिस ले जाने आया हूँ।
माया: ये मूर्तियाँ इसकी नहीं हैं।
लीना: इसीलिए तो मगरमच्छ रो रहा था। उसे पता था कि मूर्तियाँ चुराने के लिए
जंग छिड़ने वाली है।
(मनोज अपनी बेटी को धनी आदमी और गुंडों से बचाने के लिए अपने पीछे ले लेता
है।)
धनी: (अपने गुंडों को आदेश देते हुए) घुस जाओ कटघरे में और ले लो सारी
मूर्तियाँ।
(गुंडे कटघरे में प्रवेश करने की कोशिश करते हैं।)
(जय, मूर्तियाँ और चमकदार स्लेट छोड़कर बाहर आ जाता है, और गुंडों को कटघरे में
प्रवेश करने से रोकता है। उसकी हिम्मत देखकर,मनोज, लीना, माया, और डॉ। हरकिशन
भी उसका साथ देते हैं। पुलीस कांस्टेबल पंकज भी साथ में है। लड़ाई शुरू हो
जाती है।कुछ ही देर में सभी लोग मिलकर गुंडों को काबू में कर लेते हैं। पंकज
गुंडों के हाथ बाँध देता है और धनी को हथकड़ी लगा देता है।)
माया: अब सब ठीक है। मेरे जाने का वक़्त हो चुका है।
(माया जाने की तैयारी करती है।)
मनोज: धन्यवाद, माया जी। आपके बिना, हम सच्चाई नहीं जान पाते।
माया: (मुस्कुराते हुए) रक्षक हमेशा ही प्रवेश द्वार की रक्षा करते रहेंगे। आज
यह मगरमच्छ है, कल कोई और होगा। इस मगरमच्छ के आंसुओं से हमें पता चल गया कि
प्राचीन मूर्तियों को चुराने की कोई साजिश कर रहा था। आपको हमेशा सतर्क रहना
पडेगा। हमेशा ऐसे लोग होते हैं जो सत्ता की तलाश में रहते हैं, जिन्हें
शक्तियां चाहिए होती हैं।
(माया चली जाती है।)
(पर्दा गिरता है।)