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1
मौन आहों में बुझी तलवार
तैरती है बादलों के पार।
चूम कर ऊषाभ आशा अधर
गले लगते हैं किसी के प्राण।
- गह न पाएगा तुम्हें मध्याह्न;
छोड़ दो ना ज्योति का परिधान।
2
यह कसकता, यह उभरता द्वन्द्व
तुम्हें पाने मधुरतम उर में,
तोड़ देने धैर्य-वलयित हृदय
उठा।
परम अंतर्मिलन के उपरान्त
प्राप्त कर आनंद मन एकान्त
खिला मृदु मधु शान्त।
[1945]
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