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कविता

सुबह

शमशेर बहादुर सिंह


 

 

 

 

 

 

 

जो कि सिकुड़ा हुआ बैठा था, वो  पत्‍थर
सजग-सा होकर पसरने लगा
आप से आप।



 

Harish0001

 


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हिंदी समय में शमशेर बहादुर सिंह की रचनाएँ



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